बिहार में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा का लंबा इतिहास रहा है

नीतीश कुमार पद्मावती के रिलीज़ में उलझे हैं, लेकिन नाबालिग दलित लड़की के सामूहिक बलात्कार और तीन लोगों की हत्या पर सरकार ख़ामोश है.

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो: रॉयटर्स)

बिहार के मुख्यमंत्री पद्मावती के रिलीज़ में उलझे हैं, पद्मावती के सम्मान की चिंता है उन्हें. राज्य में नाबालिग दलित लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ, परिवार के तीन लोगों की हत्या हुई, उस पर सरकार ख़ामोश है.

फोटो: रॉयटर्स
फोटो: रॉयटर्स

शीशे का दरवाजा खोलकर हम एक बड़े कमरे में दाखिल हुए. सामने आईसीयू है. शीशे के बाहर कुछ साफ दिख नहीं रहा था. मटमैले बिस्तरों पर लम्बी कतारों में मरीज़ पड़े कराह रहे हैं.

मैंने अंदर झांका. लड़की का चेहरा सूजा हुआ है, आंखें बंद हैं, दांत भिंचे हुए. तकलीफ से उसका चेहरा ऐंठ गया है. डॉक्टर का चेहरा शोक से खिंचा हुआ है. उन्होंने कहा उसकी हालत गंभीर है. अभी कुछ नहीं कह सकते.

हम अस्पताल से बाहर आ गए हैं. बाहर लड़की के कुछ रिश्तेदार हैं… डरे हुए, खुलकर कुछ कहना नहीं चाहते. बबलू चचेरा भाई है. साथ में चाची है. 25 नवंबर की रात ये घटना हुयी. यह कहते हुए उसके चेहरे पर दुख की गहरी छाया तैर गयी. उसके गाल अब भी आंसुओं से गीले हैं. उसकी आंखें कहीं दूर देख रही थी…

24 नवंबर की रात भागलपुर जिले के बिहपुर के झंडापुर गांव में एक दलित परिवार के तीन सदस्यों की बर्बर हत्या कर दी गयी. उनकी आंखेंं निकाल दी गयीं, किसी धारदार हथियार से उनका गला रेत दिया गया.

कनिक राम और 10 साल के बच्चे छोटू का लिंग काट दिया गया, पत्नी मीना देवी का गला रेत दिया गया. खून से भरे फर्श पर उनकी 14 साल की बेटी तड़प रही थी.

उसके बदन पर से कपड़े नोंचकर अलग कर दिये गये. उसके गुप्तांग पर गहरी चोट थी. उसका सामूहिक बलात्कार किया गया था. उसके सिर पर लोहे के हथियार से हमला किया गया था.

ये भयानक और खौफ़नाक चेहरा हमारे समाज का है!

खून से लथपथ बच्ची को उस दिन तक अस्पताल आये हुए पांच दिन हो गए थे. वह कोमा में थी. अस्पताल के अधीक्षक ने बताया कि उसके सिर में गहरी चोट है, खून के थक्के जम गए हैं.

इस बर्बर हत्या पर सरकार का कोई बयान नहीं आया न ही इस बच्ची को देखने कोई सरकारी महकमे से कोई आया. बिहार के मुख्यमंत्री पद्मावती फिल्म को रिलीज़ नहीं करने के बयान में उलझे हुए हैं. पद्मावती के सम्मान की चिंता है उन्हें.

उसी राज्य में एक 14 साल की दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार होता है, उसके परिवार के तीन लोगों की निर्मम हत्या होती है, लेकिन सरकार खामोश है.

बिहपुर के झंडापुर गांव में मिली-जुली आबादी है. दलित टोले में 70 से अधिक घर हैं, जो एक-दूसरे से बिल्कुल सटे हुए हैं. कई दलित परिवार मछली के कारोबार से जुड़े हैं.

कनिक राम ने हाल ही में जलकर (मछली पालने का तालाब) को ठेके पर लिया था. जलकर पर उस इलाके की ऊंची जाति का कब्जा है. इस हत्या के पीछे जलकर विवाद और दलितों का समाज में आगे बढ़ना भी एक वजह बताया जा रहा है.

जिस बच्ची के साथ बलात्कार हुआ, वह 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. चौधरी टोला में स्थित सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती थी, जहां उसके साथ कुछ दबंगों ने छेड़खानी की, जिसका विरोध उसने किया था.

