श्रीनगर: भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के स्वास्थ्य केंद्रों का नाम बदलकर ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ करने के कदम से लद्दाख में विवाद खड़ा हो गया है. क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली बौद्ध संगठन और निर्वाचित प्रतिनिधियों ने इसे केंद्रशासित प्रदेश में रहने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान बताया है.
क्या था मामला
पिछले साल नवंबर में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (एबी-एचडब्ल्यूसी) का नाम बदलकर ‘आरोग्यम परमं धनं’ टैगलाइन के साथ ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ करने का फैसला किया था. मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 25 नवंबर, 2023 को लिखे एक पत्र में रीब्रांडिंग को लागू करने के लिए कहा और उन्हें 31 दिसंबर, 2023 तक नए नाम के साथ इन केंद्रों की तस्वीरें जमा करने के लिए कहा था. . यहां तक कि रीब्रांडिंग कवायद के लिए प्रति केंद्र 3,000 रुपये भी निर्धारित किए गए थे.
हालांकि, अमल के बाद लद्दाख, विशेष रूप से बौद्ध-बहुल लेह जिले में, एक प्रमुख धार्मिक समूह ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसे लेकर केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन के साथ अपनी चिंताओं को उठाने के लिए क्षेत्र के निर्वाचित निकायों को लिखा है.
लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन (एलबीए) के कार्यवाहक अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लाक्रूक ने लेह और करगिल दोनों जिलों की पहाड़ी परिषदों के मुख्य कार्यकारी पार्षदों को लिखा है, ‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार का चिकित्सा सहायता केंद्रों/स्वास्थ्य और परिवार कल्याण केंद्रों का नाम बदलकर उन्हें ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ कहने का हालिया आदेश दुर्भाग्यपूर्ण है और लद्दाख के लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने के समान है.’
एलबीए ने दोनों निर्वाचित निकायों के प्रमुखों से उस निर्णय रद्द करने को कहा है. दोरजे ने पत्र में कहा, ‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और सरकारी विभागों में धार्मिक नामों और प्रतीकों का इस्तेमाल असंवैधानिक और अस्वीकार्य है.’
द वायर से बात करते हुए दोरजे, जो पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी-भाजपा सरकार में मंत्री भी थे, ने कहा कि यह निर्णय उन्हें स्वीकार्य नहीं है. ‘यह हमारे खिलाफ एक साजिश है. अस्पतालों को मंदिर नाम देना क्या मज़ाक है? यह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में एक कदम है.’
उल्लेखनीय है कि एलबीए बौद्ध बहुल लेह में सबसे शक्तिशाली धार्मिक समूह है और इसे क्षेत्र में बौद्ध पहचान के संरक्षक के रूप में देखा जाता है. इसका क्षेत्र के सामाजिक और राजनीतिक मामलों पर काफी प्रभाव है.
स्वास्थ्य केंद्रों के नामकरण की जिले के निर्वाचित प्रतिनिधियों ने भी आलोचना की है.
लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद-लेह के पार्षदों ने लेह और करगिल दोनों के सीईसी को लिखा है कि इस फैसले से लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं. हिल काउंसिल, लेह के 10 पार्षदों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है, ‘यह निर्णय स्वास्थ्य केंद्रों के सार्वभौमिक रूप से सुलभ होने में बाधा बन सकता है.’
उन्होंने लद्दाख के निवासियों की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का हवाला देते हुए सीईसी से निर्णय को रद्द करने का भी आग्रह किया है.
ससपोल निर्वाचन क्षेत्र के पार्षद स्मांला दोरजे नर्बू ने द वायर को बताया कि लोग इस फैसले से आहत हैं.
स्मांला, जो लद्दाख में युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा, ‘स्वास्थ्य सुविधाएं हर किसी के लिए सुलभ होनी चाहिए, लेकिन यह कदम इन सुविधाओं तक पहुंच में बाधाएं पैदा करेगा.’
भाजपा ने स्थानीय अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया
इस बीच डैमेज कंट्रोल करते हुए सीईसी, एलएएचडीसी-लेह, ताशी गेलसन, जो भाजपा से जुड़े हैं, ने उपराज्यपाल बीडी मिश्रा को पत्र लिखा है. उन्होंने पत्र में इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि इस कदम से जनता में काफी नाराजगी पैदा हुई है.
हालांकि, सीईसी ने विवाद के लिए लद्दाख स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को दोषी ठहराया और कहा कि वे टाइटल का अनुवाद राज्य की भाषा में कर सकते थे.
एक हैंडआउट में सीईसी ने कहा कि ‘भारत सरकार का किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था क्योंकि आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पूर्ण और सटीक शीर्षक का राज्य की भाषा में अनुवाद किया जा सकता है.’ उन्होंने दावा किया कि स्वास्थ्य विभाग ने निर्देश की अनदेखी की और लोगों की भावनाओं पर पड़ सकने वाले नकारात्मक प्रभाव के बारे में सोचे बिना सबसे आसान रास्ता चुना.
बता दें कि यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब लद्दाख के दो प्रमुख समूह जम्मू-कश्मीर से अलग होने के बाद क्षेत्र के लिए सुरक्षा उपायों की मांग के लिए केंद्र सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं.
लद्दाख के लिए सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस ने पिछले महीने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात कर अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेश में बांटने के फैसले के बाद से लद्दाख में उभर रही चिंताओं और मुद्दों पर चर्चा की थी.
बताया गया है कि उन्होंने अपना चार सूत्रीय एजेंडा: लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा, भारत के संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपाय, केंद्रशासित प्रदेश के लिए दो लोकसभा सीटें और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर दोहराया था.
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