देश में 834 मरीज़ों पर एक डॉक्टर उपलब्ध, जो डब्ल्यूएचओ के मानकों से बेहतर है: स्वास्थ्य मंत्री

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि देश में पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टरों की 80 प्रतिशत उपलब्धता मानते हुए और 5.65 लाख आयुष डॉक्टरों के साथ देश में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:834 है, जो कि डब्ल्यूएचओ के मानक 1:1000 से बेहतर है.

मनसुख मंडाविया. (फोटो साभार: फेसबुक)

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि देश में पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टरों की 80 प्रतिशत उपलब्धता मानते हुए और 5.65 लाख आयुष डॉक्टरों के साथ देश में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:834 है, जो कि डब्ल्यूएचओ के मानक 1:1000 से बेहतर है.

मनसुख मंडाविया. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने शुक्रवार को लोकसभा को बताया कि देश में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:834 है. यानी 834 लोगों के लिए 1 डॉक्टर उपलब्ध है. उनके अनुसार, यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक 1:1000 से बेहतर है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मंडाविया ने एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, जून 2022 तक राज्य चिकित्सा परिषदों और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के साथ 13,08,009 एलोपैथिक डॉक्टर पंजीकृत हैं.

उन्होंने कहा, ‘पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टरों की 80 प्रतिशत उपलब्धता मानते हुए और 5.65 लाख आयुष डॉक्टरों के साथ देश में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:834 है, जो कि डब्ल्यूएचओ के मानक 1:1000 से बेहतर है.’

मंडाविया ने कहा, ‘इसके अलावा देश में 34.33 लाख पंजीकृत नर्सिंग कर्मचारी और 13 लाख सहयोगी और स्वास्थ्य सेवा के पेशेवर हैं. सरकार ने मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि की है और एमबीबीएस सीटें भी बढ़ाई हैं.’

मेडिकल कॉलेजों की संख्या में 82 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिनकी संख्या 2014 से पहले 387 थी, जो अब बढ़कर 706 हो गई है.

मंत्री ने कहा कि एमबीबीएस सीटों की संख्या में 112 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2014 से पहले इनकी संख्या 51,348 थी, जो अब 1,08,940 है. पीजी सीटों में भी 127 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 2014 से पहले 31,185 थीं और अब बढ़कर 70,674 हो गई हैं.

मनसुख मंडाविया से एक प्रश्न पूछा गया था कि क्या सरकार मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से सही ढंग से निपटने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण देने जैसे कदम उठाने की योजना बना रही है, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि देश में मनोचिकित्सकों की संख्या बढ़ाने के लिए एनएमसी के पीजीएमईबी ने 15 जनवरी को स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम-2023 (पीजीएमएसआर-2023) की अहर्ताओं का न्यूनतम मानक जारी किया है.

मंत्री ने कहा कि एनएमएचपी के तृतीयक देखभाल घटक के तहत मानसिक स्वास्थ्य विशिष्टताओं में पीजी विभागों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ तृतीयक स्तर की उपचार सुविधाएं प्रदान करने के लिए 25 उत्कृष्टता केंद्रों को मंजूरी दी गई है.

इसके अलावा सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य विशिष्टताओं में 47 पीजी विभागों को मजबूत करने के लिए 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों को भी समर्थन दिया है. मनोचिकित्सा विभागों के माध्यम से 22 एम्स के लिए भी मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का प्रावधान किया गया है.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (एनएमएचपी)-2014 में विस्तृत उपायों को लागू करने के लिए प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल सुविधाओं में मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे का विकास कार्यान्वित किया जा रहा है.

मंडाविया ने कहा कि इस नीति के हिस्से के रूप में जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) घटक को देश के 738 जिलों में कार्यान्वयन के लिए मंजूरी दी गई है, जिसके लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता प्रदान की जाती है.

उन्होंने बताया कि डीएमएचपी दिशानिर्देशों के अनुसार, एक मनोचिकित्सक, एक चिकित्सीय ​​मनोवैज्ञानिक, एक मनोचिकित्सक सामाजिक कार्यकर्ता, एक मनोरोग नर्स, एक सामुदायिक नर्स, एक निगरानी और मूल्यांकन अधिकारी और केस रजिस्ट्री सहायक और एक वार्ड सहायक जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम टीम के कर्मचारी होते हैं.