ऐसी कई बातें छनकर आ रही है, पर दहशत इतनी है कि कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं है.

आंकड़े बताते है कि पिछले एक साल में दलितों और महिलाओं पर हुए हिंसक हमले की घटनाएं बढ़ी हैं.

इसमें वैशाली के दलित आवासीय विद्यालय में एक लड़की की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, भागलपुर में दलित महिलाओं पर हमला और रोहतास जिले के काराकाट थाना क्षेत्र के मोहनपुर गांव में 15 साल के एक दलित लड़के को दबंगों द्वारा जिंदा जला दिए जाने समेत कई बड़े मामले सामने आये.

इंडिया टुडे में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में हर 18 मिनट पर एक दलित के खिलाफ अपराध घटित होता है. औसतन हर रोज तीन दलित महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं, दो दलित मारे जाते हैं, और दो दलित घरों को जला दिया जाता है.

37 फीसदी दलित गरीबी रेखा से नीचे रहते है, 54 फीसदी कुपोषित है, प्रति एक हजार दलित परिवारों में 83 बच्चे जन्म के एक साल के भीतर मर जाते हैं.

यही नहीं 45 फीसदी बच्चे निरक्षर रह जाते हैं. करीब 40 फीसदी सरकारी स्कूलों में दलित बच्चों को कतार से अलग बैठकर खाना पड़ता है, 48 फीसदी गांवों में पानी के स्रोतों पर जाने की मनाही है.

जब देश की हालत ये हैं तो बिहार के बारे में अनुमान लगया जा सकता है. बिहार अपनी अर्ध सामन्ती संरचना से  अब तक निकल नहीं पाया है. उसके अवशेष बचे हुए हैं.

राजनीतिक परिदृश्य भी बदले हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अमीर दास आयोग का भंग होना. अपने पहले कार्यकाल में सत्ता में आते ही नीतीश सरकार ने अमीर दास आयोग भंग कर दिया.

अमीर दास भंग करने के पीछे किस दल का दबाव था ये सब जानते हैं. भारतीय जनता पार्टी की ये पुरानी मांग रही है. अमीर दास आयोग भाजपा की सवर्ण राजनीति के लिए खतरा रहा है.

यहां सामाजिक संरचना में दलित आज भी हाशिए पर हैं. यह वही बिहार है जहा नक्सलबाड़ी आन्दोलन की जड़ें गहरी रहीं हैं. जहां दलितों के संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है. इस संघर्ष में उनकी बस्तियां, खेत-खलिहान जलते रहे हैं.

बिहार ने कई हिंसक जातीय दंगे देखे हैं, जिसमें रणवीर सेना का हाथ रहा है, जिसने दलितों और गरीब महिलाओं का नरसंहार किया. गर्भवती महिलाओं के गर्भ पर हमला किया और औरतों के स्तन काटे.

ये सेना बिहार में आज भी सक्रिय है, जिसे एक खास राजनीतिक दल का संरक्षण मिला हुआ है. ये माना जा रहा है कि अक्षम्य बर्बरता और असमानताओं के खिलाफ बोलने की सजा दलितों को मिली है.

इस तरह की हिंसा ने हमारे समाज को खानों में बांट दिया है. हमारा सामान्य व्यवहार, हमारा समाज, हमारे सपने तक इनसे आरंजित हो रहे हैं. कितनी तरह की दरारें हैं हमारे बीच.

किसी भी दरार के पास आग लगाइये, प्रचंड मात्रा में राजनीतिक ऊर्जा फूट पड़ती है जिसका वे इस्तेमाल करते हैं.

झंडापुर गांव में दहशत है. कोई कुछ नहीं बोलना चाहता. पुलिस ने जो प्राथमिकी दर्ज की है उसमें अज्ञात लोग दर्ज हैं.

जिस दुनिया का हम सोग मना रहे हैं वो पहले से ही बीमार और रोगी है, हिंसा का सरोकार सिर्फ सरकारों से नहीं है…ये वीभत्स विचारधारा है. ये दुनिया के सामने पूरी तरह नंगे और निर्लज्ज खड़े हैं.

सबकी निगाहें उस बच्ची पर है जो अस्पताल में मौत से जूझ रही है. उसके होश आने पर शायद कोई सुराग मिले. अगर उसे डॉक्टर बचा नहीं पाए तो क्या इस निर्मम हत्या के कातिल पकड़े जायेंगे ?

(निवेदिता स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहती हैं.)