क़ानून विशेषज्ञों का सवाल- यूएपीए-पीएमएलए के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ध्यान क्यों नहीं देता?

द वायर और लाइव लॉ के सहयोग से कैंपेन फॉर ज्युडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स द्वारा आयोजित एक सेमिनार में वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने कहा कि असहमति को कुचलने के लिए सरकार ने जो सबसे आसान तरीका खोजा है, वह यूएपीए का इस्तेमाल है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

द वायर और लाइव लॉ के सहयोग से कैंपेन फॉर ज्युडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स द्वारा आयोजित एक सेमिनार में वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने कहा कि असहमति को कुचलने के लिए सरकार ने जो सबसे आसान तरीका खोजा है, वह यूएपीए का इस्तेमाल है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने सवाल किया है कि सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) जैसे कानूनों के दुरुपयोग पर ध्यान देने से इनकार क्यों किया है.

वे एक सेमिनार को संबोधित कर रहे थे, जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक प्रशासन, प्रबंधन और राष्ट्रीय राजधानी में नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों से संबंधित मामलों में हालिया रुझानों पर केंद्रित था, जिसे शनिवार (24 फरवरी) को द वायर और लाइव लॉ के सहयोग से कैंपेन फॉर ज्युडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स द्वारा आयोजित किया गया था.

देसाई ने इस दौरान अपने संबोधन में कहा, ‘असहमति को कुचलने के लिए सरकार ने जो सबसे आसान तरीका खोजा है, वह यूएपीए का इस्तेमाल करना है… आपके सामने ऐसी स्थिति है जहां लोगों को किसी घटना के कारण नहीं, बल्कि संदेह के आधार पर जेल में डाला जा रहा है. और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया क्या है?’

चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पैसे और राजनीति के गठजोड़ पर ध्यान देने का जिक्र करते हुए देसाई ने पूछा कि वह पीएमएलए और यूएपीए के दुरुपयोग पर न्यायिक संज्ञान क्यों नहीं ले सकता.

उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट इस तथ्य पर न्यायिक संज्ञान क्यों नहीं ले सकता कि यूएपीए का दुरुपयोग किया जा रहा है? उसका इस्तेमाल किया जा रहा है? सॉलिसिटर जनरल जो भी कहते हैं, आपको हमेशा उनकी बात के आगे झुकना क्यों पड़ता है, जबकि यह कोई संवैधानिक पद नहीं है. जब भी कोई कश्मीर का मुद्दा उठाता है तो वह उछल पड़ते हैं और कहते हैं कि ‘हम जानते हैं कि आप किसके लिए काम कर रहे हैं, पड़ोसी देश के लिए. लेकिन न्यायाधीशों में उन्हें चुप रहने और बैठ जाने के लिए कहने की हिम्मत नहीं होती है. अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट को मुख्य न्यायाधीश की अदालत के रूप में जाना जाता है. भारत में सुप्रीम कोर्ट को तुषार मेहता की अदालत के नाम से जाना जाना चाहिए. हम ऐसी स्थिति में आ गए हैं. किसी में उन्हें लताड़कर यह कहने की हिम्मत नहीं है कि बहुत हो गया.’

देसाई ‘नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का हालिया रुझान’ सेमिनार के दूसरे सत्र में बोल रहे थे.

उल्लेखनीय है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और राष्ट्रीय जांच प्राधिकरण (एनआईए) जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा संदिग्ध आधार पर कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और नेताओं की गिरफ्तारी के मामलों में वृद्धि के बीच नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों का मुद्दा महत्वपूर्ण हो गया है.

इस आयोजन के वक्ताओं में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके पटनायक और इंदिरा बनर्जी; राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के पूर्व निदेशक प्रोफेसर मोहन गोपाल; वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस, कपिल सिब्बल; और दिल्ली हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट की वकील वरीशा फरासात शामिल थे.

पेस ने अपने भाषण में कहा कि जैसी एफआईआर देखने मिल रही हैं उनमें एक ‘नया तरीका’ है.

उन्होंने कहा, ‘आजकल हम जिस तरह की एफआईआर से निपटते हैं उनमें एक नया तरीका है. कुछ ऐसे लोग हैं जो किसी बात से नाराज होने पर संसद में बोलते हैं और उसे किसी अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा ट्वीट किया जाता है और फिर 3-4 दिनों तक नए न्यूज चैनलों तक चलाया जाता है, चौथे और पांचवें दिन वह एफआईआर बन जाती है. यह तरीका बन गया है. यूएपीए का मामला इसी तरह आगे बढ़ता है, यही पैटर्न मैंने देखा है.’

