छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम ने इस आधार पर ज़मानत मांगी है कि वह पिछले चार वर्षों से जेल में हैं और ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यूएपीए की धारा 13 के तहत अपराध के लिए अधिकतम सज़ा सात साल है. वह अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सज़ा की आधी से अधिक काट चुके हैं और प्रावधान के तहत ज़मानत के हक़दार हैं.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को यहां के एक ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम की उस याचिका पर अगले महीने तक फैसला करे, जिसमें देशद्रोह और गैरकानूनी गतिविधियों के आरोपों से जुड़े 2020 के सांप्रदायिक दंगों के मामले में जमानत की मांग की गई है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, शरजील इमाम ने इस आधार पर जमानत मांगी है कि वह पिछले चार वर्षों से हिरासत में हैं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत अपराध के लिए अधिकतम सजा सात साल है.
उन्होंने कहा कि वह अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा की आधी से अधिक सजा काट चुके हैं और प्रावधान के तहत जमानत के हकदार हैं.
धारा 436ए सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) के अनुसार, किसी व्यक्ति को हिरासत से रिहा किया जा सकता है अगर उसने अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा की आधी से अधिक अवधि बिता ली है.
सुनवाई के दौरान शरजील के वकील ने अदालत को सूचित किया कि मामले में अभियोजन पक्ष के कुल 43 गवाह हैं, जिनमें से अब तक 22 से पूछताछ की जा चुकी है.
2022 में ट्रायल कोर्ट ने शरजील के खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (शत्रुता को बढ़ावा देना), 153बी (राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आरोप), 505 (सार्वजनिक शरारत पैदा करने वाले बयान) और यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत आरोप तय किए थे.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, नियमित जमानत की मांग करने वाली शरजील इमाम की याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस मनोज जैन की पीठ ने ट्रायल कोर्ट को सुनवाई की अगली तारीख यानी 7 फरवरी से 10 दिनों के भीतर वैधानिक जमानत के लिए उनकी अर्जी पर निर्णय लेने और फैसला सुनाने का निर्देश दिया.
अदालत ने कहा कि जमानत के लिए उनकी याचिका पहले से ही निचली अदालत में लंबित है. हालांकि, अगर जमानत याचिका ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज कर दी जाती है, तो शरजील फैसले को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दे सकते हैं.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शरजील इमाम ने 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और 16 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण दिया था, जहां उन्होंने कथित तौर पर असम और बाकी पूर्वोत्तर को देश से काटने की धमकी दी थी.
उन पर दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने मामला दर्ज किया था. मामला शुरू में राजद्रोह के अपराध के लिए दर्ज किया गया था, बाद में यूएपीए की धारा 13 लागू की गई थी. वह 28 जनवरी, 2020 से मामले में हिरासत में हैं.
मालूम हो कि साल 2020 में शरजील इमाम को पांच अलग-अलग राज्यों- असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, दिल्ली और उत्तर प्रदेश- में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर हुए राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान दिए गए भाषणों के संबंध में पुलिस द्वारा उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद गिरफ्तार किया गया था. फिर दिल्ली दंगों की ‘बड़ी साजिश’ वाले मामले में भी आरोपी के रूप में नामजद किया गया था.
इनमें से किसी भी मामले में दोषी न ठहराए जाने के बावजूद इमाम जेल में चार साल बिता चुके हैं. उनके खिलाफ दर्ज कुल आठ मामलों में से पांच में उन्हें जमानत मिल चुकी है, एक में उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया गया. ऐसे में उनके खिलाफ केवल यूएपीए के मामले ही बचे हैं.
इन चार वर्षों में उनकी जमानत याचिकाएं दिल्ली की विभिन्न अदालतों में लंबित रहीं. इनमें पिछले साल दायर की गई एक याचिका भी शामिल है, जिसमें उन्होंने इस आधार पर तत्काल जमानत की मांग की थी कि वे यूएपीए की धारा 13 के तहत अधिकतम सजा (सात वर्ष) की आधी से अधिक अवधि पूरी कर चुके हैं.