कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अपनी 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि 31 दिसंबर 2022 तक सीबीआई की कुल स्वीकृत ताक़त 7,295 कर्मचारियों की थी, जिसके मुक़ाबले 5,600 अधिकारी पद पर थे और 1,695 पद ख़ाली थे. 31 दिसंबर 2020 तक सीबीआई में कर्मचारियों की कुल स्वीकृत संख्या 7,273 थी और उनमें से 1,374 पद ख़ाली थे.
नई दिल्ली: कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अपनी 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि सीबीआई को 23 प्रतिशत कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें विशेष निदेशक, संयुक्त निदेशक और डीआईजी के पद भी शामिल हैं और एजेंसी के पास 1,025 मामले (943 पंजीकृत मामले और 82 प्रारंभिक जांच) लंबित हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘31 दिसंबर 2022 तक सीबीआई की कुल स्वीकृत ताकत 7,295 कर्मचारियों की थी, जिसके मुकाबले 5,600 अधिकारी पद पर थे और 1,695 पद खाली थे.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, डीओपीटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2020 तक सीबीआई में कर्मचारियों की कुल स्वीकृत संख्या 7,273 थी और उनमें से 1,374 पद खाली थे. वहीं 2021 में 1,533 पद खाली थे.
रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई में 1 विशेष/अतिरिक्त निदेशक, 2 संयुक्त निदेशक, 11 डीआईजी, 9 एसएसपी, 1 एक अतिरिक्त एसपी, 65 डिप्टी एसपी, 360 इंस्पेक्टर, 204 सब-इंस्पेक्टर, 51 सहायक सब-इंस्पेक्टर, 123 हेड कॉन्स्टेबल, 281 कॉन्स्टेबल और 367 तकनीकी अधिकारियों के पद खाली हैं.
सीबीआई की ताकत सीधे भर्ती किए गए कर्मचारियों और प्रतिनियुक्ति पर राज्य पुलिस कर्मचारियों से बनी है, जबकि सभी उच्च पदों पर पूरी तरह से प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारियों का कब्जा है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2022 में कुल 308 अधिकारियों को विभिन्न रैंकों पर सीबीआई में प्रतिनियुक्ति पर शामिल किया गया था. साथ ही संयुक्त निदेशक से कॉन्स्टेबल तक विभिन्न रैंकों में 133 अधिकारियों का प्रतिनियुक्ति कार्यकाल बढ़ाया गया था.’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ‘943 पंजीकृत मामलों में से 447 की जांच एक साल से अधिक समय से लंबित हैं. इसी तरह 82 लंबित जांचों में से 60 जांचें तीन महीने से अधिक समय से लंबित हैं. साथ ही 23 लोकपाल संदर्भ भी लंबित थे.’
इसके मुताबिक, ‘2022 में अदालतों ने सीबीआई के 557 अदालती मामलों में फैसले सुनाए. इनमें से 364 मामलों में दोषसिद्धि हुई, 111 मामलों में दोषमुक्ति हुई, 13 मामलों में आरोपमुक्त कर दिया गया और 69 मामलों का अन्य कारणों से निपटारा कर दिया गया. सजा की दर 74.59 प्रतिशत थी. विभिन्न अदालतों में लगभग 10,732 अदालती मामले विचाराधीन थे.’