मुंबई: बीएमसी ने सिर्फ़ सत्तारूढ़ विधायकों को फंड दिया, विपक्षी विधायकों के आवेदन लंबित

बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) में निकाय चुनाव लंबित रहने के दौरान फरवरी 2023 में लाई गई एक नीति मुंबई के विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्य कराने के लिए बीएमसी से फंड मांगने की अनुमति देती है. एक पड़ताल के मुताबिक, मुंबई के 36 में से 21 सत्तारूढ़ विधायकों को तो फंड मिल रहा है, लेकिन 15 विपक्षी विधायकों के आवेदन महीनों से लंबित पड़े हैं.

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मुंबई स्थित बीएमसी मुख्यालय. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Sailko/CC BY 3.0)

बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) में निकाय चुनाव लंबित रहने के दौरान फरवरी 2023 में लाई गई एक नीति मुंबई के विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्य कराने के लिए बीएमसी से फंड मांगने की अनुमति देती है. एक पड़ताल के मुताबिक, मुंबई के 36 में से 21 सत्तारूढ़ विधायकों को तो फंड मिल रहा है, लेकिन 15 विपक्षी विधायकों के आवेदन महीनों से लंबित पड़े हैं.

मुंबई स्थित बीएमसी मुख्यालय. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Sailko/CC BY 3.0)

नई दिल्ली: देश की वित्तीय राजधानी मुंबई, जहां निकाय चुनाव दो साल से लंबित हैं, में आपके आस-पास बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर हो सकती है कि आपका विधायक किस पार्टी का है. इस संबंध में इंडियन एक्सप्रेस की एक पड़ताल बताती है कि जब विधायक सत्तारूढ़ दल से हो तो सरकारी कोष के दरवाजे खुल जाते हैं और जब विपक्ष से हो तो बंद हो जाते हैं.

मुंबई में 36 विधायक हैं, जिनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) गठबंधन के 21 और विपक्ष के 15 विधायक शामिल हैं. फरवरी 2023 की नीति विधायकों को नागरिक कार्यों के लिए बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) से फंड मांगने की अनुमति देती है.

इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल के तहत जांच गए सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम से प्राप्त आधिकारिक दस्तावेज दिखाते हैं कि सत्तारूढ़ गठबंधन के 21 विधायकों में से प्रत्येक ने दिसंबर 2023 तक फंड मांगा और प्राप्त भी किया.

इसके विपरीत 15 विपक्षी विधायकों [शिवसेना (यूबीटी – उद्धव बाल ठाकरे) और कांग्रेस के] में से एक को भी कोई पैसा नहीं मिला, जबकि उनमें से 11 ने फंड मांगा था. अखबार ने सभी 15 विपक्षी विधायकों से स्वतंत्र रूप से यह सत्यापित करने के लिए बात की कि क्या उन्होंने फंड की मांग की थी और क्या प्रभारी मंत्रियों ने इसे मंजूरी दी.

अगर धनराशि स्वीकृत हो जाती तो इसका इस्तेमाल विभिन्न विकास कार्यों के लिए किया जाता. ये वे कार्य हैं, जो 227 निर्वाचित बीएमसी पार्षदों द्वारा आमतौर पर किए जाते, लेकिन वर्तमान में देश का सबसे अमीर नगर निकाय लगभग दो वर्षों से बिना निर्वाचित निकाय के काम कर रहा है.

4 फरवरी 2023 को बजट पेश होने के कुछ दिनों बाद 16 फरवरी को बीएमसी ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि शहर को चलाने के लिए फंड मुंबई के 36 विधायकों के माध्यम से जारी किया जाएगा.

