सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी और पाकिस्तानी नागरिक शाहिद गफ़ूर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने यह कहते हुए रिहाई की मांग की थी कि वह 16 साल जेल में बिता चुके हैं.
नई दिल्ली: जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकवादी समेत 114 आजीवन कारावास के दोषियों की सजा माफी की याचिका पर निर्णय लेने में दिल्ली सरकार द्वारा लिए जा रहे समय पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल से दो सप्ताह में निर्णय लेने को कहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, दो सदस्यीय पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एएस ओका ने कहा कि जब सजा माफी के आवेदनों पर विचार करने की बात आती है, तो सभी राज्य यांत्रिक तरीके से उन्हें खारिज कर देते हैं. उन्होंने कहा, ‘जब सजा माफी देने की बात आती है तो सभी राज्य सरकारें समान होती हैं. एक पैटर्न है. सभी राज्य सरकारें बिना विचार किए सजा माफी के पहले आवेदन को यांत्रिक तरीके से खारिज कर देती हैं.’
पीठ में जस्टिस उज्जवल भुइयां भी शामिल थे. पीठ जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी और पाकिस्तानी नागरिक शाहिद गफूर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने यह कहते हुए रिहाई की मांग की थी कि वह 16 साल जेल में बिता चुके हैं.
सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने शुक्रवार को पीठ को सूचित किया कि सजा समीक्षा बोर्ड की सजा माफी याचिकाओं पर विचार करने के लिए 21 दिसंबर 2023 को बैठक हुई थी और बैठक के विवरण उपराज्यपाल को सौंपने के लिए दिल्ली सरकार के गृह विभाग को भेज दिए गए थे. राज्यपाल ही समयपूर्व रिहाई पर निर्णय लेने के लिए सक्षम प्राधिकारी हैं.
पीठ ने कहा, ‘आप जो कर रहे हैं वह शीर्ष अदालत के 11 दिसंबर के आदेश का पूर्ण उल्लंघन है. आपने यह स्पष्ट नहीं किया है कि आप किस सजा माफी नीति का पालन कर रहे हैं. आपने जो किया वह बेहद आपत्तिजनक है.’
दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने फरवरी 2007 में गफूर और तीन अन्य को गिरफ्तार किया था और उनके कब्जे से विस्फोटक तथा पैसे बरामद किए थे.