केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- जीएम फसलों पर प्रतिबंध से देश के हित को नुकसान पहुंचेगा

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत पहले से ही जीएम फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग करता है और ‘प्रतिकूल प्रभाव की ऐसी निराधार आशंकाओं के आधार पर ऐसी तकनीक का विरोध केवल किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है’ और ‘भारतीय कृषि के लिए हानिकारक होगा’. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत पहले से ही जीएम फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग करता है और ‘प्रतिकूल प्रभाव की ऐसी निराधार आशंकाओं के आधार पर ऐसी तकनीक का विरोध केवल किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है’ और ‘भारतीय कृषि के लिए हानिकारक होगा’. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.

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नई दिल्ली: केंद्र ने गुरुवार (19 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आनुवंशिक रूप से संशोधित यानी जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों पर कोई भी प्रतिबंध राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाएगा.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत पहले से ही जीएम फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग करता है और ‘प्रतिकूल प्रभाव की ऐसी निराधार आशंकाओं के आधार पर ऐसी तकनीक का विरोध केवल किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है’ और यह ‘भारतीय कृषि के लिए हानिकारक होगा’.

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस संजय करोल की पीठ के समक्ष यह टिप्पणी की.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जीएम सरसों के वैरिएंट धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (डीएमएच-11) की व्यावसायिक रिलीज के सरकारी कदम को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा, ‘हमारे विचार में यह एक प्रतिकूल मुद्दा नहीं हो सकता’ लेकिन ‘जो देश के लिए अच्छा है, वह लोगों के लिए अच्छा है’.

केंद्र की ओर से पेश होते हुए सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने अदालत को बताया, ​‘सरसों भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य तेल और बीज की फसल है. भारत में लगभग 55-60 प्रतिशत खाद्य तेल आयात किया जाता है.​’

उन्होंने कहा, ​‘भारतीय कृषि में उभरती चुनौतियों का सामना करने और विदेशी निर्भरता को कम करते हुए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जीई प्रौद्योगिकी जैसी नई आनुवंशिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग सहित पादप प्रजनन कार्यक्रमों को मजबूत करना महत्वपूर्ण है.​’

केंद्र ने तर्क दिया कि ‘जीएम फसलों की व्यावसायिक/सार्वजनिक रिलीज पर प्रतिबंध सार्वजनिक और राष्ट्रीय हित के खिलाफ होगा’.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा, ‘भारत में दशकों से जीएम तेल की खपत हो रही है. यहां कोई यह तर्क नहीं दे रहा है कि इसका सेवन नहीं करना चाहिए. एकमात्र प्रश्न यह है कि क्या इसे यहीं उगाया जाना चाहिए. देश जिस स्थिति में पहुंच गया है, उससे न्यायिक विवेक पर यह सवाल उठेगा कि जीएम ऑर्गनिज्म (जीएमओ) पर प्रतिबंध की प्रार्थना स्वीकार कर लेने से देश को नुकसान होगा या नहीं.’

उन्होंने कहा, ‘यह हमारे देश का लक्ष्य है कि अधिक स्वदेशी किस्मों को उगाने से आयात पर निर्भरता कम होगी. हमने आयात पर लाखों करोड़ रुपये खर्च किए हैं, क्योंकि यहां याचिकाकर्ताओं ने इन फसलों पर शोध की प्रक्रिया को रोक दिया है. हमारे नोट से यह स्पष्ट हो जाएगा कि प्रतिबंध से किसे मदद मिलेगी और देश को कैसे नुकसान होगा.’

कानून अधिकारी ने अदालत को बताया कि 2020-21 में भारत में खाद्य तेल की कुल मांग 24.6 मिलियन टन थी, जबकि घरेलू उपलब्धता 11.1 मिलियन टन थी.

अगस्त 2023 में केंद्र ने अदालत को सूचित किया था कि इस परियोजना के पीछे 12 साल का शोध चला है और लगातार चार बुवाई सत्रों में जीएम सरसों की पर्यावरणीय रिलीज से वैज्ञानिकों को सरसों की उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले निष्कर्षों को इकट्ठा करने में मदद मिलेगी.