जामिया मस्जिद जाने की अनुमति नहीं देने के ख़िलाफ़ मीरवाइज़ जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट पहुंचे

मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने अपनी याचिका में कहा है कि सितंबर 2023 में उन्हें नज़रबंदी से ​रिहा कर दिया गया था. हालांकि अक्टूबर 2023 से उन्हें जामिया मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ का नेतृत्व करने की अनुमति नहीं दी गई है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने केंद्रशासित प्रशासन को इस संबंध में जवाब देने के लिए अंतिम अवसर दिया है.

मीरवाइज उमर फारूक. (फोटो साभार: फेसबुक)

मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने अपनी याचिका में कहा है कि सितंबर 2023 में उन्हें नज़रबंदी से ​रिहा कर दिया गया था. हालांकि अक्टूबर 2023 से उन्हें जामिया मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ का नेतृत्व करने की अनुमति नहीं दी गई है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने केंद्रशासित प्रशासन को इस संबंध में जवाब देने के लिए अंतिम अवसर दिया है.

मीरवाइज उमर फारूक. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: मीरवाइज उमर फारूक ने लगभग तीन महीने से श्रीनगर की जामिया मस्जिद में अपने धार्मिक कर्तव्यों पर जारी प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता को उनकी याचिका में उठाई गईं चिंताओं का जवाब देने के लिए ‘अंतिम और फाइनल अवसर’ दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मीरवाइज की रिट याचिका में अदालत से जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव, गृह विभाग और कश्मीर के पुलिस प्रमुख को निर्देश देने की मांग की गई है कि याचिकाकर्ता के दैनिक जीवन में कोई बाधा न पैदा की जाए, जिसमें एक नागरिक के रूप में उनकी स्वतंत्र आवाजाही भी शामिल है. साथ ही मांग की गई है कि संविधान के तहत याचिकाकर्ता को दी गई स्वतंत्रता का आनंद लेने और प्रदर्शन करने की अनुमति दी जाए.

वरिष्ठ ​एडिशनल एडवोकेट जनरल (एएजी) से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद अदालत ने 19 फरवरी को, ‘अनिच्छा से और न्याय के हित में’ याचिका का जवाब देने के लिए एक और सप्ताह का समय प्रदान किया. मामले को 6 मार्च के लिए फिर से सूचीबद्ध किया गया है.

अदालत ने यह भी कहा कि केंद्रशासित प्रशासन के लिए जवाब देने का यह ‘अंतिम और फाइनल अवसर होगा’.

मीरवाइज को सितंबर 2023 में उनके आवास में नजरबंदी से रिहा कर दिया गया था, लेकिन अक्टूबर से उन्हें जामिया मस्जिद में शुक्रवार की नमाज का नेतृत्व करने की अनुमति नहीं दी गई है.

अपनी याचिका में उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें ‘अवैध हिरासत’ में रखा गया है और यह ‘वास्तविक अर्थों और परिप्रेक्ष्य में भेदभाव’ है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ जाता है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रतिवादियों की ऐसी अनुचित कार्रवाई जम्मू-कश्मीर के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का एक जान-बूझकर किया गया प्रयास है और अदालत के हस्तक्षेप से उनकी आवाजाही की स्वतंत्रता बहाल की जानी चाहिए.

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, ‘सितंबर 2023 में मनमाने ढंग से घर में हिरासत में रखने के चार साल बाद मेरी रिहाई पर मुझे केवल जामिया मस्जिद में लगातार तीन शुक्रवार की सभाओं में भाग लेने की अनुमति दी गई थी. तब से मुझे शुक्रवार को जामिया मस्जिद जाने या धार्मिक सभाओं की किसी अन्य मस्जिद में मीरवाइज के रूप में संबोधित करने से रोका गया है.’

उन्होंने कहा कि जब भी अंजुमन (मस्जिद की प्रबंधन समिति) ने अधिकारियों से संपर्क किया, ‘उन्होंने प्रतिक्रिया देने में टाल-मटोल करते हुए कहा कि वे अपने उच्च अधिकारियों से जांच करेंगे और वापस आएंगे, जो वे कभी नहीं करते.’

जबकि उन्हें सप्ताह के अन्य दिनों में सुरक्षा के साथ यात्रा करने की अनुमति है और हाल ही में उन्होंने दिल्ली की यात्रा भी की थी, मीरवाइज ने कहा कि ‘शब-ए-मिराज के महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर के बावजूद मुझे फिर से जामिया मस्जिद जाने की अनुमति नहीं दी गई.’

रमज़ान करीब आ रहा है और अन्य धार्मिक कर्तव्यों के साथ भव्य मस्जिद में दैनिक नमाज हो रही हैं, उन्होंने कहा कि उन्हें चिंता है कि उन्हें फिर से घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.