सुप्रीम कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री से कहा- मामले की फाइलों में वादी की जाति/धर्म का उल्लेख न करें

बीते 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री और अन्य सभी अदालतों को अदालती मामलों में वादकारियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया था. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन जैसे निकायों के सदस्यों से निर्देशों का ध्यान रखने को कहा है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

बीते 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री और अन्य सभी अदालतों को अदालती मामलों में वादकारियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया था. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन जैसे निकायों के सदस्यों से निर्देशों का ध्यान रखने को कहा है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (7 फरवरी) को अपने रजिस्ट्री अधिकारियों से कहा कि वे अदालत के एक हालिया आदेश का पालन करें, जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि वादकारियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को बंद किया जाना चाहिए.

बीते 10 जनवरी को जस्टिस हिमा कोहली की अध्यक्षता वाली पीठ ने शीर्ष अदालत रजिस्ट्री और अन्य सभी अदालतों को अदालती मामलों में वादकारियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार को जारी एक सर्कुलर में कहा, ‘न्यायालय के उपरोक्त निर्देशों के अनुपालन में रजिस्ट्री के सभी संबंधित अधिकारियों/कर्मचारियों को उपरोक्त निर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया जाता है कि अब से पार्टियों (Litigants) के ज्ञापन (Memo) में पार्टियों की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं किया जाएगा. इस अदालत के समक्ष दायर की गई याचिका/कार्यवाही, भले ही नीचे की अदालतों के समक्ष ऐसा कोई विवरण प्रस्तुत किया गया हो.’

इसने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) जैसे बार निकायों के सदस्यों से निर्देशों का ध्यान रखने को कहा है.

10 जनवरी को पीठ, जिसमें जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह भी शामिल थे, ने सभी उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उच्च न्यायालयों या उनके अधिकार क्षेत्र के तहत अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष दायर किसी भी याचिका में पक्षकारों के ज्ञापन में किसी वादी की जाति या धर्म का उल्लेख न हो.

पीठ ने कहा था, ‘हमें इस अदालत या नीचे की अदालतों के समक्ष किसी भी वादी की जाति/धर्म का उल्लेख करने का कोई कारण नहीं दिखता है. ऐसी प्रथा को त्यागना होगा और इसे तुरंत बंद करना होगा. इसलिए एक सामान्य आदेश पारित करना उचित समझा जाएगा कि अब से इस अदालत के समक्ष दायर याचिका/कार्यवाही के मेमो में पार्टियों की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं किया जाएगा, भले ही ऐसा कोई विवरण निचली अदालतों के समक्ष प्रस्तुत किया गया हो.’

शीर्ष अदालत ने राजस्थान की एक पारिवारिक अदालत के समक्ष लंबित वैवाहिक विवाद में स्थानांतरण याचिका की अनुमति देते हुए यह आदेश पारित किया था. शीर्ष अदालत ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि पक्षों के ज्ञापन में पति और पत्नी दोनों की जाति का उल्लेख किया गया था.

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया था कि अगर निचली अदालतों के समक्ष दायर पक्षों के ज्ञापन में किसी भी तरह से बदलाव किया जाता है, तो रजिस्ट्री आपत्ति उठाती है. और वर्तमान मामले में, चूंकि नीचे की अदालत के समक्ष दोनों पक्षों की जाति का उल्लेख किया गया था, इसलिए उनके पास स्थानांतरण याचिका में उनकी जाति का उल्लेख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

शीर्ष अदालत ने तब निर्देश दिया था कि उसके आदेश को तत्काल अनुपालन के लिए बार के सदस्यों के साथ-साथ रजिस्ट्री के ध्यान में लाया जाएगा.