फरवरी 2023 के प्रस्ताव के बाद अनुमोदन पत्र मे कहा गया, ‘विधायकों/सांसदों से उनके संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के भीतर विभिन्न विकास कार्यों, बुनियादी ढांचे के कार्यों, सौंदर्यीकरण कार्यों आदि के लिए धन उपलब्ध कराने के लिए बड़ी संख्या में पत्र प्राप्त हुए हैं. इसलिए, 16 फरवरी 2023 को प्रशासक द्वारा इस नए प्रावधान के लिए मंजूरी दी गई है.’

इस प्रावधान के अनुसार, नगरीय निकाय ने 36 विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में किए जाने वाले नागरिक कार्यों के लिए 1,260 करोड़ रुपये (52,619 करोड़ रुपये के बीएमसी बजट का लगभग 2.5 प्रतिशत) अलग रखे. प्रत्येक विधायक अधिकतम 35 करोड़ रुपये मांगने का हकदार था.

हालांकि, फरवरी 2023 और 31 दिसंबर 2023 के बीच 10 महीनों में नगर आयुक्त और प्रशासक आईएस चहल ने भाजपा और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के 21 विधायकों को 500.58 करोड़ रुपये वितरित किए, जबकि विपक्षी विधायकों को कोई फायदा नहीं हुआ.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी इस पड़ताल को ‘बीएमसी विधायक फंडिंग’ नाम दिया है, जिसका पहला भाग बुधवार (31 जनवरी) को प्रकाशित हुआ. रिपोर्ट में प्रक्रिया और इसके चयनात्मक तरीके पर सवाल उठाए गए हैं.

बीएमसी के अधिकार क्षेत्र में आने वाले इस क्षेत्र के 36 विधायकों में 15 भाजपा, छह एकनाथ शिंदे-शिवसेना, 9 शिवसेना (यूबीटी), 4 कांग्रेस और एक-एक विधायक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और समाजवाद पार्टी (सपा) के हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रभारी मंत्रियों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए धन मांगने वाले विधायकों के प्रस्तावों को मंजूरी देने और स्वीकृत प्रस्तावों को बीएमसी को अग्रेषित करने के लिए अधिकृत किया गया है, जिसके बाद वह फंड बांटता है. जब तक यह नीति लागू नहीं हुई थी, तब तक विधायकों के लिए बीएमसी के कोष से पैसा निकालने का कोई प्रावधान नहीं था.

बीएमसी के प्रस्ताव के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और मुंबई के दो संरक्षक मंत्रियों – मंगल प्रभात लोढ़ा (मुंबई उपनगर – 26 विधानसभा सीटें) और दीपक केसरकर (मुंबई शहर – 10 विधानसभा सीटें) – ने धन के लिए विधायकों द्वारा किए गए अनुरोधों को मंजूरी देना शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री और मंत्रियों की मंजूरी के बाद बीएमसी ने फंड बांटना शुरू कर दिया.

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में प्रत्येक जिले के लिए संरक्षक मंत्री होते हैं, जो जिले की योजना और विकास की देखरेख करते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि 11 मामलों में विपक्षी विधायकों से लेकर अभिभावक मंत्रियों तक के फंड अनुरोधों को मंजूरी दी जानी बाकी है और बीएमसी को भेजा जाना बाकी है. विपक्षी विधायकों द्वारा लिखे गए पत्रों से पता चलता है कि कुछ मामलों में धन के लिए अनुरोध मार्च 2023 की शुरुआत में ही मंत्रियों को भेज दिए गए थे.

दूसरी ओर, रिकॉर्ड बताते हैं कि भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) से संबंधित विधायकों के अनुरोधों को मुख्यमंत्री और दो संरक्षक मंत्रियों द्वारा मंजूरी दे दी गई थी, जिनमें से कुछ को एक सप्ताह से कुछ अधिक समय में बीएमसी को भेज दिया गया था.

