राजधानी बेंगलुरु में व्यवसायों को निशाना बनाने वाले कन्नड़ समर्थक समूहों के नेतृत्व में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद कर्नाटक सरकार ने साइन बोर्ड पर कन्नड़ भाषा का 60 प्रतिशत उपयोग अनिवार्य करने वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दी थी. सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार और राजभवन के बीच यह पहली असहमति है, जो खुलकर सामने आई है.
नई दिल्ली: कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उस अध्यादेश को खारिज कर दिया है, जो राज्य में व्यवसायों के साइन बोर्ड पर कन्नड़ भाषा के उपयोग को बढ़ाने का प्रयास करता है. उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने बीते मंगलवार (30 जनवरी) को यह जानकारी दी.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य कैबिनेट ने बीते 5 जनवरी को कन्नड़ भाषा व्यापक विकास अधिनियम में संशोधन करने और साइन बोर्ड पर राज्य की भाषा का 60 प्रतिशत उपयोग अनिवार्य करने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी थी. वर्तमान में कानून के अनुसार व्यवसायों के नाम प्रदर्शित करने वाले बोर्ड के ‘ऊपरी आधे हिस्से’ में कन्नड़ के उपयोग की आवश्यकता होती है.
शिवकुमार ने कहा, ‘हमने एक कानून बनाया और अध्यादेश को मंजूरी दी. राज्यपाल अपनी सहमति दे सकते थे. इसके बजाय उन्होंने इसे यह कहते हुए वापस भेज दिया कि इसे विधानसभा में पारित किया जाना चाहिए.’
दिसंबर 2023 में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में व्यवसायों को निशाना बनाने वाले कन्नड़ समर्थक समूहों के नेतृत्व में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर राज्य सरकार ने इस अध्यादेश को मंजूरी दी थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार और राजभवन के बीच यह पहली असहमति है, जो खुलकर सामने आई है.
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले महीने शुरू होने वाले बजट सत्र से ठीक पहले अस्वीकृति का समय महत्वपूर्ण हो सकता है. राज्यपाल 12 फरवरी को विधानमंडल के दोनों सदनों को संबोधित करने वाले हैं.
शिवकुमार की घोषणा से एक दिन पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्यपाल गहलोत से मुलाकात की थी. रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री द्वारा दिसंबर 2023 में विधानमंडल के बेलगावी सत्र में पारित विधेयकों को मंजूरी देने का आग्रह करने के बाद राज्यपाल ने तीन विधेयकों पर हस्ताक्षर किए थे.
स्वीकृत विधेयकों में से एक चिकित्सा स्नातकों के लिए अनिवार्य ग्रामीण सेवा को समाप्त करता है. हालांकि, बेलगावी सत्र में पारित 17 विधेयकों में से राज्यपाल ने केवल पांच पर सहमति दी है.
इसके अलावा कर्नाटक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को रद्द करने का निर्णय राज्य और राजभवन के बीच संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है.
हाल ही में पीपुल्स फोरम फॉर कर्नाटक एजुकेशन ने राज्यपाल को 10 लाख हितधारकों द्वारा हस्ताक्षरित एक याचिका प्रस्तुत की थी, जिसमें राज्य में एनईपी की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग की गई.
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