महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के संबंध में लोकसभा में पेश की गई एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि चालू वित्त वर्ष में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इससे काफी कम केवल 86,000 करोड़ का प्रावधान किया है.
नई दिल्ली: लोकसभा में गुरुवार (8 फरवरी) को पेश एक संसदीय समिति की रिपोर्ट से पता चलता है कि वित्त मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष (2023-24) के संशोधित अनुमान में मनरेगा के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मांगे गए 1.1 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 22 प्रतिशत कम धनराशि आवंटित की है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रिपोर्ट का नाम ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के माध्यम से ग्रामीण रोजगार – मजदूरी दरों और उससे संबंधित अन्य मामलों पर एक अंतर्दृष्टि’ है.
रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रामीण विकास विभाग ने संशोधित अनुमान (आरई) में मनरेगा के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपये की मांग की थी, जो इसके चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान (बीई) 60,000 करोड़ रुपये की तुलना में 83 फीसदी (50,000 करोड़ रुपये) अधिक है.
हालांकि, वित्त मंत्रालय ने इसे संशोधित कर 86,000 करोड़ रुपये कर दिया, जो ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मांगी गई राशि से बहुत कम था.
ग्रामीण विकास विभाग के एक लिखित निवेदन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) एक मांग-संचालित मजदूरी रोजगार योजना है. वित्तीय वर्ष 2023-24 में मनरेगा के तहत बजट अनुमान स्थिति 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन है. मंत्रालय ने चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 (13/10/2023 तक) के दौरान 56,423.38 करोड़ रुपये जारी किए हैं और 3,576.62 करोड़ रुपये की शेष राशि ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास है. मंत्रालय ने चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए वित्त मंत्रालय से संशोधित अनुमान स्थिति के रूप में 1,10,000 करोड़ रुपये की राशि का प्रस्ताव दिया है.’
रिपोर्ट में ग्रामीण विकास विभाग के निवेदन के हवाले से कहा गया है, ‘मजदूरी रोजगार की मांग के मुकाबले मानव दिवस सृजन की मौजूदा गति के साथ संशोधित अनुमान 2023-24 में 60,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान के अलावा अतिरिक्त फंड के रूप में 50,000 करोड़ रुपये की राशि का अनुमान लगाया गया है.’
हालांकि, बीते 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट 2024-25 में चालू वित्तीय वर्ष (2023-24) के लिए मनरेगा आवंटन को संशोधित कर 86,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
द्रमुक सदस्य कनिमोझी करुणानिधि की अध्यक्षता वाली समिति ने यह भी कहा कि मनरेगा के तहत काम के दिनों की गारंटी संख्या को 100 से बढ़ाकर संभवत: 150 दिन करने की मांग को उचित महत्व दिया जाना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति ने पाया कि मनरेगा के तहत स्वीकृत कार्यों की संख्या बढ़कर 266 हो गई है. इसके अलावा चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ग्रामीण विकास विभाग द्वारा मांगा गया संशोधित अनुमान 1,10,000 करोड़ रुपये है. ये पहलू केवल इस राय को मजबूत करते हैं कि मनरेगा के तहत काम की मांग कम नहीं हुई है. इसलिए, समिति मनरेगा के तहत काम के दिनों की गारंटीकृत संख्या को 100 से बढ़ाकर संभवत: 150 दिन करने की मांग को उचित महत्व देती है.’
मनरेगा के तहत हर ग्रामीण परिवार, जिसका वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक कार्य करता है, एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का वेतन रोजगार पाने का हकदार है. जबकि, मनरेगा की धारा 3(1) एक वित्तीय वर्ष में प्रति ग्रामीण परिवार को ‘100 दिनों से कम काम नहीं’ का प्रावधान करती है.
यह असल में ऊपरी सीमा बन गई है] क्योंकि नरेगा सॉफ्टवेयर एक वित्तीय वर्ष में एक परिवार में 100 दिनों से अधिक के रोजगार के लिए डेटा प्रविष्टियों की अनुमति नहीं देता है, जब तक कि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश द्वारा विशेष रूप से अनुरोध न किया गया हो.
हालांकि, कुछ मामलों में सरकार अतिरिक्त 50 दिनों के वेतन रोजगार (निर्धारित 100 दिनों से अधिक) की अनुमति देती है. उदाहरण के लिए, वन क्षेत्र में प्रत्येक अनुसूचित जनजाति का परिवार मनरेगा के तहत 150 दिनों का काम पाने का हकदार है, बशर्ते कि ऐसे परिवारों के पास वन अधिकार अधिनियम-2016 के तहत दिए गए भूमि अधिकारों के अलावा कोई अन्य निजी संपत्ति न हो.
इसके अलावा सरकार मनरेगा की धारा 3(4) के तहत ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां सूखा या कोई प्राकृतिक आपदा आई हो, एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के अलावा 50 दिनों का अतिरिक्त अकुशल शारीरिक काम भी प्रदान कर सकती है.
समिति ने यह भी कहा कि मनरेगा के तहत दी जाने वाली दैनिक मजदूरी अपर्याप्त है.