संरक्षित क्षेत्रों के 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले इलाके को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र कहा जाता है. राज्यसभा में पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति ने बीते पांच वर्षों में संरक्षित क्षेत्रों में 689 परियोजना प्रस्तावों को अनुमति दी है.
नई दिल्ली: पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा को बताया है कि केंद्र को पिछले पांच वर्षों में पर्यावरण-संवेदनशील (इको-सेंसिटिव) क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए 53 प्रस्ताव प्राप्त हुए, जिनमें से 43 को पर्यावरण मंजूरी दी गई.
ज्ञात हो कि पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र वे हैं जो संरक्षित क्षेत्रों के 10 किलोमीटर के दायरे में आते हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, चौबे ने कहा, पिछले पांच वर्षों के दौरान संरक्षित क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए 689 परियोजना प्रस्तावों को एनबीडब्ल्यूएल की स्थायी समिति द्वारा अनुमति दी गई थी, जिनमें से 231 को पिछले साल अनुमति दी गई थी.
मंत्री पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसजेड) और संरक्षित क्षेत्रों (पीए) में परियोजनाओं की पर्यावरणीय मंजूरी के लिए पिछले पांच वर्षों में वर्षवार प्राप्त आवेदनों की संख्या; पिछले पांच वर्षों के दौरान वर्षवार दी गई स्वीकृतियों की संख्या; और पिछले पांच वर्षों के दौरान वन्यजीव संरक्षण बोर्ड द्वारा वर्षवार समान रूप से प्राप्त और स्वीकृत किए गए आवेदनों की संख्या पर तृणमूल कांग्रेस सांसद जवाहर सरकार द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब दे रहे थे.
चौबे ने बताया, ‘जैसा कि मंत्रालय के कार्यालय ज्ञापन दिनांक 17.05.2022 द्वारा अधिसूचित किया गया है, संरक्षित क्षेत्रों के आसपास अधिसूचित पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में परियोजनाओं/गतिविधियों को संबंधित ईएसजेड अधिसूचना द्वारा विनियमित और शासित किया जाएगा. ऐसी विनियमित गतिविधियां, यदि संशोधित पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 के अंतर्गत आती हैं, तो उक्त अधिसूचना के प्रावधानों के अनुसार पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत होगी, जबकि, यदि ईएसजेड अधिसूचित नहीं है या मसौदा चरण में है, तो पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की चाहिए होगी डिफ़ॉल्ट ईएसजेड यानी राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों सहित संरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं के 10 किमी के भीतर का क्षेत्र के भीतर स्थित परियोजनाओं/गतिविधियों के लिए आवश्यक होगा.
उन्होंने जोड़ा, ‘ऐसी परियोजनाओं पर राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल)/राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एससीएनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति द्वारा विचार की जरूरत होगी. तदनुसार, इस उद्देश्य के लिए मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) द्वारा उचित अनुमोदन के बाद प्रस्तावों को पर्यावरणीय मंजूरी दी जाती है.’
विशेषज्ञों का मानना है कि यह जरूरी है कि हम उन परियोजनाओं, जो वन्यजीवों के आवास और गलियारों को बाधित करते हैं, से बचें और उनके विकल्प तलाशें.
विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी (जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र) के प्रमुख देबादित्यो सिन्हा ने कहा, ‘वर्तमान में, हमारे भूभाग का केवल 5% से अधिक हिस्सा वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों के तौर पर चिह्नित है. हालांकि, इनमें से कई क्षेत्र रिहायशी बस्तियों और बुनियादी ढांचे से घिरे छोटे, अलग-थलग इलाकों के तौर पर हैं. हमारे वन्यजीवों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इन संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहता है और वन्यजीव बोर्डों के अधिकारक्षेत्र में भी नहीं आता है. यह स्थिति कई प्रजातियों के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है, जिससे वे विलुप्त होने के कगार पर हैं.’
उन्होंने जोड़ा, ‘यह जरूरी है कि हम उन परियोजनाओं, जो वन्यजीवों के आवास और गलियारों को बाधित करते हैं, से बचें और उनके विकल्प तलाशें. इसमें विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व के लिए जरूरी प्राकृतिक आवासों (नैचुरल हैबिटैट) और प्रवास मार्गों (माइग्रेशन रूट्स) की सुरक्षा और संरक्षण के लिए किए जाने वाले उपाय भी शामिल हैं.’