‘जननायक’ के नाम से लोकप्रिय समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को पुरस्कार देने की मांग पिछले कुछ दशकों में बिहार के प्रमुख नेताओं द्वारा की गई थी. 1978 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े, अत्यंत पिछड़े वर्गों, शिक्षित और ग़रीब महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी.
नई दिल्ली: राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अजय कुमार सिंह ने मंगलवार (23 जनवरी) को कहा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत राष्ट्रपति द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.
कर्पूरी ठाकुर की जयंती 24 जनवरी को पड़ती है. वह पिछड़े वर्ग के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे.
बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने 1978 में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों, अत्यंत पिछड़े वर्गों, शिक्षित महिलाओं और गरीब महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी.
द वायर से बात करते हुए पटना स्थित वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन ने कहा, ‘कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का मोदी सरकार का निर्णय ओबीसी और एमबीसी (सबसे पिछड़े वर्गों) के संभावित चुनावी एकीकरण को कम करने के लिए भाजपा द्वारा एक कुशल चाल है. बिहार में ऐसी स्थिति है जहां राजद और जदयू मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे.’
यह निर्णय बिहार सरकार द्वारा अपने जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों की घोषणा के बाद आया है, जिसमें राज्य की कुल पिछड़ा वर्ग की आबादी लगभग 63% है, जिसमें ओबीसी कुल 27% और एमबीसी 36% है.
चंदन ने कहा, ‘इसके अलावा कर्पूरी ठाकुर एमबीसी समुदाय से थे, उन्हें सामाजिक न्याय की राजनीति के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक माना जाता है और वह ओबीसी और दलितों के एक बड़े नेता रहे हैं.’
भाजपा को इस कदम से चुनावी और राजनीतिक रूप से लाभ होने की संभावना है. यह निर्णय इस धारणा को भी मजबूत करता है कि भाजपा आबादी के ओबीसी वर्गों को एकजुट करके बिहार और अन्य जगहों पर अपना विस्तार करेगी, साथ ही एमबीसी नेता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने ‘सबका साथ, सबका विकास’ की कहानी को भी आगे बढ़ाएगी.
यहां तक कि अपने राम जन्मभूमि उद्घाटन भाषण में भी मोदी ने आदिवासी और ओबीसी समुदायों को भगवान राम से जोड़ने के लिए पौराणिक शबरी और निषाद राज का संदर्भ दिया. यह पूर्व भाजपा के अवतार, जिसे ब्राह्मण-बनिया पार्टी के रूप में माना जाता था, से एक बुनियादी बदलाव है.
यह देखना बाकी है कि लोकसभा चुनाव से पहले लालू-नीतीश की जोड़ी राजनीतिक रूप से इस कदम का कैसे जवाब देगी, क्योंकि इस फैसले से विपक्षी इंडिया गुट के दलों को परेशान होने की संभावना है, जिन्होंने हाल के महीनों में जाति जनगणना की मांग को प्रमुखता दी है.
‘जननायक’ के नाम से लोकप्रिय समाजवादी आइकॉन ठाकुर को पुरस्कार देने की मांग पिछले कुछ दशकों में बिहार के अधिकांश प्रमुख नेताओं द्वारा की गई थी.
पिछले साल जुलाई में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक समारोह में ठाकुर को सम्मानित करने की मांग फिर से उठाई थी, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे.