यूएन विशेषज्ञों ने गाज़ा नरसंहार की सुनवाई अंतरराष्ट्रीय अदालत में शुरू होने का स्वागत किया

इज़रायल द्वारा गाज़ा में जारी नरसंहार के मामले को लेकर दक्षिण अफ्रीका ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का दरवाजा खटखटाया है, जिसका स्वागत करते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि हम इस मामले को आईसीजे में लाने के लिए दक्षिण अफ्रीका की सराहना करते हैं, जब गाज़ा में फिलिस्तीनियों के अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है.

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस. (फोटो साभार: X/@CIJ_ICJ)

नई दिल्ली: दक्षिण अफ्रीका, इजरायल को संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत में ले गया है और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) को बताया है कि इजरायल गाजा में नरसंहार कर रहा है.

अपने दावे के समर्थन में इसने उदाहरण भी पेश किए हैं कि शीर्ष इजरायली अधिकारी कैसी बातें करते हैं और इजरायली सेना फिलीस्तीनी क्षेत्र में कैसे काम कर रही है.

इस कदम का संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने स्वागत किया है.

उनके द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, ​‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आज अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के समक्ष दक्षिण अफ्रीका द्वारा लाए गए उस मामले की सुनवाई शुरू होने का स्वागत किया, जिसमें आरोप लगाए गए हैं कि इजरायल फिलीस्तीन के लोगों के खिलाफ नरसंहार के कृत्य कर रहा है.​’

विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि अनंतिम उपायों पर न्यायालय के किसी भी निर्णय का विवाद में शामिल पक्षों द्वारा सम्मान और कार्यान्वयन किया जाना चाहिए.

विशेषज्ञों द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, दक्षिण अफ्रीका ने 29 दिसंबर 2023 को आईसीजे से इजरायल द्वारा गाजा में हमले के संबंध में तत्काल अनंतिम उपाय जारी करने की मांग की थी. दक्षिण अफ्रीका ने आईसीजे से कहा था कि वह इजरायल को गाजा में अपने सैन्य अभियानों को तुरंत रोकने और नागरिकों को नरसंहार के कृत्य से सुरक्षित करने का आदेश दे. दक्षिण अफ्रीका ने इजरायल द्वारा ​‘नरसंहार के अपराध की रोकथाम और सजा पर 1948 का समझौता (नरसंहार कन्वेंशन)​’ के उल्लंघन का आरोप लगाया था.

यह समझौता नरसंहार को ​‘किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूर्ण या आंशिक रूप से नष्ट करने के इरादे से किए गए कृत्य​’ के रूप में परिभाषित करता है.

अनंतिम उपायों के अनुरोध से संबंधित सुनवाई 11 और 12 जनवरी को नीदरलैंड के हेग में होगी. दक्षिण अफ्रीका की फाइलिंग में यह भी आरोप लगाया गया है कि इजरायल नरसंहार को उकसा रहा है और इसे रोकने में विफल रहा है.

विशेषज्ञों ने कहा, ​‘आईसीजे के फैसले अंतिम ​तथा बाध्यकारी होते हैं और अपील के अधीन नहीं होते हैं. फिलिस्तीनियों के अधिकारों की रक्षा और अंतरराष्ट्रीय कानून की प्रधानता को मजबूत करने के लिए संबंधित पक्षों द्वारा न्यायालय द्वारा दिए गए किसी भी आदेश का पालन करना अनिवार्य है.​’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम ऐसे समय में इस मामले को आईसीजे में लाने के लिए दक्षिण अफ्रीका की सराहना करते हैं, जब गाजा में फिलिस्तीनियों के अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है. हम सभी सरकारों से न्यायालय के साथ सहयोग करने का आह्वान करते हैं, क्योंकि यह नरसंहार कन्वेंशन की व्याख्या करता है और एक स्वतंत्र अदालत के रूप में आईसीजे की भूमिका का सम्मान करता है.’

विशेषज्ञों ने मामले को अदालत में लाने के दक्षिण अफ्रीका के कदम के समर्थन में कई सरकारों द्वारा दिए गए बयानों का भी स्वागत किया.

दक्षिण अफ्रीका और इजरायल दोनों ने नरसंहार के अपराध की रोकथाम और सजा पर 1948 के कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं, इनके अलावा 151 अन्य देशों ने भी किए हैं.

विशेषज्ञों ने कहा, ‘दक्षिण अफ्रीका द्वारा दायर मामला सभी देशों पर व्यापक प्रभाव डालता है – न केवल उन देशों पर जिन्होंने कन्वेंशन का अनुमोदन किया है – क्योंकि क्योंकि सभी का दायित्व है कि वे नरसंहार करने से बचें और जहां कहीं भी ऐसा हो, उसे रोकें और दंडित करें. सभी देशों को नरसंहार को रोकने और दंडित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.’

विशेषज्ञों ने अपने बयान में बताया है, ‘आईसीजे अतीत में यह स्पष्ट कर चुका है कि नरसंहार कन्वेंशन के तहत दायित्व सर्वव्यापी प्रकृति के हैं, जिसका मतलब है कि जहां कहीं भी नरसंहार होने का खतरा हो, उसे रोकने में किसी भी और सभी देशों की हिस्सेदारी होती है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि जो देश कन्वेंशन में शामिल नहीं हैं, वे भी दक्षिण अफ्रीका की तरह कोई मामला आईसीजे में लाने की स्थिति में होते हैं.’

भयावह स्तर पर की गई बमबारी को याद करते हुए विशेषज्ञों ने दिसंबर 2023 की अपनी उस मांग को दोहराया है जिसमें तत्काल युद्धविराम और विस्थापन, लोगों की संपत्तियों को तोड़ने, और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर हमले रोकने की मांग की गई थी.

प्रेस विज्ञप्ति में विशेषज्ञों ने गाजा में लोगों – विशेष रूप से बीमार या घायल, विकलांग, वृद्ध, गर्भवती महिलाओं और बच्चों – को मानवीयता के आधार पर सहायता की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान किया है.

इस रिपोर्ट और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की पूरी प्रेस विज्ञप्ति को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.