लंदन के वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेमोक्रेसी की प्रमुख निताशा कौल को कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु में आयोजित एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था. कौल का कहना है कि जब वह 23 फरवरी को बेंगलुरु हवाई अड्डे पहुंचीं, तो उन्हें ‘होल्डिंग सेल’ में 24 घंटे रखने के बाद बिना कारण बताए लंदन भेज दिया गया.
नई दिल्ली: आव्रजन अधिकारियों ने ब्रिटेन की कश्मीरी अकादमिक और लेखक निताशा कौल को निर्वासित कर दिया है. कौल को कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा राज्य की राजधानी बेंगलुरु में आयोजित लोकतंत्र समर्थक सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया गया था.
लंदन स्थित वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेमोक्रेसी की प्रमुख कौल को कर्नाटक सरकार के समाज कल्याण मंत्री एचसी महादेवप्पा ने एक पत्र के माध्यम से एक प्रतिनिधि के रूप में ‘भारत में संविधान और एकता’ सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था.
हालांकि, कौल का कहना है कि जब वह 23 फरवरी को बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचीं, तो उन्हें आव्रजन अधिकारियों ने रोक दिया और ‘होल्डिंग सेल’ में 24 घंटे रहने के बुरे अनुभव के बाद कार्रवाई के पीछे का बिना कोई कारण बताए लंदन भेज दिया गया. कौल के पास ब्रिटिश-ओवरसीज़ सिटिजनशिप ऑफ इंडिया पासपोर्ट है.
लंदन से द वायर से बात करते हुए कौल ने कहा कि आव्रजन अधिकारियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके नेताओं की आलोचना के लिए उन पर ‘ताना मारा’ था, जिन्होंने उनके निर्वासन के लिए लिखित में कोई कारण नहीं बताया.
उन्होंने द वायर को बताया, ‘मैंने आव्रजन अधिकारियों से कहा कि भारत चीन नहीं है, इसे एक लोकतंत्र माना जाता है और इसलिए इस तरह का व्यवहार पूरी तरह से अस्वीकार्य है.’ साथ ही उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने दावा किया कि उनके पास मुझे रोकने के लिए ‘दिल्ली से आदेश’ हैं.
कश्मीरी पंडित कौल नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने की आलोचना करती रही हैं.
कश्मीर और अकादमिक स्वतंत्रता
2022 में अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 179 देशों में सबसे नीचे के 30 फीसदी देशों में शुमार था, पाकिस्तान से भी नीचे.
यह घटना सरकार द्वारा लगभग आठ दर्जन उन कश्मीरी शिक्षाविदों, पत्रकारों, वकीलों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों पर लगाए गए यात्रा प्रतिबंधों पर प्रकाश डालती है, जिन्हें अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद ‘राज्य की सुरक्षा’ के लिए खतरा बताया गया है और इसे ‘नो-फ्लाई-लिस्ट’ में डाल दिया गया है.
कौल ने ‘कैन यू हियर कश्मीरी वीमेन स्पीक? नैरेटिव्स ऑफ रेजिस्टेंस एंड रेजिलिएंस’ का सह-संपादन किया है – जो कश्मीरी साहित्य में महिलाओं के प्रतिनिधित्व, धारा 370 के खत्म होने के बाद यौन हिंसा और कश्मीर के सैन्यीकरण जैसे विषयों पर कश्मीरी महिलाओं के निबंधों का एक नया संग्रह है.
कौल ने 22 अगस्त 2019 को वाशिंगटन पोस्ट में लिखा था कि अनुच्छेद 370 को हटाने के कदम ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों की अवहेलना की है, जो कश्मीर विवाद के शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक समाधान का आह्वान करते हैं. सरकार ने कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ अपनी हिंसा को वैध बनाने के लिए कश्मीरी पंडितों के दर्द और नुकसान को साधने की पुरानी रणनीति को पुनर्जीवित किया है.’
दो दिवसीय सम्मेलन, जिसमें कौल शामिल नहीं हुईं, 24-25 फरवरी को बेंगलुरु के पैलेस ग्राउंड में आयोजित किया गया था.
इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के संपादक प्रोफेसर गोपाल गुरु, भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एसवाई कुरैशी, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी यामिनी अय्यर उन प्रख्यात शिक्षाविदों और इतिहासकारों में शामिल थे, जिन्होंने इस कार्यक्रम में भाग लिया.
द वायर से बात करते हुए कार्यक्रम के आयोजकों में से एक, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि हवाई अड्डे के अधिकारियों द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद कौल ने शनिवार (24 फरवरी) सुबह लगभग 4 बजे आयोजकों को फोन किया.
उन्होंने बताया, ‘कर्नाटक सरकार के अधिकारियों ने कौल की हिरासत के बारे में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से बात की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.’
आयोजक ने कहा, ‘कौल को उनकी हिरासत के लिए कोई दस्तावेज भी नहीं दिया गया था. यह केवल एयरलाइन स्टाफ ही था, जिसने अंतत: उन्हें नोटिस दिया, जिसमें कहा गया कि उन्हें भारत में आने की अनुमति नहीं है.’
कौल उन अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों में से एक थीं, जिन्हें इस कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में बोलना था. आयोजक ने कहा कि कार्यक्रम में भाग लेने वाले कम से कम आठ अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों की ‘बेंगलुरु हवाई अड्डे पर अनावश्यक जांच की गई.’
उन्होंने कहा, ‘उनसे बहुत सारे सवाल पूछे गए, घंटों तक हिरासत में रखा गया और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया, लेकिन अंतत: हवाई अड्डा छोड़ने की अनुमति दे दी गई. एकमात्र कौल को भारत में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई.’
कौल ने कहा कि उनकी यात्रा समेत सभी लॉजिस्टिक सहायता कर्नाटक सरकार द्वारा की गई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि अपने निर्वासन से पहले वह होल्डिंग सेल में थीं तो हवाई अड्डे के अधिकारियों ने उन्हें ‘तकिया और कंबल जैसी बुनियादी चीजें’ भीं प्रदान नहीं कीं.
I was given no reason by immigration except ‘we cannot do anything, orders from Delhi’. My travel & logistics had been arranged by Karnataka & I had the official letter with me. I received no notice or info in advance from Delhi that I would not be allowed to enter.
— Professor Nitasha Kaul, PhD (@NitashaKaul) February 25, 2024
and no easy access to food and water, made dozens of calls to airport for basic things as a pillow and blanket, which they refused to provide, then 12 hours on the flight back to London. pic.twitter.com/z6O5Jx2onB
— Professor Nitasha Kaul, PhD (@NitashaKaul) February 25, 2024
कौल ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, ‘मैं विश्व स्तर पर सम्मानित अकादमिक और बुद्धिजीवी हूं और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति भावुक हूं. मैं लैंगिक समानता, स्त्री-द्वेष को चुनौती देने वाली, स्थिरता, नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता, कानून के शासन की परवाह करती हूं. मैं भारत विरोधी नहीं हूं, मैं सत्ता विरोधी और लोकतंत्र समर्थक हूं.’
कौल ने पूछा, ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मेरी कलम और शब्दों से कैसे खतरा हो सकता है? एक प्रोफेसर को केंद्र द्वारा संविधान पर आयोजित एक सम्मेलन में शामिल होने की अनुमति नहीं देना कैसे ठीक कहा जा सकता है, जहां उसे एक राज्य सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था? देने के लिए कोई कारण नहीं है? यह वह भारत नहीं है जिसे हम प्यार करते हैं.’
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