बिलक़ीस बानो फ़ैसले में अपने ख़िलाफ़ की गई टिप्पणियां हटवाने के लिए कोर्ट पहुंची गुजरात सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने बीते आठ जनवरी को बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की सज़ामाफ़ी और रिहाई को रद्द करते हुए कहा था कि गुजरात सरकार ने उन्हें समयपूर्व रिहा करते हुए 'शक्ति का दुरुपयोग' किया था.

बिलक़ीस बानो. (फोटो: Wikimedia/शोम बसु)

सुप्रीम कोर्ट ने बीते आठ जनवरी को बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की सज़ामाफ़ी और रिहाई को रद्द करते हुए कहा था कि गुजरात सरकार ने उन्हें समयपूर्व रिहा करते हुए ‘शक्ति का दुरुपयोग’ किया था.

बिलक़ीस बानो. (फोटो: Wikimedia/शोम बसु)

नई दिल्ली: बिलकीस बानो मामले में 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात सरकार को फटकार लगाने के लगभग एक महीने बाद सरकार ने 8 जनवरी के आदेश की समीक्षा के लिए अदालत का रुख किया है.

लाइव लॉ के अनुसार, राज्य सरकार ने उक्त फैसले में इसके खिलाफ की गई ‘प्रतिकूल टिप्पणियां’ हटाने की मांग की है.

अपनी अपील में गुजरात सरकार ने कहा है कि मामले से संबंधित फैसले में टिप्पणियां न केवल बेहद अनुचित और मामले के रिकॉर्ड के खिलाफ थीं, बल्कि इससे राज्य पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. सरकार ने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ के आदेश का पालन करने के लिए राज्य को ‘शक्ति के दुरुपयोग’ का दोषी ठहराने वाला सुप्रीम कोर्ट का आदेश ‘रिकॉर्ड के संदर्भ में गलत था.’

ज्ञात हो कि 8 जनवरी को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई को ख़ारिज करते हुए कहा था कि गुजरात सरकार के पास उन्हें समय से पहले रिहा करने की शक्ति नहीं थी.

लाइव लॉ के मुताबिक, एक अन्य आधार जिस पर शीर्ष अदालत में गुजरात सरकार के सज़ामाफी के आदेश को अवैध पाया गया था, वह यह था कि गुजरात सरकार द्वारा अपने हिसाब से 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई का निर्देश देते हुए ‘शक्ति का दुरुपयोग’ किया था. यह स्वीकार करते हुए कि मई 2022 के अपने एक आदेश में शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ ने गुजरात सरकार को इसकी 1992 की सजामाफी नीति के तहत दोषियों में से एक- राधेश्याम शाह के सजामाफ़ी आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राधेश्याम ने अदालत में धोखाधड़ी करके यह आदेश प्राप्त किया था, जहां उन्होंने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया या दबाया था.

पीठ का यह भी कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का 13 मई, 2022 का फैसला ‘अमान्य’ है क्योंकि यह ‘अदालत के साथ धोखाधड़ी करके’ प्राप्त किया गया था. इसने यह भी जोड़ा कि फैसले को आगे बढ़ाने को लेकर की गई सभी कार्यवाही भी गलत और कानून में अमान्य हैं.

पीठ ने जोड़ा था कि जिस राज्य में अपराधी को सजा सुनाई गई है, वह छूट देने के लिए उपयुक्त सरकार है, न कि उस राज्य की सरकार जहां अपराध हुआ था.

मालूम हो कि बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था.

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान 21 साल की गर्भवती बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनकी तीन साल की बच्ची समेत कम से कम 14 परिजनों की हत्या के लिए इन सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

15 अगस्त 2022 को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था. सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था.