लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने लोगों से संविधान की छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और विशेष दर्जे की मांग, एक लोक सेवा आयोग के निर्माण, स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण, शीघ्र भर्ती अभियान और संसद में लेह और करगिल जिलों के लिए अलग प्रतिनिधित्व के लिए लड़ने के लिए एकजुट होने को कहा है.
नई दिल्ली: लद्दाख में बौद्ध और मुस्लिम गठबंधन, जो क्षेत्र के राज्य के दर्जे और विशेष दर्जे के लिए लड़ रहे हैं, ने केंद्र को अपनी मांगें स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए शनिवार (3 फरवरी) को ‘करगिल बंद’ और ‘लेह चलो’ का आह्वान किया है.
लेह में बौद्ध समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाला गठबंधन ‘लेह एपेक्स बॉडी’ और करगिल में मुस्लिम समूहों का प्रतिनिधि संगठन ‘करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस’ ने लेह निवासियों को एक मार्च में भाग लेने और करगिल के निवासियों को शनिवार को पूर्ण बंद रखने के लिए कहा है.
Ladakh today.
Support #Ladakh’s demand for statehood and sixth schedule, PSC, employment and separate parliamentary seats for Kargil and Leh ✊🏼 pic.twitter.com/JXOxgE505M— Sajjad Kargili | سجاد کرگلی (@SajjadKargili_) February 3, 2024
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों संगठनों ने लोगों से संविधान की छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा की मांग, एक लोक सेवा आयोग के निर्माण, स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण, शीघ्र भर्ती अभियान और संसद में लेह और करगिल जिलों के लिए अलग प्रतिनिधित्व के लिए लड़ने के लिए एकजुट होने को कहा है.
लेह में शनिवार को लोग इन मांगों को लेकर सड़क पर भी नजर आए.
यह आह्वान तब आया है जब केंद्र सरकार ने बीते शुक्रवार (2 फरवरी) को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के नेतृत्व में अपने प्रतिनिधियों और 19 फरवरी को दिल्ली में लद्दाख के प्रतिनिधियों के बीच दूसरे दौर की वार्ता की घोषणा की.
केंद्र ने लद्दाख के करगिल और लेह जिलों की मांगों पर चर्चा के लिए पिछले साल जनवरी में नित्यानंद राय के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था.
समिति का पुनर्गठन नवंबर 2023 में किया गया था, क्योंकि आरोप थे कि यह कोई प्रगति नहीं कर रही थी. पुनर्गठित समिति ने दिसंबर 2023 में दिल्ली में पहले दौर की वार्ता की.
करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेता सज्जाद करगिली ने एक वीडियो में लोगों से पूर्ण बंद रखने और लेह निवासियों से बड़ी संख्या में मार्च में भाग लेने के लिए कहा है.
Happening Now in #Ladakh | Despite harsh cold people in #Leh gathered and marching with the demand for Statehood, Constitutional safeguards under the Sixth Schedule, and PSC and employment opportunities for Ladakh. pic.twitter.com/yF72ZUVRNZ
— Sajjad Kargili | سجاد کرگلی (@SajjadKargili_) February 3, 2024
उन्होंने कहा, ‘संसद में घोषणाएं की गईं कि हमें सशक्त बनाया जाएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि आज हम ऐतिहासिक अशक्तिकरण का सामना कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि हमारे संयुक्त प्रयास सफल होंगे.’
उन्होंने कहा, ‘यह लोकतंत्र, हमारी संस्कृति और भाषा की सुरक्षा के लिए हम सभी का संयुक्त संघर्ष है.’
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को खत्म करने के साथ इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया गया था.
लद्दाखी बौद्धों ने इस फैसले पर खुशी जताई थी, जबकि मुसलमानों ने इस कदम का विरोध किया था. हालांकि दोनों समुदाय तब से भूमि और नौकरी आरक्षण के लिए हाथ मिला चुके हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि वे गैर-स्थानीय लोग हावी हो जाएंगे.
दोनों संगठनों ने अपनी मांगों पर दबाव बनाने के लिए समय-समय पर कई संयुक्त विरोध प्रदर्शन किए हैं.
दोनों संगठनों ने पिछले हफ्ते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का नाम बदलकर ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ करने के फैसले के खिलाफ भी निंदा की थी.
उनके आक्रोश के बाद भाजपा के नेतृत्व वाली लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, लेह ने इन केंद्रों को ‘त्से-रिंग नादमेद सोनस’ (स्थानीय भोटी भाषा में लंबे जीवन और कल्याण के केंद्र) के रूप में फिर से ब्रांड करने और मंदिर शब्द को हटाने का प्रस्ताव दिया.
विरोध का नेतृत्व लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन ने किया, जिसके अध्यक्ष चेरिंग दोरजे ने केंद्र पर ‘लद्दाखी लोगों की भावनाओं के साथ खेलने’ का आरोप लगाया था.