बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के लोगों की हत्या के दोषियों में से एक प्रदीप मोढिया को ससुर की मृत्यु के बाद गुजरात हाईकोर्ट द्वारा बीते 7 फरवरी को पैरोल दे दी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मोढिया और 10 अन्य आजीवन कारावास के दोषियों ने 21 जनवरी की रात गोधरा उप-जेल में आत्मसमर्पण कर दिया था.
नई दिल्ली: बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों के 21 जनवरी को गोधरा उप-जेल में आत्मसमर्पण करने के तकरीबन एक पखवाड़े बाद दोषियों में से एक को पैरोल मिल गई है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दो सप्ताह की समय सीमा के अनुरूप दोषियों में से एक प्रदीप मोढिया अपने ससुर की मृत्यु के बाद गुजरात हाईकोर्ट द्वारा दी गई पांच दिन की पैरोल पर बीते बुधवार (7 फरवरी) को दाहोद जिले के अपने पैतृक गांव रणधीकपुर लौट आया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एमआर मेंगडे की अदालत ने बीते 5 फरवरी को मोढिया को 7 से 11 फरवरी तक पैरोल की अनुमति दी थी. 31 जनवरी को दायर अपनी याचिका में मोढिया ने अपने ससुर की मृत्यु के कारण 30 दिन की पैरोल की मांग की थी.
अभियोजन पक्ष ने हाईकोर्ट को बताया था कि जेल रिकॉर्ड के अनुसार, जब मोढिया को आखिरी बार पैरोल पर रिहा किया गया था तो उन्होंने ‘समय पर रिपोर्ट की थी’ और जेल में उनका आचरण भी ‘अच्छा बताया गया था’.
गुरुवार (8 फरवरी) सुबह मोढिया को स्थानीय निवासियों ने रणधीकपुर बाजार (दाहोद जिला) में देखा गया.
एक ग्रामीण ने कहा, ‘उनके ससुर का जनवरी के आखिरी सप्ताह में रणधीकपुर से लगभग 32 किमी दूर लिमडी में निधन हो गया था. वह बुधवार देर रात गांव आए थे और गुरुवार को बाहर निकले.’
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए दाहोद के लिमखेड़ा की पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) विशाखा जैन ने कहा, ‘हाईकोर्ट ने दोषी को पैरोल दे दी है और वह पांच दिनों के लिए अपने गांव लौट आया है. उसकी पैरोल शर्तों के अनुसार, उसे रणधीकपुर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करने की आवश्यकता नहीं है. पैरोल अवधि के दौरान जिला पुलिस की कोई भूमिका नहीं है. उम्मीद है कि वह खुद ही जेल लौट जाएगा.’
बिलकीस बानो मामले में 11 दोषियों को दी गई पैरोल और फर्लो से संबंधित विवरण के अनुसार राज्य सरकार द्वारा अक्टूबर 2022 में एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत किया गया था कि मोढिया को 1,041 दिन के लिए पैरोल और अन्य 223 दिन के लिए फर्लो पर रिहा किया गया है, जब वह जनवरी 2008 से मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था.
हलफनामे में यह भी दर्ज किया गया कि 19 मामलों में जब उसे पैरोल पर रिहा किया गया था, तो उसने तीन मौकों पर एक दिन की देरी से आत्मसमर्पण किया था.
मालूम हो कि बिलकीस बानो मामले में मोढिया और 10 अन्य आजीवन कारावास के दोषियों ने 21 जनवरी की आधी रात से कुछ देर पहले गोधरा उप-जेल में आत्मसमर्पण कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते 8 जनवरी को इन 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई को खारिज करते हुए कहा था कि गुजरात सरकार के पास उन्हें समय से पहले रिहा करने की शक्ति नहीं है. उनकी रिहाई का आदेश रद्द करते हुए अदालत ने दोषियों को दो हफ्ते के अंदर वापस जेल में सरेंडर करने को कहा था.
यह समयसीमा 22 जनवरी तक ही थी.
इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से आत्मसमर्पण के लिए और समय देने की गुहार भी लगाई थी, लेकिन बीते 19 जनवरी को अदालत ने उनकी इस मांग को अस्वीकार कर दिया था.
इन दोषियों में राधेश्याम शाह, जसवंत नाई, गोविंद नाई, केसर वोहनिया, बाका वोहनिया, राजू सोनी, रमेश चांदना, शैलेश भट्ट, बिपिन जोशी, प्रदीप मोढिया और मितेश भट्ट शामिल हैं.
पांच महीने की गर्भवती बिलकीस बानो 21 वर्ष की थीं, जब 2002 में साबरमती ट्रेन नरसंहार के बाद भड़के दंगों के दौरान अपने परिवार के साथ रणधीकपुर गांव से भागते समय उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. इस दौरान उनकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी.
मालूम हो कि 15 अगस्त 2022 को केंद्रीय गृह मंत्रालय से मंजूरी मिलने और अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त 2022 को गोधरा के उप-जेल से रिहा कर दिया गया था.
वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्रालय अमित शाह के तहत आता है, जो साल 2002 के दंगों के समय गुजरात के गृह मंत्री थे.
सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया था कि वे ‘अच्छे संस्कारी ब्राह्मण’ हैं.
इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी.