नई दिल्ली: पिछले महीने सामने आए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़े बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के संबंध में एक चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं. 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में नाबालिगों के खिलाफ साइबर अपराध के मामलों में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
क्राई/CRY (चाइल्ड रॉइट एंड यू) द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, इन साइबर अपराधों में विभिन्न अपराध शामिल हैं जैसे साइबर पोर्नोग्राफ़ी, बच्चों की अश्लील सामग्री का प्रसार, साइबरस्टॉकिंग, बदमाशी और संबंधित गतिविधियां.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, क्राई की सीईओ पूजा मारवाह बताती हैं कि कोविड-19 महामारी ने अनजाने में बच्चों का ऑनलाइन शिक्षा और मनोरंजन प्लेटफार्मों के प्रति जोखिम बढ़ा दिया है, जिससे संभावित रूप से ऑनलाइन जोखिमों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ गई है. नवीनतम एनसीआरबी डेटा इन चिंताओं की पुष्टि करता है.
उन्होंने कहा, ‘हालांकि बच्चों को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म से दूर रखना निश्चित रूप से एक विकल्प नहीं है, लेकिन हमारे पास अपराधियों पर नज़र रखने और युवा पीढ़ियों के लिए इस जगह को सुरक्षित बनाने के लिए और अधिक कड़े तंत्र होने चाहिए.’
एनसीआरबी रिपोर्ट में 2022 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के कुल 1,823 मामले सामने आए हैं, जो इसके पिछले वर्ष (2021) 1,376 थे. इन अपराधों में साइबर पोर्नोग्राफी या अनुचित सामग्री के प्रसार के 1,171 मामले, साइबरस्टॉकिंग और धमकाने के 158 मामले और 416 अन्य साइबर-संबंधी अपराध शामिल हैं.
कुल मिलाकर भारत में बच्चों के खिलाफ अपराधों में 8.73 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, 2022 में कुल 162,449 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में यह संख्या 149,404 थी. देश भर में प्रतिदिन बच्चों के खिलाफ औसतन 445 से अधिक अपराध होते हैं, यानी प्रति घंटे 18 से अधिक घटनाएं.
एक दशक लंबे विश्लेषण से एक चिंताजनक प्रवृत्ति का पता चलता है, जहां 2013 और 2022 के बीच बच्चों के खिलाफ अपराधों में 179 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसी अवधि के दौरान कुल अपराध दर में 12.3 प्रतिशत की कमी आई है.
मारवाह रिपोर्ट किए गए मामलों में वृद्धि का कारण बढ़ती जागरूकता को बताती हैं जिसके कारण एफआईआर दर्ज करने में बढ़ोतरी हुई है. हालांकि, वह आगाह करती हैं कि कई मामले, विशेष रूप से दूरदराज के इलाकों में, रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं और बच्चों के खिलाफ अपराधों का वास्तविक स्तर रिपोर्ट की तुलना में अधिक हो सकता है.
पॉक्सो अधिनियम के तहत होने वाले अपराध के साथ-साथ अपहरण बच्चों के खिलाफ होने वाले अधिकांश अपराधों में शामिल था, जो कुल मामलों का 85 प्रतिशत से अधिक रहा. चौंकाने वाली बात यह है कि लगभग 99 प्रतिशत यौन अपराध पीड़ितों और 97 प्रतिशत पॉक्सो से संबंधित मामलों में लड़कियां शामिल हैं और अपराधी अक्सर पीड़ितों को जानते हैं.
भौगोलिक दृष्टि से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में बच्चों के खिलाफ अपराधों की संख्या सबसे अधिक है, जो सामूहिक रूप से दर्ज किए गए सभी मामलों में से लगभग आधे का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि, प्रति जनसंख्या अपराध दर के मामले में दिल्ली शीर्ष पर है, इसके बाद मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और कर्नाटक हैं.
मारवाह ने भारत की बाल संरक्षण प्रणालियों को मजबूत करने की तत्काल जरूरत पर बल दिया और वित्तीय और प्रणालीगत दोनों तरह के संसाधनों में वृद्धि की मांग की. उन्होंने कहा, ‘ग्राम स्तरीय बाल संरक्षण समितियां (वीएलसीपीसी) औपचारिक प्रणाली से जुड़ने के पहले माध्यम के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं और सतर्कता बनाए रखने और सामुदायिक स्तर पर अपराधों का शिकार बन सकते वाले बच्चों की पहचान करने में काफी मदद कर सकती हैं.’