मराठा आरक्षण विधेयक महाराष्ट्र सरकार की चुनावी चाल है, कोर्ट में टिक नहीं पाएगा: एक्टिवि​स्ट

महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला एक विधेयक पारित किया है. मराठा समुदाय के नेताओं ने तर्क दिया है कि विधेयक एक चुनावी चाल है और अदालतों में क़ानूनी जांच में नहीं टिक नहीं पाएगा, क्योंकि इसे ठीक से तैयार नहीं किया गया है.

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (फोटो साभार: फेसबुक)

महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला एक विधेयक पारित किया है. मराठा समुदाय के नेताओं ने तर्क दिया है कि विधेयक एक चुनावी चाल है और अदालतों में क़ानूनी जांच में नहीं टिक नहीं पाएगा, क्योंकि इसे ठीक से तैयार नहीं किया गया है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: महाराष्ट्र विधानसभा ने बीते मंगलवार (20 फरवरी) को मराठा समुदाय के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला एक विधेयक सर्वसम्मति से पारित किया.

यह तीसरी बार है जब राज्य द्वारा इस तरह का विधेयक पेश किया गया है. पहले दो प्रयासों को अदालतों ने कानूनी रूप से अनुचित बताकर खारिज कर दिया था.

विधेयक में कहा गया है कि ‘क्रीमी लेयर’ वालों को इस आरक्षण से बाहर रखा जाएगा. संयोग से तीनों विधेयक चुनाव से पहले पेश किए गए थे. इस बार भी मराठा समुदाय के नेताओं ने तर्क दिया है कि विधेयक एक चुनावी चाल है और अदालतों में कानूनी जांच में नहीं टिक नहीं पाएगा, क्योंकि इसे ठीक से तैयार नहीं किया गया है.

एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय के ‘सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन’ के आधार पर विधेयक पेश किया, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सर्वेक्षण द्वारा स्थापित किया गया है.

हालांकि, यह दावा विवाद से भरा हुआ है क्योंकि आयोग के छह सदस्यों – जिसमें इसके अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) आनंद निर्गुडे भी शामिल हैं – ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि राज्य सरकार उनके काम में हस्तक्षेप कर रही थी और उन्हें मराठा समुदाय को पिछड़ा घोषित करने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रही थी.

आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे विपक्षी नेता और मराठा नेता दोनों ही नए विधेयक से सहमत नहीं हैं.

मराठा विरोध प्रदर्शन का चेहरा बन चुके मनोज जारांगे ने कहा है कि मराठा समुदाय को एक अलग आरक्षित वर्ग के रूप में जोड़ने के बजाय ओबीसी समुदाय में शामिल किया जाना चाहिए था. टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘सरकार ने हमें एक अलग आरक्षण दिया है जो 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर गया है और जो कानून की जांच में खरा नहीं उतरता है.’

वकील और मराठा कार्यकर्ता प्रवीण इंदुलकर ने कहा, ‘हम सरकार से और खासकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से निराश हैं, जिन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर प्रतिज्ञा ली थी कि वह आरक्षण देंगे, लेकिन उनका फैसला कानूनी जांच में टिक नहीं पाएगा.’

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के प्रमुख शरद पवार ने कहा कि नया विधेयक उन दो अन्य विधेयकों से काफी मिलता-जुलता है, जिन्हें अदालतों ने खारिज कर दिया था.

उन्होंने कहा, ‘राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किए गए विधेयक का मसौदा शीर्ष अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए गए विधेयक के समान ही है. हमें यह देखने की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट में नए विधेयक का क्या होता है.’

मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का पिछला फैसला

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल 13 अक्टूबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि मराठा आरक्षण कानून को असंवैधानिक ठहराने वाले शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ एक उपचारात्मक याचिका विचार के लिए सूचीबद्ध की जाएगी.

मई 2021 में शीर्ष अदालत ने मराठा समुदाय के लिए आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था क्योंकि यह 50% कोटा सीमा का उल्लंघन करता था. अदालत ने अपने 1992 के इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार करने से भी इनकार कर दिया था, जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की गई थी.

अदालत ने आगे कहा था कि उसे मराठा समुदाय को कोटा लाभ देने के लिए 50% की सीमा को तोड़ने के लिए कोई ‘असाधारण परिस्थितियां’ या ‘असाधारण स्थिति’ नहीं मिली.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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