वहीं, प्रभारी मंत्री लोढ़ा तो सीधा बीएमसी गए और फंड मिल गया. 23 जून 2023 को मालाबार हिल से भाजपा विधायक लोढ़ा ने नगर आयुक्त और प्रशासक चहल को पत्र भेजकर 30 करोड़ रुपये की मांग की थी. एक सप्ताह से भी कम समय में 28 जून को बीएमसी ने 24 करोड़ रुपये (मांगी गई धनराशि का 80 प्रतिशत) के प्रारंभिक वितरण को मंजूरी दे दी.

आरटीआई दस्तावेजों से पता चला कि मंत्री केसरकर ने प्रस्तावों को लगभग उसी दिन मंजूरी दे दी, जिस दिन विधायकों ने उन्हें लिखा था.

इस बीच, विपक्षी विधायक बस इंतजार करते रहे. उदाहरण के तौर पर पिछले साल 23 जून को जोगेश्वरी से शिवसेना (यूबीटी) विधायक रवींद्र वायकर ने लोढ़ा को पत्र लिखकर 16 करोड़ रुपये की मांग की थी. 26 अगस्त को वायकर ने सीएम शिंदे को पत्र लिखकर शिकायत की कि उन्हें अभी तक बीएमसी से फंड नहीं मिला है.

उन्होंने लिखा कि मंत्री लोढ़ा को लिखने के बावजूद उनके निर्वाचन क्षेत्र को ‘एक रुपया भी आवंटित नहीं किया गया है’, जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन के 15 विधायकों को उनके वार्ड कार्यालयों में धन प्राप्त हुआ है. उसी दिन चहल को लिखे एक अलग पत्र में उन्होंने प्रशासक को धन के लिए अपने अनुरोध के बारे में याद दिलाया और उल्लेख किया कि धन की कमी के कारण उनके वार्ड में मौजूदा नागरिक बुनियादी ढांचे में गिरावट आई है.

इस बीच प्रभारी मंत्री लोढ़ा ने अखबार से कहा कि प्रत्येक विधायक को ‘चाहे वह किसी भी पार्टी से हो’ धनराशि वितरित की जाएगी.

लोढ़ा ने कहा, ‘वर्तमान में मेरे पास विपक्षी विधायकों का कोई लंबित पत्र नहीं है. हम जो प्रस्ताव प्राप्त कर रहे हैं उनकी योग्यता का आकलन करके उदार तरीके से धन का वितरण कर रहे हैं और किसी के प्रति कोई पक्षपात नहीं किया जा रहा है.’

हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) विधायक वायकर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हमारी पार्टी के लगभग हर विधायक ने संरक्षक मंत्रियों को पत्र लिखकर अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए धन की मांग की है. हालांकि, हमें अभी तक धनराशि नहीं मिली है और उन पत्रों को लिखे छह-सात महीने से अधिक समय हो गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हैरानी की बात यह है कि सत्ता पक्ष के लोगों को पत्र भेजने के कुछ ही हफ्तों के भीतर उनके फंड के लिए मंजूरी मिल जा रही है. जब हमने बीएमसी अधिकारियों से पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि जब तक प्रभारी मंत्री अनुरोध को मंजूरी नहीं देते हैं, हम पैसे नहीं दे सकते. यह सरासर सत्ता और जनता के पैसे का दुरुपयोग है.’

कांग्रेस की वर्षा गायकवाड़ ने कहा, ‘मैंने पिछले साल फरवरी और मार्च के बीच दीपक केसरकर को पत्र लिखकर अपने निर्वाचन क्षेत्र धारावी के लिए फंड की मांग की थी, लेकिन आज तक मुझे एक भी रुपया नहीं मिला है.’

सपा के अबु आजमी ने कहा, ‘पत्र लिखने के अलावा मैंने संरक्षक मंत्री लोढ़ा से मुलाकात की और उनसे हमें धन देने का अनुरोध किया. जब भी वह मुझसे मिलते हैं तो कहते हैं कि मुझे फंड मिल जाएगा, लेकिन वास्तव में हम अभी भी पैसा मिलने का इंतजार कर रहे हैं.’

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