नीति आयोग के रिपोर्ट में दावा किया गया कि 2022-23 तक नौ वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी ग़रीबी से बाहर आ गए हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार इन लोगों को कल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त राशन के सुरक्षा से बाहर करने के लिए साज़िश रच रही है. पार्टी ने कहा कि यह ‘भाजपा के ईको सिस्टम का स्पष्ट झूठ’ है.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने गुरुवार (19 जनवरी) को नीति आयोग की उस रिपोर्ट को ‘जुमला’ करार दिया, जिसमें दावा किया गया है कि 2022-23 तक नौ वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आ गए हैं.
पार्टी ने आरोप लगाया कि सरकार इन लोगों को कल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त राशन की सुरक्षा से बाहर करने के लिए ‘साजिश’ रच रही है.
कांग्रेस का हमला उस रिपोर्ट के एक दिन बाद आया है, जिसमें कहा गया है कि नौ वर्षों में 2022-23 तक 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल गए, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई.
नीति आयोग के परिचर्चा पत्र के अनुसार, देश में बहुआयामी गरीबी 2013-14 में 29.17 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में घटकर 11.28 प्रतिशत रही. इसके साथ इस अवधि के दौरान 24.82 करोड़ लोग इस श्रेणी से बाहर आए हैं.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता और सोशल मीडिया विभाग की प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि यह दावा कि 24.84 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला गया है, ‘जुमलों की सूची में ताजा’ है, जिसे चुनाव तक देखा जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘सच्चाई इससे अधिक दूर नहीं हो सकती है और वास्तविकता यह है कि नीति आयोग इन आंकड़ों पर कैसे पहुंचा है – इसने गरीबी की गणना के स्थापित मानदंडों को बदल दिया है और न ही विश्व बैंक और न ही आईएमएफ ने इस पर किसी तीसरे पक्ष की कहानियों का हवाला दिया है.’
उन्होंने कहा कि ये आंकड़े और कुछ नहीं बल्कि ‘भाजपा के ईको सिस्टम का स्पष्ट झूठ’ है.
उन्होंने कहा, ‘यह नीति आयोग द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट है, उनके द्वारा किया गया एक सर्वेक्षण है, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद उलट है.’
उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण अनिवार्य रूप से स्थापित करता है कि जमीन पर कोई बेरोजगारी नहीं है, जबकि वास्तविकता यह है कि ऊंची कीमतें, बेरोजगारी, आय असमानता, कम मजदूरी और अत्यधिक गरीबी है.
उन्होंने कहा, ‘इन आंकड़ों की वास्तविकता यह है कि इस देश के गरीबों के खिलाफ एक साजिश रची जा रही है, क्योंकि बहुत जल्द करीब 25 करोड़ लोग जिन्हें अब ‘गरीब नहीं’ घोषित किया गया है, उन्हें उस सुरक्षा जाल से बाहर कर दिया जाएगा, जो सरकार द्वारा प्रदान की जाती है.’
श्रीनेत ने कहा, ‘उन्हें अब सब्सिडी नहीं मिलेगी, मुफ्त राशन नहीं मिलेगा, उन्हें सुरक्षा जाल से बाहर कर दिया जाएगा, जो कोई भी कल्याणकारी राज्य गरीब लोगों को प्रदान करता है, यही वह साजिश है, जिसके बारे में हम चिंतित हैं.’
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने एक ‘नया गुब्बारा’ छोड़ा है और यह प्रचारित किया जा रहा है कि पिछले 9 वर्षों में 24.82 करोड़ भारतीयों को गरीबी से मुक्ति मिल गई है, लेकिन वास्तव में यह गरीबों के खिलाफ एक ‘बहुत बड़ी साजिश’ है.
उन्होंने दावा किया कि सरकार का यह दावा जमीनी हकीकत के विपरीत है और इसमें चार प्रमुख समस्याएं हैं.
उन्होंने सवाल किया, ‘अगर गरीबों की संख्या घटी है तो खपत क्यों घट रही है?’ उन्होंने आगे पूछा, ‘अगर गरीबी गिरकर 11.7 प्रतिशत हो गई है, यानी केवल 15 करोड़ लोग गरीब हैं, तो सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन क्यों दे रही है.’
श्रीनेत ने यह भी सवाल किया कि कोई तीसरा पक्ष नीति आयोग के इस दावे का समर्थन क्यों नहीं कर रहा है, उनका तर्क है कि विश्व बैंक और आईएमएफ ने इन आंकड़ों का समर्थन किया होगा.
उन्होंने यह भी कहा कि जब नीति आयोग ने गरीबी मापने के लिए मानक स्थापित किए हैं, तो ऐसे मानक क्यों चुने गए जो सरकार की प्रमुख योजनाओं पर आधारित हैं.
श्रीनेत ने कहा कि यूपीए सरकार ने 27 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला और वह विश्व बैंक था, जिसने इस आंकड़े पर तीसरे पक्ष की रिपोर्ट की पुष्टि की और इसे सही माना. उन्होंने कहा, ‘लेकिन मोदी सरकार अपना ढिंढोरा पीट रही है.’
नीति आयोग की रिपोर्ट पर निशाना साधते हुए श्रीनेत ने कहा कि यह पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार की विफलताओं का ‘सबसे बड़ा प्रमाण’ है, क्योंकि केंद्र गरीबी, भुखमरी, आर्थिक असमानताओं, बेरोजगारी और मुद्रास्फीति का समाधान खोजने के बजाय झूठ का सहारा ले रही हैं.
मालूम हो कि इससे पहले अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों ने नीति आयोग की रिपोर्ट पर संदेह जताया था. उन्होंने कहा था, ‘यह बड़ा रहस्य है कि अगर गरीबी में इतनी प्रभावशाली कमी आई है तो हालिया समय में वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भारत के प्रदर्शन में गिरावट क्यों देखी गई है?’
12 अक्टूबर 2023 को दो यूरोपीय एजेंसियों द्वारा जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर था. भारत से नीचे बस अफगानिस्तान, हैती, सोमालिया, कांगो और सूडान जैसे अभावग्रस्त देश थे.