जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक ने बताया है कि राज्य सरकार ने भू-धंसाव से सर्वाधिक प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए गौचर के पास बमोथ गांव में भूमि चिह्नित की है. हालांकि, लोगों ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया है कि उनकी आजीविका शहर पर निर्भर है.
नई दिल्ली: उत्तराखंड में जोशीमठ, जहां एक साल पहले घरों और जमीन में दरारें दिखाई दी थीं, के निवासियों ने उन्हें लगभग 90 किमी दूर गौचर के पास स्थित एक गांव में बसाने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि उनकी आजीविका शहर पर निर्भर है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति, एक नागरिक समाज समूह जिसमें चमोली जिले के जोशीमठ शहर के निवासी शामिल हैं, ने कहा कि उत्तराखंड आपदा प्रबंधन सचिव डॉ. रंजीत सिन्हा द्वारा उन्हें भेजे गए सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का निर्णय रविवार को एक बैठक में ‘सर्वसम्मति’ से लिया गया है.
समिति के संयोजक अतुल सती ने रविवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘प्रभावित निवासियों और हितधारकों के साथ हाल ही में एक बैठक में आपदा प्रबंधन सचिव डॉ रंजीत सिन्हा ने बताया कि राज्य सरकार ने सबसे अधिक प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए गौचर के पास बमोथ गांव में भूमि की पहचान की है. हालांकि, लोगों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को खारिज कर दिया.’
सती ने कहा, ‘निवासी जोशीमठ से बहुत दूर जाना नहीं चाहते हैं क्योंकि उनकी आजीविका मंदिरों के इस शहर पर निर्भर है, जो बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब तीर्थ स्थलों का प्रवेश द्वार है. खतरे वाले क्षेत्रों की पहचान और चिह्नांकन में भी विसंगति है.’
पिछले साल 2 जनवरी से जोशीमठ-औली रोड के पास स्थित एक क्षेत्र में कई घरों और इमारतों में भूमि धंसने के कारण बड़ी दरारें दिखाई देने लगी थीं, जिससे अधिकारियों को बड़ी संख्या में लोगों को राहत शिविरों और अस्थायी आश्रयों में ले जाना पड़ा था.
हिमालयी शहर में भूमि धंसाव पर वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों के एक समूह द्वारा किए गए एक अध्ययन में इस संकट के लिए जोशीमठ के मोराइनिक (गतिशील ग्लेशियर द्वारा छोड़े गए पदार्थ, जो आमतौर पर मिट्टी और चट्टान होते हैं) जमाव या ढीली तलछट के ढलान पर स्थित होने, जनसंख्या दबाव, बहुमंजिला इमारतों के निर्माण और ऊपरी इलाकों से आने वाले पानी के उचित निपटान की व्यवस्था के अभाव को जिम्मेदार ठहराया गया है.
रुड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट (सीबीआरआई) के मुख्य वैज्ञानिक अजय चौरसिया ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, ‘हमने शहर भर में 14 स्थानों को उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में रखा है. जोशीमठ में मारवाड़ी, सिंहधार और मनोहर बाग जैसे क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित वॉर्डों में शामिल हैं.’
पिछले साल 30 नवंबर को केंद्र सरकार ने जोशीमठ के लिए 1,658.17 करोड़ रुपये की हालात बहाली और पुनर्निर्माण योजना को तीन वर्षों में लागू करने की मंजूरी दी थी.
सीबीआरआई, जो पिछले साल जोशीमठ संकट का अध्ययन करने वाले संस्थानों में से एक था, शहर का नए सिरे से निरीक्षण कर रहा है.
इसी बीच, प्रभावित परिवारों ने उचित और समयबद्ध पुनर्निर्माण और पुनर्वास कार्यों के लिए समिति के सदस्यों को शामिल करते हुए एक निगरानी समिति के गठन की भी मांग की है. उन्होंने यह भी मांग की कि सरकार प्रभावित परिवारों की भूमि के मुआवजे के लिए दरें तय करे.
समिति संयोजक ने कहा, ‘हम राज्य सरकार से पुनर्वास और पुनर्निर्माण योजना के उचित कार्यान्वयन के लिए जोशीमठ में एक कार्यालय स्थापित करने की भी मांग करते हैं.’
समिति ने सिन्हा को यह भी याद दिलाया कि निवासी पिछले साल अप्रैल में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आश्वासन के बावजूद उन्हें सौंपे गए 11-सूत्रीय मांगों पर कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं.
समिति की ओर से सरकार के सामने रखी गई 11 सूत्री मांगों में पूरे जोशीमठ को आपदा प्रभावित घोषित करने और प्रभावित लोगों को मुआवजा देने की प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग शामिल है.
हज़ार से अधिक जोखिम वाली इमारतों को ध्वस्त किया जाएगा
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, लगभग 1,200 आवासीय और वाणिज्यिक संरचनाएं भू-धंसाव से प्रभावित हैं और उन्हें खाली कराने और ध्वस्त करने की योजना है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जोखिम वाली ये संरचनाएं, ज्यादातर रिहायशी इमारतें- यानी लोगों के घर हैं, जो मुख्य रूप से शहर के चार नगरपालिका वॉर्ड- मनोहर बाग, सुनील, मारवाड़ी और सिंगधर में हैं. यह इलाके जनवरी 2023 में भूमि के धंसने से सबसे अधिक प्रभावित हुए थे और बड़ी संख्या में यहां से विस्थापन हुआ था.
अमर उजाला की रिपोर्ट बताती है कि करीब 1,200 घर हाई रिस्क में आ गए हैं. पहाड़ पर 14 पॉकेट ऐसी हैं, जहां पर ये सभी घर बने हैं और रहने के लिहाज से सुरक्षित नहीं है. हाई रिस्क जोन में आ रहे भवनों के लिए नक्शा तैयार किया गया है. सीबीआरआई ने सर्वे के बाद शासन को सौंपी रिपोर्ट में पुनर्वास की सिफारिश की है.
वैज्ञानिक डॉ. अजय चौरसिया ने बताया कि सर्वे के दौरान सभी भवनों में आई दरारों का अलग-अलग पैरामीटर के हिसाब से आकलन किया गया. साथ ही जमीन के भीतर आई दरारों के लिए भूवैज्ञानिक रिपोर्ट का भी आकलन किया गया, जिसके आधार पर भवनों को तीन वर्गों में बांटा गया. सर्वे के दौरान 14 हाई रिस्क जोन चिह्नित किए गए हैं.
हाल ही में जोशीमठ का फिजिकल सर्वे भी किया गया है. उन्होंने बताया कि करीब 2,500 भवनों में से 1200 भवनों को हाई रिस्क के अंतर्गत रखा गया है. इन भवनों में रह रहे लोगों के पुनर्वास की सिफारिश की गई है.