उचित प्रक्रिया के बिना घरों पर बुलडोज़र चलाना फैशन बन गया है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि स्थानीय प्रशासन और स्थानीय निकायों के लिए अब यह फैशन बन गया है कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किए बिना किसी भी घर को ध्वस्त कर दें. अदालत ने उज्जैन नगर निगम अधिकारियों के ख़िलाफ़ ‘अनुशासनात्मक कार्रवाई’ का भी निर्देश दिया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर)

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि स्थानीय प्रशासन और स्थानीय निकायों के लिए अब यह फैशन बन गया है कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किए बिना किसी भी घर को ध्वस्त कर दें. अदालत ने उज्जैन नगर निगम अधिकारियों के ख़िलाफ़ ‘अनुशासनात्मक कार्रवाई’ का भी निर्देश दिया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर: खरगोन में बीते साल हुई बुलडोज़र कार्रवाई. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: घरों को अवैध रूप से ढहाए जाने से संबंधित एक मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने संबंधित नगर निगम अधिकारियों के खिलाफ ‘अनुशासनात्मक कार्रवाई’ का निर्देश देने के साथ याचिकाकर्ता को मुआवजे के रूप में 1 लाख रुपये देने को कहा है.

याचिकाकर्ता राधा लांगरी ने उज्जैन नगर निगम (यूएमसी) द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना तोड़े गए अपने घरों के लिए मुआवजे की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

जस्टिस विवेक रूसिया ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘जैसा कि इस अदालत ने बार-बार पाया है कि स्थानीय प्रशासन और स्थानीय निकायों के लिए अब यह फैशन बन गया है कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किए बिना कार्यवाही करके किसी भी घर को ध्वस्त कर दें और इसे अखबार में छपवा दें. ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में भी याचिकाकर्ताओं के परिवार के सदस्यों में से एक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था और मकान तोड़ने की कार्रवाई कर दी गई.’

नगर निगम ने तर्क दिया कि उसकी कार्रवाई उचित थी, क्योंकि मकान (नंबर 466 और 467) का निर्माण नगर निगम अधिनियम का उल्लंघन करके किया गया था, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने पहले से निर्माण की अनुमति नहीं ली थी.

हालांकि, लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत ने कहा कि हालांकि किसी को भी उचित अनुमति के बिना घर बनाने का अधिकार नहीं है, लेकिन निर्माण को ढहाए जाने को अंतिम उपाय माना जाना चाहिए. इसके अलावा ऐसी कार्रवाई घर के मालिक को नियमितीकरण प्राप्त करके स्थिति को सुधारने का उचित मौका प्रदान करने के बाद ही की जानी चाहिए.

अदालत ने घरों के स्वामित्व विवरण में विसंगतियों की ओर भी इशारा किया और कहा कि एक मनगढ़ंत पंचनामा तैयार किया गया था.

नगर निगम ने आरोप लगाया कि मकान नं. 466 के मालिक परवेज खान थे, न कि लांगरी और दूसरा मकान उमा के नाम पंजीकृत था. हालांकि, अदालत ने पाया कि परवेज खान नाम का कोई भी व्यक्ति अस्तित्व में नहीं है.

अदालत ने कहा, ‘परवेज खान के नाम पर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिससे पता चले कि उसने ही संपत्ति खरीदी है, इस तथाकथित मौखिक जानकारी के आधार पर पंचनामा बनाया गया और घर तोड़े जाने की कठोर कार्रवाई की गई है.’

मकान नंबर 467 के संबंध में कोर्ट ने कहा कि उमा को कार्रवाई का नोटिस लापरवाहीपूर्वक और बिना किसी पावती के दिया गया था. पीठ ने उचित प्रक्रिया की कमी और मनमानी कार्रवाई पर निगम अधिकारियों की खिंचाई की.

याचिकाकर्ताओं को सिविल कोर्ट के माध्यम से अपने नुकसान के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करने का विकल्प भी दिया गया है.

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