न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग को लेकर आंदोलनरत किसानों को चौथे दौर की वार्ता में केंद्र द्वारा पांच साल के लिए एमएसपी पर पांच फसलें खरीदने का प्रस्ताव दिया गया था, जिस पर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि यह अनुबंध खेती का प्रस्ताव था, जो पहले ही विफल हो चुकी है. यह किसानों को स्थायी आय की गारंटी नहीं दे सकती है.
चंडीगढ़: केंद्र सरकार द्वारा चौथे दौर की वार्ता के दौरान पांच साल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर पांच फसलें खरीदने का प्रस्ताव पेश करने के एक दिन बाद किसान संगठनों ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया और सोमवार (19 फरवरी) की देर रात एक मीडिया ब्रीफिंग में इसकी घोषणा की.
उन्होंने कहा कि किसान संगठन 21 फरवरी (बुधवार) को सुबह 11 बजे अपना ‘दिल्ली चलो’ मार्च फिर से शुरू करेंगे.
संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के संयोजक जगजीत सिंह डल्लेवाल, जो किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के साथ किसान आंदोलन के इस नवीनतम अध्याय का नेतृत्व कर रहे हैं, ने संवाददाताओं से कहा कि केंद्र सरकार का प्रस्ताव किसानों के लिए फायदेमंद नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमने इसे अस्वीकार करने और बुधवार से अपना मार्च फिर से शुरू करने का फैसला किया है.’
केएमएससी के संयोजक सरवन सिंह पंधेर ने भी यह कहा कि वे सभी 23 फसलों पर एमएसपी गारंटी कानून की अपनी मांग पर अड़े रहेंगे.
डल्लेवाल ने कहा कि सरकार का प्रस्ताव दिखावा है.
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘मूल रूप से यह एक अनुबंध खेती का प्रस्ताव था. यह केवल उन लोगों के लिए मान्य था, जो धान या गेहूं से दाल, मक्का या कपास जैसी फसलों की ओर रुख करेंगे. कृषि मॉडल के रूप में अनुबंध खेती पहले ही विफल हो चुकी है और यह किसानों को स्थायी आय की गारंटी नहीं दे सकती है. इसके अलावा, सरकार का प्रस्ताव 23 में से पांच फसलों के लिए था.’
उन्होंने कहा कि आंदोलन के किसानों का मानना है कि एमएसपी पर कानून बनना और सभी 23 फसलों की खरीद की गारंटी होना जरूरी है.
डल्लेवाल ने कहा कि कृषि अर्थव्यवस्था विशेषज्ञों के विभिन्न अनुमानों से पता चलता है कि अगर सरकार सभी 23 फसलों के लिए एमएसपी सुनिश्चित करती है, तो कुल खर्च 1.75 लाख करोड़ रुपये से अधिक नहीं होगा. उन्होंने कहा, ‘दूसरी ओर, केंद्र सरकार सिर्फ खाद्य तेलों के आयात पर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है.’
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने उनकी अन्य मांगों जैसे ऋण माफी, बिजली के निजीकरण को रोकना, व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना, 60 वर्ष से अधिक उम्र के किसानों को 10,000 रुपये मासिक पेंशन, लखीमपुर खीरी में किसानों के नरसंहार पर केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ की बर्खास्तगी और मुकदमा चलाने जैसी अन्य मांगों पर प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है.
दोनों किसान नेताओं ने पंजाब में इंटरनेट की बहाली और पंजाब-हरियाणा सीमा के शंभू और खनौरी सीमा पर डेरा डाले किसानों पर हो रहे अत्याचार जैसे अन्य मामले भी उठाए.
उन्होंने कहा कि आंदोलनरत किसानों का मानना है कि एमएसपी पर कानून बनाना और सभी 23 फसलों की खरीद की गारंटी होना जरूरी है.
डल्लेवाल ने कहा कि हरियाणा के डीजीपी ने अपने ताजा बयान में दावा किया है कि किसानों पर पैलेट गन का इस्तेमाल नहीं किया गया. उन्होंने कहा, ‘यह झूठ है.’
इस बीच, अन्य किसान संगठन जो केंद्र के साथ बातचीत का हिस्सा नहीं हैं, उन्होंने भी प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
एक बयान में मूल संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) – जो इससे अलग हुए गुट एसकेएम (गैर-राजनीतिक) के दिल्ली मार्च कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है – ने कहा कि पांच वर्षों के लिए मक्का, कपास, अरहर/तुअर, मसूर और उड़द नाम की पांच फसलों की खरीद का केंद्र का प्रस्ताव मूल रूप से गारंटीशुदा खरीद वाली सभी फसलों के लिए ‘लागत + 50% लाभ’ मॉडल (जिसका वादा 2014 के आम चुनाव से पहले भाजपा के घोषणा-पत्र में किया गया था और मूल रूप से एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा अनुशंसित किया गया था और 2006 में प्रस्तुत किया गया था) पर एमएसपी की मांग से ध्यान हटाने और उसे कमजोर करने के लिए है.
एसकेएम ने घोषणा की कि गारंटीशुदा खरीद वाली सभी फसलों के लिए उपर्युक्त एमएसपी मॉडल से नीचे कुछ भी भारत के किसानों को स्वीकार्य नहीं है.
एसकेएम ने कहा, ‘अगर मोदी सरकार भाजपा द्वारा किए गए वादे को लागू करने में असमर्थ है तो प्रधानमंत्री ईमानदारी से लोगों को यह बताएं.’
अब बड़े प्रदर्शन की संभावना
13 फरवरी को जब किसानों को पंजाब और हरियाणा सीमा पर शंभू और खनौरी में दिल्ली की ओर मार्च करने से रोका गया तो झड़पें शुरू हो गईं थीं और दर्जनों घायल हो गए थे.
तब से यथास्थिति बनी हुई है, क्योंकि किसान केंद्र के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं. चार दौर की बातचीत हो चुकी है.
इन सीमाओं पर 10,000 से अधिक किसान डेरा डाले हुए हैं, जहां भारी संख्या में सुरक्षाकर्मी भी तैनात किए गए हैं.
सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किसान नेताओं ने हरियाणा सरकार से अपील की कि वह उनके मार्च को न रोकें और उन्हें अपने वैध अधिकारों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय राजधानी (दिल्ली) में डेरा डालने की अनुमति दे.
डल्लेवाल ने कहा कि अपनी मांग के लिए आंदोलन करना किसानों का संवैधानिक अधिकार है और इसे बलपूर्वक नहीं छीना जा सकता है, जैसा कि इन सीमाओं पर हो रहा है.
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