हर्ष मंदर के समर्थन में विद्वान बोले- सीबीआई छापेमारी सरकार की प्रतिशोधात्मक कार्रवाई

नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर के घर और कार्यालय पर बीते शुक्रवार को सीबीआई ने छापा मारा था, जिसके विरोध में 250 से अधिक शख़्सियतों ने एक पत्र जारी करके मंदर के समर्थन में एकजुटता दिखाई है. उन्होंने सीबीआई द्वारा दर्ज एफ़आईआर और चल रही अन्य सभी जांचों को बंद करने की मांग की है.

हर्ष मंदर. (फोटो: यूट्यूब/द वायर)

नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर के घर और कार्यालय पर बीते शुक्रवार को सीबीआई ने छापा मारा था, जिसके विरोध में 250 से अधिक शख़्सियतों ने एक पत्र जारी करके मंदर के समर्थन में एकजुटता दिखाई है. उन्होंने सीबीआई द्वारा दर्ज एफ़आईआर और चल रही अन्य सभी जांचों को बंद करने की मांग की है.

हर्ष मंदर. (फोटो: यूट्यूब/द वायर)

नई दिल्ली: 250 से अधिक शख्सियतों ने अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर के समर्थन में एकजुटता दिखाते हुए एक बयान पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें शुक्रवार (2 फरवरी) को उनके घर और कार्यालय पर केंद्रीय जांच ब्यूरो की छापेमारी की निंदा की गई है.

हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि 2020 से आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सहित केंद्र सरकार की कई जांच एजेंसियों ने मंदर और उनके सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) की जांच की है, लेकिन अभी तक अदालत में कोई आरोप-पत्र पेश नहीं किया गया है.

उनके बयान में कहा गया है, ‘हर्ष मंदर और सीईएस पर ये गंभीर हमले भारत में सभी सिविल सोसाइटी और संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाले सभी लोगों पर हमला हैं.’

द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई द्वारा दायर एक एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि सीईएस ने अधिनियम का उल्लंघन करते हुए 2020 और 2021 में अपने विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) खाते से वेतन या पारिश्रमिक के अलावा 32 लाख रुपये से अधिक अन्य खातों में स्थानांतरित किया था.

एफआईआर में यह भी कहा गया है, ‘जांच से यह भी पता चला है कि सीईएस ने एफसीआरए-2010 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए एक फर्म के माध्यम से अपने एफसीआरए खाते से 10 लाख रुपये (लगभग) की राशि कहीं ओर भेजी थी.’

लेकिन एकजुटता में जारी बयान पर हस्ताक्षर करने वालों ने दावा किया कि सीबीआई की एफआईआर से संकेत मिलता है कि मंदर पर ‘बिना किसी भौतिक आधार के’ आरोप लगाया गया है.

उन्होंने कहा, ‘सीबीआई द्वारा लगाई गई एफसीआरए अधिनियम-2010 की धारा 35 आर/डब्ल्यू 7,8,12(4) (ए) (vi) और धारा 39 के तहत दर्ज एफआईआर से स्पष्ट है कि मंदर के ऊपर लगाए जा रहे आरोप पूरी तरह से मनगढ़ंत और बिना किसी भौतिक आधार के हैं.’

उन्होंने पत्र में सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर और चल रही अन्य सभी जांचों को बंद करने की मांग की है.

हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा कहा गया, ‘हम स्पष्ट रूप से डॉ. हर्ष मंदर के निरंतर उत्पीड़न और उन्हें डराने-धमकाने की निंदा करते हैं. हम 2 फरवरी, 2024 की सुबह उनके आवास पर छापेमारी और उनके द्वारा स्थापित संस्था सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज पर चल रही छापेमारी से बेहद परेशान हैं.’

पत्र में आगे लिखा गया है, ‘हर्ष एक व्यापक रूप से सम्मानित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने समाज के सबसे अधिक उत्पीड़ित लोगों के मुद्दों को उठाया है.’

आगे कहा गया, ‘आज (शुक्रवार) की छापेमारी हर्ष, उनके सहयोगियों, उनके परिवार और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज के पूर्व और वर्तमान बोर्ड सदस्यों के उत्पीड़न की लंबी श्रृंखला का एक हिस्सा है.’

इसके मुताबिक, ‘यह जानना महत्वपूर्ण है कि 2020 से सरकार की कई जांच एजेंसियां – जिनमें राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर), दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा, आयकर (आईटी) प्राधिकरण, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और अब सीबीआई – शामिल हैं, ऐसा कार्रवाई कर रही हैं, जिन्हें केवल प्रतिशोधात्मक कार्रवाइयों के रूप में वर्णित किया जा सकता है. एक भी मामले में न्यायालय में आरोप-पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है.’

अंत में कहा गया है, ‘संवैधानिक भारत के सिद्धांतों और मूल्यों को संरक्षित करने के डॉ. मंदर के दृढ़ संकल्प में हम उनके साथ एकजुटता से खड़े हैं.’

मंदर ने शुक्रवार की छापेमारी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘मेरा जीवन और मेरा काम ही मेरी एकमात्र प्रतिक्रिया है.’

जून 2023 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीईएस के एफसीआरए लाइसेंस को निलंबित करने के लिए एफसीआरए की धारा 3 लागू की थी.

यह धारा किसी भी ‘संवाददाता, स्तंभकार, कार्टूनिस्ट, संपादक, मालिक, मुद्रक या पंजीकृत समाचार पत्र के प्रकाशक’ को कोई भी विदेशी अंशदान स्वीकार करने से रोकती है.

पूर्व आईएएस अधिकारी मंदर भारत में सांप्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ अभियान में सबसे आगे रहे हैं और पिछले 10 वर्षों में कथित तौर पर देश में बहुसंख्यकवादी राजनीति को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार के गंभीर आलोचक रहे हैं.

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