राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण हिंदुत्व की राजनीति करने वाले व्यक्ति का संबोधन था. वो, जिसने धर्म की भावुकता और राजसत्ता की बेईमानी से एक ऐसा मिश्रण किया है जिसके ज़रिये वह आम आस्थावान जनता को छल सके.
सियावर रामचंद्र की जय. इसी अभिवादन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान अपने भाषण की शुरुआत की. उसके बाद कहा कि अब हमारे राम आ गए हैं. सदियों की इंतजार के बाद हमारे राम आ गए हैं. मतलब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वही बात दुहराई जो कई महीनों से नरेंद्र मोदी की मीडिया दोहरा रही है. लोगों के मानस में भरने की कोशिश कर रही है कि राम आएंगे, आएंगे. उसी बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक निष्कर्ष पर पहुंचा दिया.
आप बताइए- अगर आप एक आस्थावान व्यक्ति हैं, राम के आदि से लेकर अनंत के अस्तित्व को मानते हैं, तो अगर आपसे कोई कहे कि राम 22 जनवरी को आने वाले हैं तो आप इसे कैसे देखेंगे? मीडिया ने पिछले कई महीने से जो यह प्रोपगैंडा चलाया है क्या आप उससे सहमत हो पाएंगे? क्या इससे पहले राम इस दुनिया में नहीं थे? क्या राम इस बात से रूठकर कहीं चले गए थे कि वह केवल बाबरी मस्जिद में बसते हैं, जब तक मस्जिद तोड़ी नहीं जाएगी और तोड़कर मंदिर नहीं बनाई जाएगी तब तक वह नहीं आएंगे? क्या राम का अस्तित्व केवल बाबरी मस्जिद की अस्तित्व में टिका हुआ है? अयोध्या के सैकड़ो मंदिरों का क्या? भारत के लाखों मंदिरों का क्या? भारत के करोड़ों लोगों के मनों का क्या? जहां पर राम बसते हैं? क्या यह सारी बातें झूठी हैं? केवल एक ही बात ठीक है कि राम 22 जनवरी को आने वाले हैं.
अगर आप एक आस्थावान व्यक्ति है तो क्या प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से सहमत हो पा रहे हैं कि सदियों के इंतजार के बाद राम आ गए हैं?
आप नहीं सहमत हो पाएंगे. जब इसका जवाब तलाश में निकलेंगे तो आपको यही जवाब मिलेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से संबोधन की शुरुआत की, वह हिंदुत्व की राजनीति करने वाले व्यक्ति का संबोधन था. जिसने धर्म की भावुकता और राजसत्ता की बेईमानी से एक ऐसा घोल तैयार किया है जिसके जरिये वह आम आस्थावान व्यक्ति की बुद्धि को हड़पने की कोशिश कर रहा है. और जिन मीडिया संस्थानों को इस तरह के वक्तव्य पर प्रश्न चिह्न खड़ा करना चाहिए, वह इसे पूरी धूमधाम के साथ बेच रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे राम लला अब टेंट में नहीं रहेंगे. हमारे राम लला इस भव्य मंदिर में रहेंगे. जो राम कथाओं को जानते हैं वे बताते हैं कि राम की चाहत किसी भव्य मंदिर या महल में रहने की कभी नहीं रही है न ही उन्हें किसी बहुत बड़े राज्य की लालसा थी.
तुलसीदास लिखते हैं कि नाहिन रामु राज के भूखे. धरम धुरीन बिषय रस रूखे. यानी राम को राज्य की लालसा नहीं है, वे धर्म की धुरी को धारण करने वाले हैं.
धर्म क्या होता है? धर्म का मतलब होता है जो धारण करने योग्य है. जैसे इंसान के लिए धारण करने योग्य इंसानियत होती है. प्रेम, करुणा, शांति, दयालुता, सद्भाव यह सब इंसानियत के धर्म होते हैं. क्या आपको लगता है कि आज के भारत में इस तरह के धर्म के प्रचार-प्रसार का काम राजनीति कर रही है. खासकर क्या नरेंद्र मोदी की राजनीति इस धर्म को अपनाती है? जो राम पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए 14 वर्ष के वनवास को चले जाते हैं, जिनके शासन को राम राज्य बताया जाता है, क्या वे ऐसे मंदिर में रहेंगे, जो एक मस्जिद को तोड़कर बनाया गया हो?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा का दिन कैलेंडर पर लिखी एक तारीख नहीं बल्कि नए कालचक्र का उद्गम है. कालचक्र में जो नया होता है, उससे उम्मीद की जाती है कि वह अपने पुराने वाले से बेहतर होगा. शुभ का संकेतक होगा. मगर इस नए कालचक्र में ऐसा कुछ भी नहीं दिखता है.
राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भारत के पूरे सत्ता प्रतिष्ठान की मौजूदगी ने तो भारत की धर्मनिरपेक्षता की शुभता के मूल्य की हत्या कर दी है. इसे हिंदू धर्म की धार्मिकता के हिसाब से देखा जाए, तो उस पर भाजपा के हिंदुत्व का कब्जा हो गया है. हिंदू धर्म की आड़ लेकर वोट की गोलबंदी के लिए जो कुछ किया जा रहा है, उसे हिंदू धर्म का पर्याय मान लिया जा रहा है. समय का कालचक्र पुराने वाले से बेहतर की तरफ नहीं बल्कि बदतर की तरफ बढ़ रहा है. तो कैसे मान जाए कि यह नए कालचक्र का उद्गम है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे पुरुषार्थ त्याग तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक यह काम कर नहीं पाए. आप राम मंदिर आंदोलन का पूरा इतिहास उठाकर देख लीजिए. उसे धर्म के सबसे गहरे मूल्य पर पररखने की कोशिश कीजिए- धर्म ही इस पूरे आंदोलन को खारिज कर देगा. धर्म और संविधान दोनों की निगाह कई प्रमाणों के साथ कहती है कि राम जन्मभूमि आंदोलन न तो धर्म के आधार पर जायज था और न ही संविधान के आधार पर. यह केवल और केवल भाजपा की चुनावी राजनीति का हथकंडा भरा था, जिसका इस्तेमाल भाजपा ने सालों साल चुनावी राजनीति के लिए किया.
मस्जिद को तोड़ने को सुप्रीम कोर्ट ने कानून का घनघोर उल्लंघन कहा. राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूरे फैसले में बहुत ही तार्किक बातें लिखीं मगर फैसला आस्था के दम पर सुनाया. कानूनी मसले का हर ईमानदार जानकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्याय की तराजू पर तौलते हुए बहुत ही अच्छा फैसला नहीं बताता है. उन सब की बातें इस तरफ संकेत करती हैं कि यह फैसला भाजपा की राजनीति विचार से प्रभावित फैसला था.
एक समय सवाल- राम जन्मभूमि आंदोलन की पूरी कवायद में क्या आपको धर्म और संविधान के मूल्य नजर आते हैं? क्या राम जिन्हें आप अपना आराध्य मानते हैं, क्या वे चाहते कि एक मस्जिद को तोड़कर उनके लिए मंदिर बनाया जाए?