संघ परिवार एक बार में पूरा एजेंडा सामने नहीं लाता: मोहन भागवत

एक कार्यक्रम के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जब 1925 में आरएसएस का गठन हुआ था, तब कोई नहीं जानता था कि असली एजेंडा क्या है. सभी को बताया गया कि इसका गठन हिंदुओं को एक छत के नीचे एकजुट करने के इरादे से किया गया था. रामजन्मभूमि जैसे मुद्दे हमारे पर्याप्त ताक़त हासिल करने के बाद ही सामने आए.

मोहन भागवत. (फोटो साभार: फेसबुक/Friends of RSS)

एक कार्यक्रम के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जब 1925 में आरएसएस का गठन हुआ था, तब कोई नहीं जानता था कि असली एजेंडा क्या है. सभी को बताया गया कि इसका गठन हिंदुओं को एक छत के नीचे एकजुट करने के इरादे से किया गया था. रामजन्मभूमि जैसे मुद्दे हमारे पर्याप्त ताक़त हासिल करने के बाद ही सामने आए.

मोहन भागवत. (फोटो साभार: फेसबुक/Friends of RSS)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बीते 4 फरवरी को कहा कि इसकी सांस्कृतिक शाखा ‘संस्कार भारती’ का एजेंडा संघ विचारधारा के समर्थक आलोचकों को शामिल करना होगा.

बेंगलुरु में अखिल भारतीय कलासाधक संगम को संबोधित करते हुए भागवत ने अपनी विचारधारा से जुड़े कला समीक्षकों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.

उन्होंने आगे कहा, ‘जब भी हम (संघ परिवार) काम शुरू करते हैं, हम एक बार में पूरा एजेंडा सामने नहीं लाते हैं. इसके बजाय हम प्रगतिशील विकास की नीति अपनाते हैं.’

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘जब हमने संस्कार भारती की स्थापना की, तो हमारा लक्ष्य एक प्रभावशाली कला संस्था बनना था, जो अब हम बन गए हैं. आने वाले दिनों में हम इस क्षेत्र में और मजबूत होंगे. अब हमें कला समीक्षकों का एक समूह बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जो ‘सत्य’ और ‘शिवत्व’ (दिव्यता) को एक साथ लाने की दिशा में काम करेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘जब 1925 में आरएसएस का गठन हुआ था, तब कोई नहीं जानता था कि असली एजेंडा क्या है. सभी को बताया गया कि आरएसएस का गठन हिंदुओं को एक छत के नीचे एकजुट करने के इरादे से किया गया था. रामजन्मभूमि जैसे मुद्दे हमारे पर्याप्त ताकत हासिल करने के बाद ही सामने आए.’

कलाकारों के एक बड़े समूह को आकर्षित करने में संस्कार भारती की उपलब्धि पर जोर देते हुए उन्होंने उन कलाकारों को शामिल करने की आगामी चुनौती पर प्रकाश डाला जो संघ की विचारधारा को साझा करते हैं, लेकिन अभी तक इसमें शामिल नहीं हुए हैं.

उन्होंने समझाया, वर्तमान में कला आलोचना उन मुट्ठी भर लोगों के मजबूत प्रभाव में है, जो समाजों को विभाजित करने और असुरक्षित समाजों के निर्माण में विश्वास करते हैं, जो बदले में देशों को विश्व स्तर पर विभाजित रहने में मदद करते हैं. यह एक विश्वव्यापी घटना है. हमें इस ढांचे को तोड़ने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि कला के ‘सत्य’ और ‘शिवत्व’ को एकजुट करके समाज एकजुट हो जाएं.’

उन्होंने खेद व्यक्त किया कि आरएसएस देश में गोहत्या पर व्यापक प्रतिबंध लगाने में सफल नहीं रहा है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें