कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने अपने ही दो नेताओं द्वारा कोयला ब्लॉक की नीलामी पर सवाल उठाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की. दोनों नेताओं को बाद में मंत्री बनाए जाने पर उन्होंने भी चुप्पी साध ली. कांग्रेस नेताओं ने अपने आरोपों के समर्थन में कैग की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने शनिवार को कैग की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव कर कोयला नीलामी की और इससे राजस्व का भारी नुकसान हुआ.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विपक्षी दल ने यह भी पूछा कि कोयला नीलामी पर चिंता जताने वाले दो भाजपा नेताओं के पत्रों पर सरकार और प्रधानमंत्री ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की. पार्टी ने आगे पूछा कि क्या सरकार इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को जांच का आदेश देगी.
एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भाजपा नेता और अब मंत्री आरके सिंह और राजीव चंद्रशेखर के पत्र दिखाए, जिनमें 2015 में कुछ कंपनियों के लिए कोयला नीलामी में केवल दो कंपनियों को ब्लॉक के लिए बोली लगाने की अनुमति देने पर चिंता जताई गई थी, जिसके कारण गुटबंदी और राजस्व की हानि हुई.
BJP सरकार ने UPA सरकार की नीति को रद्द कर एक नई कोयला खदान आवंटन की प्रक्रिया बनाई।
ये नीति ऐसी थी- जिसमें नरेंद्र मोदी जी के गिने-चुने दोस्त ही खदान ले सकें।
पहले कोयला खदान एंड यूजर लेते थे, लेकिन मोदी सरकार ने कहा कि एंड यूजर की अलग-अलग श्रेणी बना दी जाए। यानी जो कंपनी जिस… pic.twitter.com/mYnmSwlwqt
— Congress (@INCIndia) February 24, 2024
उन्होंने आरोप लगाया कि बाद में दोनों को मंत्री बना दिया गया और उसके बाद उनकी चिंताओं पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. खेड़ा ने पूछा, ‘क्या मोदी सरकार ईडी को छापेमारी का आदेश देगी और मिलीभगत तथा भ्रष्टाचार की इस घिनौनी गाथा की जांच करेगी.’
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘प्रधानमंत्री पूरे देश में मोदी की गारंटी की बात कर रहे हैं, लेकिन एकमात्र गारंटी जो उन्होंने पूरी की है, वह वही है जो उन्होंने अपने कॉरपोरेट चंदा-दाताओं को दी है: चंदा दो, कोयला लो. ‘
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का ‘श्वेत पत्र’ 2014 के कथित ‘कोलगेट’ घोटाले की चर्चा के साथ शुरू हुआ, लेकिन असली घोटाला पिछले 10 साल के अन्याय काल में हुआ है.
वे बोले, ‘मोदी सरकार ने अपने ही नेताओं की चेतावनियों के बावजूद रेडी-टू-यूज़ और बेहद लाभ देने वालीं कोयला खदानों को अपने परम-मित्र और सबसे बड़े चंदा-दाता को कौड़ियों के भाव दे दिया. 2014 के बाद से अडानी को लाभ पहुंचाने के लिए कोयले की नीलामी में भयंकर धांधली की गई है.’
उन्होंने कहा, ‘मोदी सरकार ने ‘सीमित टेंडर’ के साथ नीलामी में धांधली की है, ताकि प्रत्येक कोयला ब्लॉक की नीलामी के लिए केवल एक ही तरह के कोयले के उपयोग की अनुमति दी जाए. इससे प्रत्येक कोयला ब्लॉक के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली कंपनियों की संख्या सीमित हो गई. नतीजतन, कीमतें बहुत कम हो गईं और सरकारी ख़ज़ाने को हज़ारों करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ.’
रमेश ने कहा, ‘2014 में एक भाजपा सांसद, जो अब केंद्रीय ऊर्जा मंत्री हैं, ने तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखा था कि इस तरह के ‘सीमित टेंडर’ से ‘कार्टेल (व्यापारिक गुटबंदी) बन सकता है और सुनियोजित ढंग से कम मूल्यांकन’ हो सकता है, जिससे सरकारी खजाने को नुक़सान हो सकता है.’
मोदी सरकार का ‘श्वेत पत्र’ 2014 के कथित ‘कोलगेट’ घोटाले की चर्चा के साथ शुरू हुआ। लेकिन असली घोटाला पिछले 10 साल के अन्याय काल में हुआ है। मोदी सरकार ने अपने ही नेताओं की चेतावनियों के बावजूद रेडी-टू-यूज़ और बेहद लाभ देने वाले कोयला खदानों को अपने परम-मित्र और सबसे बड़े चंदा-दाता… https://t.co/1DPmZRKtyR
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उन्होंने आगे जोड़ा, ‘एक और एक भाजपा सांसद, जो अब इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री हैं, ने 2015 में इसी मुद्दे को उठाने के लिए तब के कोयला मंत्री को पत्र लिखा था. उनकी आशंकाओं और चेतावनियों के अनुरूप तब के कोयला मंत्री और कैग ने ख़ुद स्वीकार किया है कि कम से कम 15 कोयला ब्लॉक्स में कार्टेलाइजेशन (व्यापारिक गुटबंदी) देखी गई, जिससे राजस्व का नुक़सान हुआ है.’
खेड़ा ने सवाल किया कि जब भाजपा नेता ‘भ्रष्टाचार, धांधली और गुटबाजी’ के बारे में पत्र लिख रहे थे तो प्रधानमंत्री ने उन्हें नजरअंदाज क्यों किया.
खेड़ा ने आगे कहा कि मोदी सरकार 2015 में 41 बिलियन टन से अधिक कोयले वाले 200 से अधिक ब्लॉकों को वितरित करने के लिए एक नई कोयला नीलामी और आवंटन नीति लेकर आई. इसके बाद, पार्टी के भीतर से ही इस नीति के खिलाफ आंतरिक असहमति की आवाज उठी थी और खुद भाजपा के ही दो नेताओं ने असहमति जताई थी.
उन्होंने दावा किया, ‘हालांकि, 2016 में कैग ने संसद में एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें सबूत दिया गया था कि कोयला नीलामी कितनी संदिग्ध थी.’