निर्मोही अखाड़े के एक वरिष्ठ महंत का कहना है कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने ‘प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में पूजा और अनुष्ठानों का पालन करने में 500 साल पुरानी परंपराओं का पालन नहीं किया है. रामलला की अर्चना रामानंदी परंपराओं से की जाती है, लेकिन ट्रस्ट मिली-जुली रीतियां कर रहा है, जो उचित नहीं है.’
नई दिल्ली: अयोध्या में आगामी 22 जनवरी को आयोजित होने वाले राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह पर लग रहे ‘राजनीतिकरण’ के बीच निर्मोही अखाड़ा, जो मामले से जुड़े महत्वपूर्ण अखाड़ों में से एक है और जो एक सदी से भी अधिक समय से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व मुकदमे में प्रमुख याचिकाकर्ताओं में से एक था, ने गंभीर आपत्तियां दर्ज करवाई हैं.
अखाड़े की तरफ से कहा गया है कि 22 जनवरी के समारोह में ‘रामानंदी’ परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा है.
डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, निर्मोही अखाड़े के एक वरिष्ठ महंत ने कहा है कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने ‘प्रस्तावित समारोह में पूजा और अनुष्ठानों का पालन करने में 500 साल पुरानी परंपराओं का पालन नहीं किया है.’
अख़बार के अनुसार, महंत ने कहा है कि ‘रामलला की अर्चना रामानंदी परंपराओं से की जाती है, लेकिन ट्रस्ट मिलीजुली रीतियां कर रहा है, जो उचित नहीं है. हम चाहते हैं कि रामलला की पूजा-अर्चना रामानंदी परंपरा से हो, लेकिन ट्रस्ट ने हमारे आग्रह को नजरअंदाज कर दिया है.’
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि रामानंदी परंपरा में ‘तिलक’ और अन्य प्रतीक अन्य संप्रदायों से अलग होते हैं.
उल्लेखनीय है कि यह अखाड़ा दिसंबर 1992 से अयोध्या में मौजूद अस्थायी मंदिर में और उससे पहले, बाबरी मस्जिद के बाहरी प्रांगण में राम चबूतरे पर (जब मस्जिद मौजूद थी) पूजा किया करता था.
इस विवाद से जुड़े फैसले के समय निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी कि उसे भी राम मंदिर में पूजा और अन्य अनुष्ठान करने का अधिकार दिया जाना चाहिए, जिस पर अदालत का कहना था कि राम मंदिर की देखरेख करने वाली ट्रस्ट चाहे तो इसका अधिकार उन्हें दे सकती है.
मालूम हो कि अमर उजाला को दिए इंटरव्यू में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने नए मंदिर में पूजा की विधि के बारे में पूछे जाने पर राय ने कहा था कि चूंकि यह राम मंदिर है, इसलिए रामानंदी परंपरा का पालन किया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा था कि ‘मंदिर रामानंदी संप्रदाय का है, संन्यासियों का नहीं, शैव या शाक्त का नहीं.’
उधर, शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती, जिन्होंने पुष्टि की है कि वह 22 जनवरी के कार्यक्रम के लिए अयोध्या नहीं जाएंगे, ने राय की टिप्पणियों की आलोचना की थी और उन्हें सत्ता की स्थिति में रहते हुए अपना कद कम न करने की सलाह दी.
मंदिर निर्माण-कार्य पूरा होने की कोई तारीख नहीं
राय ने यह भी कहा था कि निर्माण कार्य पूरा करने की कोई जल्दी नहीं है, क्योंकि सिर्फ नींव बनाने में ही 18 महीने लग गए.
उन्होंने अखबार से कहा था, ‘पहले, विचार यह था कि इसे 18 महीने में बनाया जाएगा… इसलिए, नींव 18 महीने में बनाई जा सकती थी. विचार यह था कि इसे तीन साल में बनाया जाएगा. जुलाई 2020 से शुरू करें तो 2023 के साथ साढ़े तीन साल बीत चुके हैं. अब, अगर कोई तय करता है कि इसे एक साल के भीतर पूरा किया जाएगा, तो एक साल के बाद उसे बताना होगा कि अभी भी कितना अधूरा है.’