पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश क़ाज़ी फैज़ ईसा की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने इसी महीने ईशनिंदा के आरोप में सात महीने से क़ैद में रखे गए अहमदिया समुदाय के एक शख़्स को ज़मानत दी थी. इसके बाद उनके आदेश की आलोचना के साथ उन्हें मौत की धमकियों का सामना भी करना पड़ा.
नई दिल्ली: 14 फरवरी को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने ईशनिंदा के एक आरोपी को जमानत देने के बाद हजारों लोगों ने 23 फरवरी को पेशावर में मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.
एएफपी के मुताबिक, ईसा की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने ही यह फैसला सुनाया था.
रिपोर्ट के अनुसार, अहमदी धार्मिक संप्रदाय, जिन्हें कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा विधर्मी माना जाता है, के एक शख्स जुबैर सईद साबरी की रिहाई का आदेश देने के बाद न्यायाधीश को ऑनलाइन आलोचना और यहां तक कि मौत की धमकियों का भी सामना करना पड़ा. जुबैर बीते सात महीने से हिरासत में थे.
एएफपी के अनुसार, साबरी पर प्रतिबंधित अहमदी टेक्स्ट को प्रसारित करने का आरोप लगाया गया था, जिसे वहां के कट्टरपंथी मौलवियों द्वारा ईशनिंदा के समान माना जाता है.
बीते शुक्रवार को हुए जुमे की नमाज़ के बाद उत्तर-पश्चिमी पेशावर शहर में लगभग 3,000 लोग विरोध प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए थे और सड़कें जाम कर दी थीं. वे अहमदियों के लिए अपमानजनक समझे जाने वाले शब्दों के नारे भी लगा रहे थे.
इस बीच, तालिबान आतंकवादी समूह की पाकिस्तानी शाखा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने मुख्य न्यायाधीश ईसा को ‘इस्लाम का दुश्मन’ भी करार दिया है.
समर्थन भी मिला
फैसले का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान जारी किया. एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, बयान में कहा गया है कि ‘न्यायपालिका और न्यायाधीशों के खिलाफ संगठित अभियान दुर्भाग्यपूर्ण है.’
HRCP is deeply concerned by the ongoing campaign on social media that has targeted Chief Justice Qazi Faez Isa for a judgment that – contrary to what his detractors have alleged – protects the constitutional right of all religious minorities to freedom of religion or belief. The…
— Human Rights Commission of Pakistan (@HRCP87) February 22, 2024
वहीं, पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने कहा है, ‘चीफ जस्टिस ईसा का फैसला सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के धर्म या आस्था की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार की रक्षा करता है.’
मानवाधिकार संगठन ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा, ‘उन राजनीतिक नेताओं और मीडिया के वर्गों को काबू किया जाना चाहिए जो इस अभियान के लिए जिम्मेदार हैं.’
अहमदियों के खिलाफ कानून
अहमदी संप्रदाय खुद को मुस्लिम मानता है, हालांकि साल 1974 में उन्हें पाकिस्तान के संविधान के तहत ‘गैर-मुस्लिम’ घोषित किया गया था. ऐसा बताया जाता है कि 1970 के दशक के बाद से पाकिस्तान में उन पर सैकड़ों हमले हुए हैं, जिनमें हत्याएं और उनके धार्मिक स्थानों और कब्रिस्तानों को नापाक करना शामिल है.
एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, अपने फैसले में, मुख्य न्यायाधीश ईसा ने इस बात पर जोर दिया था कि पाकिस्तान के संविधान के अनुसार, देश के हर नागरिक को उनके धर्म को मानने, उसका अभ्यास और प्रचार करने का अधिकार है.’
उन्होंने यह भी जोड़ा था, ‘आस्था की स्वतंत्रता इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है. लेकिन दुख की बात है कि धर्म के मामले में गुस्सा भड़क जाता है और कुरान के आदेश को भुला दिया जाता है.’