​महाराष्ट्र में मराठवाड़ा के आठ ज़िलों में साल 2023 में 1,088 किसानों की आत्महत्या से मौत: रिपोर्ट

मराठवाड़ा संभागीय आयुक्त कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में मराठवाड़ा में 1,088 किसानों ने आत्महत्या की. मराठवाड़ा के बीड ज़िले में सबसे अधिक 269 मौतें दर्ज की गईं. इसके बाद औरंगाबाद ज़िले में 182, नांदेड़ में 175, धाराशिव में 171 और परभणी ज़िले में 103 मौतें हुईं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

मराठवाड़ा संभागीय आयुक्त कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में मराठवाड़ा में 1,088 किसानों ने आत्महत्या की. मराठवाड़ा के बीड ज़िले में सबसे अधिक 269 मौतें दर्ज की गईं. इसके बाद औरंगाबाद ज़िले में 182, नांदेड़ में 175, धाराशिव में 171 और परभणी ज़िले में 103 मौतें हुईं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: मराठवाड़ा संभागीय आयुक्त कार्यालय की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2023 में महाराष्ट्र के आठ जिलों में 1,088 किसानों की आत्महत्या से मौत हो गई. एक अधिकारी ने कहा कि 2022 की तुलना में यह आंकड़ा 65 अधिक है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2023 में मराठवाड़ा क्षेत्र हुईं 1,088 आत्महत्याओं में से बीड जिले में सबसे अधिक 269 मौतें दर्ज की गईं, इसके बाद औरंगाबाद में 182, नांदेड़ में 175, धाराशिव में 171 और परभणी में 103 मौतें हुईं. जालना, लातूर और हिंगोली में क्रमश: 74, 72 और 42 ऐसी मौतें हुईं.

एनडीटीवी ने इस रिपोर्ट के हवाले से बताया मराठवाड़ा क्षेत्र में 2022 में 1,023 किसानों की आत्महत्या की सूचना मिली थी. मराठवाड़ा में औरंगाबाद, जालना, बीड, हिंगोली, धाराशिव, लातूर, नांदेड़ और परभणी जिले आते हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘प्रशासन ने प्रत्येक मामले की जांच की और पात्र मामलों में परिवार को 1 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया.’

उन्होंने कहा, ‘1,088 मामलों में से 777 मुआवजे के पात्र थे, जिन्हें मुआवजा दे दिया गया है और 151 मामलों की अभी जांच चल रही है.’

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश भर में प्रति दिन औसतन 30 किसानों की आत्महत्या से मौत हुई है.

द वायर में प्रकाशित अनिर्बान भट्टाचार्य, प्रणय राज और नैन्सी पाठक की रिपार्ट के अनुसार, ‘सार्वजनिक निवेश में गिरावट, प्रमुख उद्योगों का निजीकरण, बाहरी व्यापार को बढ़ावा देना, राज्य सब्सिडी में गिरावट और औपचारिक कृषि ऋण में कमी, कुछ ऐसे कारक है,​ जिन्होंने भारत में किसानों की ​मुश्किलों में योगदान दिया है, जिनके लिए भारी सब्सिडी वाले आयात के साथ प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो गया.’

दिसंबर 2023 में प्रकाशित रिपार्ट में लेखकों ने कहा कि ऐसी आत्महत्याओं की प्रतिक्रिया ने विशेषज्ञों को चिंतित कर दिया है, क्योंकि इसमें कृषि संकट के मूल कारणों का समाधान नहीं किया गया है. इसके बजाय ‘नवउदारवादी शासन द्वारा किसानों की आत्महत्याओं का लगातार राजनीतिकरण करने’ और उन्हें किसी भी बेहतर संदेश से वंचित करने का प्रयास किया गया है.

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