केंद्र सरकार ने पिछले साल ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का अध्ययन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्चाधिकार समिति का गठन किया था. कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सरकार, संसद और चुनाव आयोग को इसके बजाय लोगों के जनादेश का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने बीते शुक्रवार (19 जनवरी) को देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह संघवाद की गारंटी और संविधान की बुनियादी संरचना के खिलाफ है.
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सचिव को लिखे पत्र में कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने मांग की कि इस ‘अलोकतांत्रिक’ विचार को त्याग दिया जाए और इसका अध्ययन करने के लिए गठित इस समिति को भंग कर दिया जाए.
इस समिति का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, पत्र में खरगे ने पूर्व राष्ट्रपति कोविंद से आग्रह किया कि ‘इस देश में संविधान और संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उनके व्यक्तित्व और भारत के पूर्व राष्ट्रपति के पद का दुरुपयोग न होने दिया जाए.’
उन्होंने समिति के सचिव नितेन चंद्रा को लिखे पत्र में कहा, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार का कड़ा विरोध करती है. एक संपन्न और मजबूत लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि इस पूरे विचार को त्याग दिया जाए और उच्चाधिकार प्राप्त समिति को भंग कर दिया जाए.’
केंद्र सरकार ने पिछले साल की शुरुआत में कोविंद की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय उच्चाधिकार समिति का गठन किया था. 18 अक्टूबर को इसने छह राष्ट्रीय दलों और 33 क्षेत्रीय दलों को पत्र लिखकर लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के त्रि-स्तरीय चुनाव एक साथ कराने पर उनके सुझाव मांगे थे.
Here is the response of the Indian National Congress to the ‘One Nation One Election’ Committee. pic.twitter.com/GgtUBYy8JG
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) January 19, 2024
मामले से परिचित लोगों ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि समिति आगामी लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट, जो अंतिम चरण में है, सौंपने की योजना बना रही है.
शुक्रवार के पत्र में कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने आरोप लगाया कि समिति ने ‘पहले ही अपना मन बना लिया है और परामर्श लेना एक दिखावा प्रतीत होता है.’
खरगे ने कहा, ‘सरकार, संसद और चुनाव आयोग को एक साथ चुनाव कराने जैसे अलोकतांत्रिक विचारों के बारे में बात करके लोगों का ध्यान भटकाने के बजाय लोगों के जनादेश का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.’
उन्होंने समिति की संरचना पर भी सवाल उठाया और आरोप लगाया कि यह ‘पक्षपातपूर्ण’ है, क्योंकि इसका गठन विभिन्न राज्य सरकारों का नेतृत्व करने वाले विपक्षी दलों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिए बिना किया गया था. साथ ही कहा कि मुद्दे के पक्ष-विपक्ष का गंभीर और व्यवस्थित तरीके से निष्पक्ष विश्लेषण करने का प्रयास नहीं किया जा रहा है.
भाजपा का नाम लिए बिना कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में केवल ऐसे उदाहरण रहे हैं, जहां मुख्यमंत्रियों ने सदन का विश्वास खो दिया है, जब ‘एक विशेष दल ने अपने फायदे के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया’ और ‘लोगों का जनादेश चुराने के लिए दल-बदल विरोध कानून को उलट दिया.’
खरगे ने कहा, ‘उस देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा के लिए कोई जगह नहीं है, जिसने सरकार की संसदीय प्रणाली अपनाई है. एक साथ चुनाव के ऐसे तरीके जो सरकार द्वारा प्रस्तावित किए जा रहे हैं, संविधान में निहित संघवाद की गारंटी के खिलाफ हैं.’
इसके अलावा, खरगे ने कहा कि उन्हें यह तर्क सुनकर आश्चर्य हुआ कि एक साथ चुनाव कराने से वित्तीय बचत होगी. उन्होंने कहा कि ऐसा तर्क बेबुनियादी लगता है.
उन्होंने कहा कि चुनाव पर खर्च पिछले पांच वर्षों के कुल केंद्रीय बजट का 0.02 प्रतिशत से भी कम है. यह देखते हुए विधानसभा चुनावों का खर्च भी उनके राज्य के बजट के इसी अनुपात में हो सकता है.
उन्होंने कहा कि 2014 के चुनावों में खर्च 3,870 करोड़ रुपये था, जिसके बारे में समिति का दावा है कि यह बहुत अधिक है.
उन्होंने कहा, ‘अगर समिति, सरकार और चुनाव आयोग, चुनावों पर होने वाले खर्च को लेकर गंभीर हैं, तो यह अधिक उपयुक्त होगा, अगर वे फंडिंग प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बना सकें, खासकर चुनावी बॉन्ड के मामले में. इससे वास्तव में मतदाता सशक्त होंगे और मतदाता जागरूकता बढ़ेगी.’