धर्मांतरण विरोधी क़ानून का पालन नहीं करने पर 8 जोड़ों की सुरक्षा की मांग वाली याचिका ख़ारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जान की सुरक्षा की मांग करने वाले आठ हिंदू-मुस्लिम जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया है कि उनकी शादियां उत्तर प्रदेश ग़ैरक़ानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के अनुपालन में नहीं थीं. याचिकाकर्ता पांच मुस्लिम पुरुषों ने हिंदू महिलाओं और तीन हिंदू पुरुषों ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जान की सुरक्षा की मांग करने वाले आठ हिंदू-मुस्लिम जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया है कि उनकी शादियां उत्तर प्रदेश ग़ैरक़ानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के अनुपालन में नहीं थीं. याचिकाकर्ता पांच मुस्लिम पुरुषों ने हिंदू महिलाओं और तीन हिंदू पुरुषों ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जान की सुरक्षा की मांग करने वाले आठ हिंदू-मुस्लिम जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उनकी शादियां उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम या जिसे आमतौर पर धर्मांतरण विरोधी कानून के रूप में जाना जाता है, के अनुपालन में नहीं थी.

इन आठ जोड़ों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था और संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें सुरक्षा मिले और उनके वैवाहिक जीवन में दूसरों द्वारा हस्तक्षेप न करने की गारंटी दी जाए. इन सभी की याचिकाओं को अदालत ने 10 से 16 जनवरी के बीच खारिज कर दिया था.

अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, इन आठ मामलों में पांच मुस्लिम पुरुषों ने हिंदू महिलाओं से शादी की थी और तीन हिंदू पुरुषों ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी. अदालत ने आदेश में याचिकाकर्ताओं के धर्म का उल्लेख किया है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने अपने आदेश में कहा कि ये अंतरधार्मिक विवाह के मामले हैं, लेकिन ये विवाह कानून के अनुसार नहीं थे, क्योंकि धर्मांतरण विरोधी कानून का पालन नहीं किया गया था.

जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अंतर-धार्मिक जोड़ों के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया.

अदालत ने कहा, ‘इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहत प्रदान नहीं की जा सकती. परिणामस्वरूप, रिट याचिका खारिज की जाती है. हालांकि, अगर याचिकाकर्ता कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद विवाह करते हैं तो वे नई रिट याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं.’

उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम-2021 में विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानूनों को वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है.

मालूम हो कि नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार तथाकथित ‘लव जिहाद’ और शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर लगाम लगाने के लिए ‘उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम’ ले आई थी.

इसके तहत विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानूनों को वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

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