हालांकि पेस ने कोई नाम नहीं लिया, लेकिन 2023 में संसद के मानसून सत्र के दौरान भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया था कि राहुल गांधी सहित कांग्रेस नेताओं और समाचार संगठन न्यूज़क्लिक को ‘भारत विरोधी’ माहौल बनाने के लिए चीन से धन मिला था.

न्यूजक्लिक के मालिक और संपादक प्रबीर पुरकायस्थ तब से यूएपीए आरोपों के तहत जेल में हैं.

पेस ने कहा कि यूएपीए के तहत आरोपित लोगों को पीएमएलए या एनडीपीएस (नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट) मामलों की तुलना में जमानत मिलना अधिक कठिन होता है.

प्रोफेसर गोपाल ने अपने भाषण में कहा कि वर्तमान में नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों पर अब दिए जा रहे निर्णयों को दो प्रकार के संदर्भ में समझने की आवश्यकता है, एक संविधानवादी यानी जो संविधान में निहित है और दूसरा- थेअक्रटिक (धार्मिक विश्वास पर आधारित) निर्णय, जो इस विश्वास से उपजते हैं कि हमें निर्णय देने के लिए संविधान से परे धर्म में जाना होगा.

गोपाल ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद भूमि के स्वामित्व वाले फैसले और हिजाब मामले में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय राजनीति में जहां धर्म के लिए कोई जगह नहीं है, वहां इन धार्मिक फैसलों के जरिये प्रतिमाएं लाई जा रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘एक भवन संरचना की कल्पना करें – हमारी राजनीति जहां धर्म के लिए कोई स्थान नहीं है और सबसे पवित्र आधार यह विश्वास है कि सारी शक्ति लोगों से आती है, और उस स्थान में आप इन धार्मिक निर्णयों के माध्यम से इन मूर्तियों को ला रहे हैं. इसे बदलने, इन संरचनाओं को गिराने और एक नए धार्मिक राज्य का निर्माण करने में आधी सदी लग सकती है और वह निर्माण वर्तमान में चल रहा है.’

अधिवक्ता वरीशा फरासात ने कहा कि जमानत देने के तरीके और विशेष रूप से दिल्ली दंगों के केस, भीमा कोरेगांव मामलों या न्यूज़क्लिक मामले में जांच कैसे हो रही है, यह दर्शाता है कि पुलिस अच्छी नीयत के साथ काम नहीं कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘जब भी यूएपीए के तहत आरोपी किसी व्यक्ति का मामला मेरे पास आता है, तो हम उसे सलाह देते हैं कि हम 6 महीने बाद जमानत के लिए आवेदन करेंगे, हम इसी तरह सलाह दे रहे हैं. हम बहुत गंभीर स्थिति में हैं. हम कहते हैं कि जब तक आरोप पत्र दाखिल नहीं हो जाता, हम कुछ नहीं करेंगे.’

उन्होंने जोड़ा, ‘यहां तक कि जब हम आतंकी मामलों को देखते हैं तो सुप्रीम कोर्ट में निष्पक्ष होने की प्रवृत्ति होती है. उच्चतम न्यायालय का न्यायशास्त्र हाल तक स्वतंत्रता के बारे में था और लोगों को उनकी स्वतंत्रता देने की ओर झुका हुआ था, चाहे अपराध कोई भी हो. मुझे लगता है कि वे दिन अब चले गए हैं.’

पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने भाषण में कहा कि अब सीआरपीसी के इस कानून की उत्पत्ति और आईपीसी पर सवाल उठाने का समय आ गया है, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक कानूनों से लिया गया था, जिनका इस्तेमाल केवल संदेह के आधार पर असहमति को दबाने के लिए किया जाता था.

सिब्बल बोले, ‘जब अंग्रेजों के पास यह प्रावधान था कि आप संदेह के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं तो उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि वे असहमति को दबाना चाहते थे और किसी को भी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बोलने से रोकना चाहते थे. यह प्रावधान संवैधानिकता की कसौटी पर कैसे खरा उतरता है?

सिब्बल ने कहा कि पीएमएलए और ईडी मामलों में संदेह के तहत गिरफ्तारियां की जाती हैं और समन और अपराध के कारणों का खुलासा नहीं किया जाता है. उन्होंने पीएमएलए और यूएपीए संबंधी प्रावधानों को असंवैधानिक बताया.

जस्टिस पटनायक ने अपनी टिप्पणी में कहा कि एक न्यायाधीश की सबसे महत्वपूर्ण योग्यता ‘नागरिक स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता’ है.

उन्होंने कहा, ‘न्यायाधीशों को संवेदनशील होना चाहिए. किसी न्यायाधीश की सबसे महत्वपूर्ण योग्यता व्यक्तियों की नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता है.

उन्होंने बार के भी स्वतंत्र होने पर जोर दिया और कहा कि वकीलों को जजों की चापलूसी से बचना होगा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq