सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में राकेश अस्थाना का नाम नहीं है और प्रशांत भूषण द्वारा मीडिया में दी गई जानकारी तथ्यात्मक तौर पर ग़लत हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वह अर्जी खारिज कर दी जिसमें गुजरात कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की सीबीआई में विशेष निदेशक पद पर हुई नियुक्ति को चुनौती दी गई थी.
अदालत ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि वह चयन समिति की ओर से सर्वसम्मति से लिए गए फैसले पर सवाल नहीं उठा सकता और फैसला अवैध नहीं है.
अदालत ने कहा कि एक बार विचार-विमर्श हो जाने पर उस विचार-विमर्श की विषय-वस्तु न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर होती है, हालांकि प्रभावी विचार-विमर्श के अभाव में वह न्यायिक समीक्षा के दायरे में होती है.
जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस एएम सप्रे की पीठ ने कहा कि चयन समिति, जिसमें उच्च अधिकारी शामिल होते हैं, उन्होंने सीबीआई निदेशक से चर्चा की थी और फैसला करने से पहले संबंधित दस्तावेजों पर विचार किया गया था.
पीठ ने कहा, ‘उस चर्चा के मद्देनजर हमारी सोची-समझी राय है कि राकेश अस्थाना, प्रतिवादी संख्या-2, की सीबीआई में विशेष निदेशक के पद पर हुई नियुक्ति में कुछ भी अवैध नहीं है. रिट याचिका नाकाम है और इसे खारिज किया जाता है.’
अदालत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि यदि कानून किसी पद पर नियुक्ति के लिए सिफारिश करने से पहले किसी व्यक्ति से विचार-विमर्श करने को कहता है तो उस व्यक्ति से विचार-विमर्श करना होता है.
पीठ ने कहा, ‘जिस व्यक्ति के साथ विचार-विमर्श किया जाना है, उसकी राय को प्रमुखता देने का सवाल विभिन्न पहलुओं पर निर्भर करता है.’
अदालत ने आगे कहा, ‘यदि कोई चयन समिति नहीं है और नियुक्ति प्राधिकारी को किसी अन्य वैधानिक या संवैधानिक प्राधिकारी से संपर्क करने की जरूरत है तो जिस व्यक्ति से विचार-विमर्श करना है, उस व्यक्ति की ओर से व्यक्त की गई राय को प्रमुखता देने का सवाल अस्तित्व में आता है.
बहरहाल, पीठ ने कहा कि जिन मामलों में चयन समिति का गठन हुआ है और विभाग, जिसमें नियुक्ति के लिए सिफारिश की जानी है उसके एक अन्य व्यक्ति के साथ विचार-विमर्श करना है, उस सूरत में विचार-विमर्श चर्चा की एक प्रक्रिया भर है जिसे सिफारिश के वक्त ध्यान में रखने की जरूरत है और इसे प्रमुखता देना नहीं कहा जा सकता.
पीठ ने कहा, ‘हम चयन समिति के सर्वसम्मति से लिए गए फैसले पर सवाल नहीं उठा सकते और फैसला करने से पहले सीबीआई के निदेशक ने चर्चा में हिस्सा लिया था और यह संबंधित सामग्रियों एवं विचारों पर आधारित है.’
याचिकाकर्ता एनजीओ कॉमन कॉज की दलीलें खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में अस्थाना का नाम नहीं है. एनजीओ ने कहा था कि अस्थाना से जुड़ी एक कंपनी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है.
पीठ ने कहा, ‘लिहाजा राकेश अस्थाना के सेवा रिकॉर्ड, काम एवं अनुभव पर विचार करने के बाद प्राथमिकी का दर्ज होना राकेश अस्थाना को विशेष निदेशक पद पर नियुक्त किए जाने की राह में नहीं आएगा.
न्यायालय ने कहा कि एनजीओ ने अपनी याचिका में और वकील प्रशांत भूषण ने मीडिया की जिन खबरों का हवाला दिया है, वे तथ्यात्मक तौर पर गलत हैं.