दवा के प्रति प्रतिरोध बढ़ने से सरकार ने डॉक्टरों से एंटीबायोटिक्स लिखते समय कारण बताने को कहा

डॉक्टरों के संघ को भेजे गए एक पत्र में केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक ने कहा है, सभी डॉक्टरों से यह तत्काल अपील है कि वे मरीज़ को रोगाणुरोधक एंटीबायोटिक्स लिखते समय सटीक कारण या औचित्य का अनिवार्य रूप से उल्लेख करें. साथ ही फार्मासिस्टों से आग्रह किया गया है कि वे वैध दवा के पर्चे के बिना इन दवाओं का वितरण न करें.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

डॉक्टरों के संघ को भेजे गए एक पत्र में केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक ने कहा है, सभी डॉक्टरों से यह तत्काल अपील है कि वे मरीज़ को रोगाणुरोधक एंटीबायोटिक्स लिखते समय सटीक कारण या औचित्य का अनिवार्य रूप से उल्लेख करें. साथ ही फार्मासिस्टों से आग्रह किया गया है कि वे वैध दवा के पर्चे के बिना इन दवाओं का वितरण न करें.

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नई दिल्ली: रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) बढ़ने के साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉक्टरों से एंटीबायोटिक्स लिखते समय इसका सटीक कारण लिखने का आग्रह किया है. साथ ही, फार्मासिस्टों से आग्रह किया गया है कि वे कानून द्वारा निर्दिष्ट वैध प्रेस्क्रिप्शन (दवा के पर्चे) के बिना इन दवाओं का वितरण न करें.

इस महीने की शुरुआत में डॉक्टरों के संघ को भेजे गए एक पत्र में केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने कहा, ‘मेडिकल कॉलेजों के सभी डॉक्टरों से यह तत्काल अपील है कि वे मरीज को रोगाणुरोधक दवाएं लिखते समय सटीक संकेत, कारण या औचित्य का अनिवार्य रूप से उल्लेख करें.’

गौरतलब है कि रोगाणुरोधी – एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीपैरासिटिक्स सहित – ऐसी दवाएं हैं, जिनका उपयोग मनुष्यों, जानवरों और पौधों में संक्रामक रोगों को रोकने और उनका इलाज करने के लिए किया जाता है. रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) तब होता है, जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी रोगाणुरोधी दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं यानी उन पर दवाओं का असर नहीं होता.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पत्र में मेडिकल कॉलेजों से अगली पीढ़ी के डॉक्टरों के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के विवेकपूर्ण उपयोग का उदाहरण स्थापित करने का आग्रह किया गया है.

फार्मासिस्टों के संघ को भी भेजे गए पत्र में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के प्रावधानों को दोहराया गया है, जो निर्दिष्ट करता है कि रोगाणुरोधी दवाओं को केवल एक पंजीकृत डॉक्टर के पर्चे पर ही बेचा जाना चाहिए.

रोगाणुरोधकों को औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम की अनुसूची ‘एच’ और ‘एच1’ के तहत सूचीबद्ध किया गया है, ये दोनों ऐसी दवाओं की श्रेणियां हैं, जिन्हें डॉक्टर के पर्चे के बिना नहीं बेचा जा सकता है.

अनुसूची ‘एच1’ दवाओं की बिक्री का रिकॉर्ड – जिसमें तीसरी और चौथी पीढ़ी के रोगाणुरोधी शामिल हैं – को तीन साल की अवधि तक बनाए रखना होगा.

दोनों पत्रों में कहा गया है, ‘रोगाणुरोधी दवाओं का दुरुपयोग और अति-प्रयोग दवा प्रतिरोधी रोगजनकों (Drug Resistant Pathogens) के विकास में मुख्य कारणों में से एक है. अनुसंधान और विकास पाइपलाइन में कुछ नए एंटीबायोटिक्स के साथ, विवेकपूर्ण एंटीबायोटिक उपयोग प्रतिरोध के विकास में देरी करने का एकमात्र विकल्प है. प्रतिरोध के उद्भव को कम करने के लिए रोगाणुरोधकों के विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिए आपके समर्थन की आशा है.’

यह नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के हालिया सर्वेक्षण के बाद आया है, जिसमें पता चला है कि तृतीयक देखभाल अस्पतालों में आने वाले 71.9 प्रतिशत रोगी एंटीबायोटिक्स लेने के लिए निर्धारित किए गए थे. और, इनमें से आधे से अधिक ​प्रेस्क्रिप्शन किसी संक्रमण का इलाज करने के लिए नहीं थे, बल्कि प्रक्रियाओं और सर्जरी से पहले प्रोफिलैक्सिस (निवारक) के रूप में दिए गए थे.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ट्रॉमा सेंटर में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर और अस्पताल संक्रमण नियंत्रण टीम का हिस्सा डॉ. पूर्वा माथुर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, ‘एंटीबायोटिक दवाओं का इतना उच्च स्तर का रोगनिरोधी उपयोग चिंताजनक है. हालांकि इसकी अनुशंसा नहीं की जाती है, कई ​डॉक्टर अतिरिक्त जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए वायरल संक्रमण वाले लोगों को एंटीबायोटिक्स लिखते हैं. और, जब सर्जनों की बात आती है, तो लगभग हर कोई 15 दिनों तक के लिए एंटीबायोटिक्स लिखता है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे इतने डरे हुए हैं कि उनके मरीजों को संक्रमण हो जाएगा, लेकिन (इससे) बचने की जरूरत है.’