सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिले जवाब से पता चला है कि बीते 2 जनवरी से 11 जनवरी 2024 तक चले चुनावी बॉन्ड बिक्री के नवीनतम चरण में 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में बेचे गए 897 बॉन्ड में से 415 या लगभग आधे कोलकाता में बेचे गए हैं.
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नई दिल्ली: सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन से प्राप्त जानकारी बताती है कि 2 जनवरी से 11 जनवरी 2024 तक चले चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) बिक्री के नवीनतम चरण में 570 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं. आरटीआई आवेदन पारदर्शिता कार्यकर्ता कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा दायर किया गया था.
पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा योजना की वैधता को चुनौती देने वाली चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू होने के बाद से यह चुनावी बॉन्ड की बिक्री का दूसरा बैच है, और 2018 में योजना शुरू होने के बाद से 30वां बैच है.
बत्रा के सवाल पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के जवाब के अनुसार, बेंगलुरु, चेन्नई, गांधीनगर, कोलकाता, हैदराबाद, नई दिल्ली, विशाखापत्तनम, मुंबई और जयपुर की एसबीआई शाखाओं से 5,71,80,03,000 रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं.
1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में बेचे गए 897 बॉन्ड में से 415 या लगभग आधे कोलकाता में बेचे गए हैं.
सबसे ज्यादा 540 बॉन्ड 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में बेचे गए हैं, जिनमें से कोलकाता में सबसे अधिक 161 बॉन्ड बेचे गए. इसके बाद हैदराबाद (131) और चेन्नई (73) का नंबर आता है. इस चरण में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्रचलन में कुल धन का 94.4 फीसदी हिस्सा 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग के बॉन्ड के माध्यम से जुटाया गया धन है.
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इस अवधि में बेचे गए लगभग 92 फीसदी बॉन्ड भुनाए जा चुके हैं, जबकि 10 लाख रुपये और 1 लाख रुपये के मूल्यवर्ग के केवल 25 बॉन्ड को अब तक भुनाया नहीं गया है.
बॉन्ड बिक्री का अगला चरण फरवरी या मार्च में होने की उम्मीद है.
चुनावी बॉन्ड को लेकर विवाद
चुनावी बॉन्ड योजना अपारदर्शी होने और संभवत: राजनीतिक दलों को बेहिसाब धन पहुंचाने के कारण शुरुआत के तुरंत बाद से ही सवालों के घेरे में आ गई थी.
शीर्ष अदालत द्वारा 2 नवंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रखने के दो दिन बाद चुनावी बॉन्ड बिक्री के अंतिम दौर की घोषणा की गई थी.
कार्यकर्ताओं ने 2017 में दायर योजना को चुनौती देने वाली पहली याचिका और 2023 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा मामले की सुनवाई के बीच छह साल के बड़े अंतर की ओर भी इशारा किया है.
सुनवाई के दौरान सरकार ने राजनीतिक दलों के बड़े कॉरपोरेट दानदाताओं की निजता के अधिकार की रक्षा करने का अनुरोध किया और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने यहां तक कहा कि नागरिकों को चुनावी बॉन्ड फंड के स्रोतों को जानने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.
हालांकि चुनावी बॉन्ड के जरिये दान दाताओं की पहचान को आरटीआई से छूट प्रदान की गई है, लेकिन ऐसी चिंताएं जताई जाती रही हैं कि केंद्र सरकार एसबीआई जैसे सार्वजनिक बैंक के डेटा तक पहुंच सकती है और दानदाताओं की पहचान पता कर सकती है.
पैसा कहां जा रहा है?
मार्च 2022 और मार्च 2023 के बीच 2,800 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे. पत्रकार अरविंद गुणसेकर ने एक्स पर एक पोस्ट में बताया कि इनमें से लगभग 46 प्रतिशत या 1,294 करोड़ रुपये भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिले.
2018 में योजना की शुरुआत के बाद से भाजपा चुनावी बॉन्ड के माध्यम से सबसे अधिक दान पाने वाली पार्टी रही है.
चुनाव आयोग द्वारा बीते 8 फरवरी को प्रकाशित पार्टी की वार्षिक योगदान रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा ने 2022-23 में हजारों दानकर्ताओं से 719.83 करोड़ रुपये चंदा मिलने की घोषणा की है. घोषित राशि में वह राशि शामिल नहीं है जो पार्टी को चुनावी बॉन्ड योजना के तहत प्राप्त हुई थी, जिसके बारे में जानकारी देने से छूट दी गई है.
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2018-2023 के बीच बेचे गए 12,008 करोड़ रुपये के कुल बॉन्ड में से भाजपा को लगभग 55 प्रतिशत या 6,564 करोड़ रुपये मिले हैं. वहीं, कांग्रेस को केवल 9.5 प्रतिशत या 1,135 करोड़ रुपये मिले हैं.
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