भारतीय जेलों में 561 क़ैदी मौत की सज़ा पाए हुए थे, 20 वर्षों में यह संख्या सबसे अधिक: रिपोर्ट

‘भारत में मृत्युदंड: वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट’ में कहा गया है कि वर्ष 2023 में देश भर में निचली अदालतों द्वारा 120 मौत की सज़ाएं सुनाई गईं, जिनमें सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में 33 रही. 2023 में निचली अदालतों में सबसे अधिक मौत की सज़ा यौन अपराधों से जुड़े हत्या के मामलों में दी गई, जो 120 मौत की सज़ाओं में से 64 है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@GujaratPolice)

‘भारत में मृत्युदंड: वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट’ में कहा गया है कि वर्ष 2023 में देश भर में निचली अदालतों द्वारा 120 मौत की सज़ाएं सुनाई गईं, जिनमें सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में 33 रही. 2023 में निचली अदालतों में सबसे अधिक मौत की सज़ा यौन अपराधों से जुड़े हत्या के मामलों में दी गई, जो 120 मौत की सज़ाओं में से 64 है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@GujaratPolice)

नई दिल्ली: एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस साल मौत की सजा सुनाए गए कैदियों की संख्या 561 है, जो 20 सालों में सबसे अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार, 2015 के बाद से मौत की सजा सुनाए गए गए कैदियों की आबादी में 45.71 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, ‘प्रोजेक्ट 39ए’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट ‘भारत में मृत्युदंड: वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट’ में कहा गया है, ‘2023 में देश भर में ट्रायल कोर्ट द्वारा 120 मौत की सजा दी गईं और साल के अंत में 561 कैदी ऐसे थे, जिन्हें मौत की सजा पर थे.’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह लगभग दो दशकों में मौत की सजा पाने वाली सबसे बड़ी आबादी है. वर्ष 2023 में केवल एक मौत की सजा की पुष्टि की गई, जिससे यह वर्ष 2000 के बाद से अपीलीय अदालतों द्वारा मौत की सजा की पुष्टि की सबसे कम दर वाला वर्ष बन गया. वर्ष 2023 में वर्ष 2015 के बाद से मौत की सजा की संख्या में 45.71 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.’

प्रोजेक्ट 39ए दिल्ली में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एक आपराधिक न्याय अनुसंधान और कानूनी सहायता कार्यक्रम है, और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39ए से प्रेरित है, जो आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को दूर करके समान न्याय और समान अवसर को बढ़ावा देता है.

यह इस रिपोर्ट का आठवां संस्करण है. इसमें यह भी खुलासा किया गया है कि 2023 में देश भर में ट्रायल कोर्ट ने 120 मौत की सजाएं सुनाईं, जिनमें सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में 33, इसके बाद झारखंड में 12 और गुजरात, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश प्रत्येक में 11 और पश्चिम बंगाल में 10 रही.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उत्तर प्रदेश में 119 कैदियों के साथ मौत की सजा पाने वाली सबसे बड़ी आबादी है. 2023 में निचली अदालतों में सबसे अधिक मौत की सजा यौन अपराधों से जुड़े हत्या के मामलों में दी गई, जो 120 मौत की सजाओं में से 64 (53.33%) है. 2016 में हमारी पहली वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के बाद से ट्रायल कोर्ट में यह प्रवृत्ति बढ़ रही है.’

हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में हाईकोर्ट में मृत्युदंड की पुष्टि की कार्यवाही के निपटान की दर में पिछले वर्ष की तुलना में कैदियों की संख्या के लिहाज से 15 प्रतिशत की कमी देखी गई.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उच्च न्यायालयों द्वारा 80 कैदियों से जुड़े 57 मामलों में से 1 कैदी की मौत की सजा की पुष्टि की गई और 36 कैदियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. 36 कैदियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया और 5 के मामलों को गवाहों के परीक्षण तथा मूल ट्रायल में निष्पक्ष सुनवाई के उल्लंघन से प्रक्रियात्मक त्रुटियों के कारण ट्रायल कोर्ट में फिर से सुनवाई के लिए वापस भेज दिया गया.’

रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में 11 कैदियों से जुड़े 10 मामलों का फैसला करते हुए किसी भी मौत की सजा की पुष्टि नहीं की और सबूतों की गुणवत्ता और पुलिस जांच की आलोचना करते हुए 6 कैदियों को बरी कर दिया, जो मौत की सजा पर थे.

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत के राष्ट्रपति ने 2008 के एक नाबालिग के अपहरण, बलात्कार और हत्या के मामले में मार्च 2023 में एक दया याचिका खारिज कर दी थी. इसमें कहा गया है कि कुल 488 मौत की सजा पाए कैदी उच्च न्यायालयों के फैसले का इंतजार कर रहे हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, 2022 और 2021 के अंत में क्रमश: 541 और 490 कैदी मौत की सजा पर थे और 2022 तथा 2021 में क्रमश: 167 और 146 मौत की सजा सुनाई गई थीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में मौत की सजा पाने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो 2023 में सबसे अधिक है.