राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले आडवाणी उद्घाटन समारोह में नहीं पहुंचे, ठंड का हवाला दिया

आडवाणी ने 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया था और उनकी रथयात्रा 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के साथ समाप्त हुई थी. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने कथित तौर पर उन्हें और उनके सहयोगी मुरली मनोहर जोशी को 22 जनवरी के समारोह में शामिल नहीं होने के लिए कहा था. हालांकि बाद में उन्हें आमंत्रित कर दिया गया था.

नरेंद्र मोदी और लाल कृष्ण आडवाणी. (फोटो साभार: फेसबुक/नरेंद्र मोदी)

आडवाणी ने 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया था और उनकी रथयात्रा 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के साथ समाप्त हुई थी. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने कथित तौर पर उन्हें और उनके सहयोगी मुरली मनोहर जोशी को 22 जनवरी के समारोह में शामिल नहीं होने के लिए कहा था. हालांकि बाद में उन्हें आमंत्रित कर दिया गया था.

नरेंद्र मोदी और एलके आडवाणी. (फोटो साभार: फेसबुक/नरेंद्र मोदी)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी उत्तर भारत में अत्यधिक ठंड का हवाला देते हुए अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूर रहे.

आडवाणी ने 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया था और उनकी रथयात्रा 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के साथ समाप्त हुई थी.

आडवाणी अब 96 वर्ष के हैं. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने कथित तौर पर उन्हें और उनके सहयोगी मुरली मनोहर जोशी को 22 जनवरी के समारोह में शामिल नहीं होने के लिए कहा था. हालांकि, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने इसके बाद भाजपा के दोनों वरिष्ठ नेताओं को आमंत्रित किया जाना दिखाया था.

सोमवार को समारोह का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया.

जैसा कि द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था:

भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी और 1986 में पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले आडवाणी ने 1984 में राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व संभाला था.

1989 में भाजपा ने घोषणा की थी कि उस भूमि पर राम मंदिर का निर्माण करना, जहां उनका मानना ​​है कि भगवान राम का जन्म हुआ था – और जहां बाबरी मस्जिद 400 वर्षों से अधिक समय तक खड़ी थी – उसका प्रमुख राजनीतिक एजेंडा है.

1990 की शरद ऋतु में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की, जिसका उद्देश्य उस स्थान पर राम मंदिर के निर्माण की मांग के लिए समर्थन जुटाना था, जहां मस्जिद थी.

आडवाणी की रथयात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह शांति का संदेश नहीं ले जा रहे थे. त्रिशूल, कुल्हाड़ी, तलवार और धनुष-बाण लिए हुए उनकी तस्वीरें भी सामने आई थीं. बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने यात्रा के मार्ग पर प्रस्तावित मंदिर और मुस्लिमों के ​‘विश्वासघात’ के पोस्टर चिपकाए थे.

यात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा, दंगे और हत्याएं हुईं. अंततः अक्टूबर 1990 में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने समस्तीपुर में आडवाणी और उनके सहयोगियों को रोक कर गिरफ्तार कर लिया.

आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भी हजारों कारसेवक अयोध्या पहुंचने में कामयाब रहे, जहां पुलिस के साथ झड़प के बाद उनमें से 20 कारसेवक मारे गए.

दो साल बाद 6 दिसंबर 1992 को भाजपा नेताओं के एक गुट के नेतृत्व में कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था, जिसका नेतृत्व आडवाणी ने किया था.

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