सरकार द्वारा वित्त पोषित विज्ञान संस्थानों ने राम मंदिर निर्माण में योगदान दिया: मंत्री

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि सीएसआईआर-सीबीआरआई रूड़की ने राम मंदिर निर्माण में प्रमुख योगदान दिया है. उन्होंने कहा कि सीएसआईआर-एनजीआरआई हैदराबाद ने नींव डिजाइन और भूकंपीय सुरक्षा पर महत्वपूर्ण सहयोग दिया है. डीएसटी-आईआईए बेंगलुरु ने सूर्य तिलक के लिए सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की है.

जितेंद्र सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के दायरे में आने वाले कई संस्थान अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के विभिन्न पहलुओं में निकटता से शामिल रहे हैं.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने 21 जनवरी को एक प्रेस बयान में उनके योगदान को गिनाते हुए कहा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा भी योगदान दिया गया है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंह ने कहा, ‘रुड़की के सीएसआईआर-सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने मुख्य मंदिर के संरचनात्मक डिजाइन, ‘सूर्य तिलक’ तंत्र को डिजाइन करने, मंदिर की नींव की डिजाइन-जांच और मुख्य मंदिर के संरचनात्मक स्वास्थ्य की निगरानी में प्रमुख योगदान दिया है.’

​‘सूर्य तिलक​’ एक निर्दिष्ट दिन पर मूर्ति के माथे पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी की किरण को संदर्भित करता है, इस मामले में यह राम नवमी, भगवान राम के जन्मदिन पर होगा, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल के दौरान आता है.

बेंगलुरु के डीएसटी-इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने ​‘सूर्य तिलक​’ के लिए सूर्य की किरणों और मूर्ति की स्थिति को त्रिकोण करने के लिए ‘तकनीकी सहायता’ प्रदान की. सटीक उपकरणों में विशेषज्ञता रखने वाली बेंगलुरु की कंपनी ​‘ऑप्टिका’ – लेंस और पीतल के ट्यूब के निर्माण में शामिल थी.

उन्होंने कहा, ‘गियर बॉक्स और परावर्तक दर्पण/लेंसों की व्यवस्था इस तरह की गई है कि सूर्य की किरणों को सूर्य के पथ पर नजर रखने के प्रसिद्ध सिद्धांतों का उपयोग करके गर्भ गृह (गर्भगृह) में प्रक्षेपित किया जाएगा.’

एक अन्य सीएसआईआर संस्थान ने सोमवार (22 जनवरी) के समारोह के लिए ‘ट्यूलिप ब्लूम’ बनाया.

सिंह ने कहा, ‘इस मौसम में ट्यूलिप के पौधे में फूल नहीं खिलते हैं. यह केवल जम्मू-कश्मीर और कुछ अन्य उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ही उगता है और वह भी केवल वसंत ऋतु में. पालमपुर के हिमालय जैव-संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान ने हाल ही में एक स्वदेशी तकनीक विकसित की है, जिसके माध्यम से ट्यूलिप को उसके मौसम की प्रतीक्षा किए बिना, पूरे वर्ष उपलब्ध कराया जा सकता है.’

उनके अनुसार, हैदराबाद के सीएसआईआर-राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान ने मंदिर की नींव की डिजाइन और भूकंपीय सुरक्षा पर महत्वपूर्ण सहयोग दिया.

मुख्य मंदिर की इमारत, जो 360 फीट लंबी, 235 फीट चौड़ी और 161 फीट ऊंची है, राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से निकाले गए बलुआ पत्थर से बनी है. इसके निर्माण में कहीं भी सीमेंट, लोहा या स्टील का उपयोग नहीं किया गया है.

बयान में कहा गया है कि तीन मंजिला मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन भूकंप-रोधी और रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता तक के भूकंप का सामना कर सकने लायक बनाया गया है.