राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2017 के बाद से हिरासत में बलात्कार के दर्ज किए गए 275 मामलों में से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 92 मामले शामिल हैं. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने ऐसे मामलों के लिए क़ानून प्रवर्तन प्रणालियों के भीतर संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को ज़िम्मेदार ठहराया है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 2022 तक हिरासत में बलात्कार के 270 से अधिक मामले दर्ज किए गए, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने ऐसे मामलों के लिए कानून प्रवर्तन प्रणालियों के भीतर संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को जिम्मेदार ठहराया है.
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, अपराधियों में पुलिसकर्मी, लोक सेवक, सशस्त्र बलों के सदस्य और जेलों, रिमांड होम, हिरासत के स्थानों और अस्पतालों के कर्मचारी शामिल हैं.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, आंकड़े इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में ऐसे मामलों में धीरे-धीरे कमी आई है. 2022 में 24 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में 26, 2020 में 29, 2019 में 47, 2018 में 60 और 2017 में 89 मामले दर्ज किए गए थे.
हिरासत में बलात्कार के मामले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (2) के तहत दर्ज किए जाते हैं. यह एक पुलिस अधिकारी, जेलर या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए बलात्कार के अपराध से संबंधित है, जिसके पास एक महिला की कानूनी हिरासत है. यह धारा विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है, जहां अपराधी किसी महिला के खिलाफ बलात्कार का अपराध करने के लिए अपने अधिकार या हिरासत की स्थिति का लाभ उठाता है.
2017 के बाद से हिरासत में बलात्कार के दर्ज किए गए 275 मामलों में से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 92 मामले हैं, इसके बाद 43 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए थे.
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, ‘हिरासत की स्थितियां दुर्व्यवहार के लिए अद्वितीय अवसर प्रदान करती हैं, राज्य एजेंट अक्सर अपनी शक्ति का उपयोग यौन उत्पीड़न के लिए मजबूर करने के लिए करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे उदाहरण हैं जहां महिलाओं को उनकी सुरक्षा के लिए या उनकी कमजोर स्थिति के कारण हिरासत में लिया गया, जैसे कि तस्करी या घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाया गया, जो राज्य संरक्षण की आड़ में शक्ति के दुरुपयोग को दर्शाता है.’
पूनम ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिरासत में बलात्कार में योगदान देने वाले कारकों की एक जटिल परस्पर क्रिया है, जिसमें पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड, कानून प्रवर्तन के लिए अपर्याप्त लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण और पीड़ितों के आसपास कलंक शामिल हैं.’
उन्होंने हिरासत में बलात्कार के मूल कारणों और परिणामों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण, मजबूत कानूनी ढांचे और संस्थागत सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया.
मुत्तरेजा ने कहा, ‘हिरासत में बलात्कार के रिपोर्ट किए गए मामले अक्सर शक्ति असंतुलन और हमारे कानून प्रवर्तन प्रणालियों के भीतर जवाबदेही की कमी का प्रकटीकरण हैं.’
उन्होंने कहा कि हिरासत में बलात्कार के मूल कारणों और परिणामों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए सरकार को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.
महिला नेतृत्व संगठन ‘न्गुवु (Nguvu) सामूहिक बचाव अभियान’ में अपने काम के अनुभवों को दर्शाते हुए पल्लबी घोष ने पुलिस अधिकारियों पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिलाओं के परेशान करने वाले विवरण साझा किए.
घोष ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कानून प्रवर्तन के भीतर दंड से मुक्ति और पीड़ित को दोष देने की व्यापक संस्कृति ऐसी महिलाओं को न्याय मांगने से रोक रही है.
उन्होंने कहा, ‘थानों में हिरासत में बलात्कार एक बहुत ही आम परिदृश्य है. जिस तरह से जूनियर पुलिस अधिकारी, यहां तक कि महिला कॉन्स्टेबल ऐसी महिलाओं से बात करते हैं, उससे पता चलता है कि उनके मन में उनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है.’
घोष ने हिरासत में हिंसा के लिए शिकायत दर्ज करने में होने वाली कठिनाई पर निराशा व्यक्त की, जब तक कि सर्वाइवर अपराधियों का नाम नहीं लेतीं. उन्होंने न्याय पाने में एक प्रणालीगत बाधा को उजागर किया. उन्होंने कहा, ‘अगर आप किसी पुलिस अधिकारी को हिरासत में बलात्कार के लिए दोषी ठहराते हैं, तब ही हम न्याय की उम्मीद कर सकते हैं.’