ममता बनर्जी के बाद भगवंत मान के पंजाब में कांग्रेस गठबंधन से इनकार समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर)

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पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसी तरह की घोषणा की है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मान ने बुधवार को घोषणा कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी. मान ने कहा, ‘देश में पंजाब बनेगा हीरो, आम आदमी पार्टी 13-0. आप पंजाब में कांग्रेस के साथ नहीं जा रही है.’ पंजाब में 13 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें आम आदमी पार्टी से एक सांसद- जालंधर से सुशील कुमार रिंकू हैं, जिन्होंने कांग्रेस सांसद संतोख चौधरी के निधन के बाद उपचुनाव जीता था. वहीं कांग्रेस के छह सांसद हैं. मान के बयान से पहले टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ किसी भी तरह की चर्चा में नहीं है और उनकी पार्टी राज्य में 20 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.

उत्तर प्रदेश के वाराणसी की एक अदालत ने निर्देश दिया कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की साइंटिफिक सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए और हार्ड कॉपी हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों के साथ साझा की जाए. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, बुधवार को कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट पाने के लिए संबंधित पक्षों को एक हलफनामा जमा करना होगा. बीते 18 दिसंबर को वाराणसी जिला अदालत में सीलबंद लिफाफे में एएसआई की रिपोर्ट  सौंपी गई थी. काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में 16 मई, 2022 को अदालत द्वारा आदेशित सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद परिसर के वजूखाने में एक संरचना पाई गई, जिसे हिंदू पक्ष ‘शिवलिंग’ और मुस्लिम पक्ष ने ‘फव्वारा’ बताता है. इससे पहले 16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं के एक आवेदन को स्वीकार कर लिया था, जिसमें पूरे वजूखाने क्षेत्र की सफाई बनाए रखने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी, जहां कथित ‘शिवलिंग’ पाया गया था. इस कथित शिवलिंग के मिलने के बाद साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ‘वज़ूखाना’ क्षेत्र को सील कर दिया गया था.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता की इस दलील पर सवाल उठाया कि सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम में संसद द्वारा 1981 में किए गए संशोधन को स्वीकार नहीं किया है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक,  अदालत ने बुधवार को कहा कि सरकार ऐसा कोई रुख नहीं अपना सकती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘भले ही कोई भी सरकार भारत संघ के मुद्दे का प्रतिनिधित्व करती हो, संसद का मामला शाश्वत, अविभाज्य और अटूट है’ और सरकार को संशोधन के साथ खड़ा होना होगा. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं. अदालत फरवरी 2019 में तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा किए गए संदर्भ पर सुनवाई कर रही है. जस्टिस खन्ना ने केंद्र की ओर से पेश हो रहे मेहता से पूछा कि क्या उन्होंने 1981 के संशोधन को स्वीकार किया है, जिससे उन्होंने इनकार किया. मालूम हो की 1967  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार नहीं है क्योंकि इसे केंद्रीय विधायिका द्वारा अस्तित्व में लाया गया था. हालांकि, 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन द्वारा अल्पसंख्यक दर्जा बहाल किया गया था, लेकिन इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई, जिसने जनवरी 2006 में संशोधन रद्द कर दिया. एएमयू और यूपीए सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की. लेकिन एनडीए सरकार ने 2016 में शीर्ष अदालत को सूचित किया कि वह पिछली सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले रही है.

मणिपुर में असम राइफल्स के एक जवान ने कथित तौर पर भारत-म्यांमार सीमा के पास खुद को मारने से पहले छह सहकर्मियों को गोली मार दी. रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार (24 जनवरी) सुबह यह घटना उस समय हुई जब जवान छुट्टियां बिताने के बाद चूड़ाचांदपुर स्थित अपने घर से काम पर लौटा था. द वायर को मिली जानकारी के अनुसार, मृत जवान कुकी समुदाय से है. ज्ञात हो कि मणिपुर 3 मई 2023 से राज्य जातीय संघर्ष से जूझ रहा है. असम राइफल्स ने एक बयान में कहा है कि इस गोलीबारी की घटना का जातीय हिंसा से कोई लेना-देना नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने करोड़ों रुपये के बैंक लोन घोटाला मामले में दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) के पूर्व प्रमोटरों कपिल वधावन और उनके भाई धीरज को दी गई वैधानिक जमानत रद्द कर दी. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने सीबीआई की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें तर्क दिया गया कि जमानत तब भी दी गई थी जब एजेंसी ने समयसीमा के भीतर अपना आरोप पत्र दायर किया था. कोर्ट ने कहा कि जमानत देना कानून में एक गंभीर त्रुटि थी और वधावन बंधुओं को हिरासत में लेने का आदेश दिया गया. एक ट्रायल कोर्ट ने दिसंबर 2022 में अधूरी चार्जशीट का हवाला देते हुए वधावन बंधुओं को वैधानिक जमानत दी थी. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत के आधार पर दो भाइयों को जुलाई 2022 में गिरफ्तार किया गया था. सीबीआई ने आरोप लगाया था कि डीएचएफएल, उसके तत्कालीन सीएमडी कपिल वधावन, तत्कालीन निदेशक धीरज वधावन और अन्य आरोपी व्यक्तियों ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले 17 बैंकों के कंसोर्टियम को कुल मिलाकर 42,871.42 करोड़ रुपये के लोन स्वीकृत करने के लिए प्रेरित करके धोखाधड़ी करने की आपराधिक साजिश रची. डीएचएफएल के बही-खातों में कथित हेराफेरी और कंसोर्टियम बैंकों के वैध बकाया के भुगतान में बेईमानी से चूक करके उस राशि का अधिकतर हिस्सा कथित तौर पर निकाल लिया.

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