अवैध रूप से निर्मित संरचनाएं धार्मिक उपासना के लिए सही जगह नहीं हो सकतीं: सुप्रीम कोर्ट

चेन्नई में सार्वजनिक भूमि पर अवैध तौर पर बनी एक मस्जिद को हटाने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले कई आदेशों का हवाला दिया, जिनमें राज्यों और उच्च न्यायालयों से कहा गया था कि सार्वजनिक सड़कों या स्थानों पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे के नाम पर किसी भी अनधिकृत निर्माण की अनुमति न दी जाए.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

चेन्नई में सार्वजनिक भूमि पर अवैध तौर पर बनी एक मस्जिद को हटाने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले कई आदेशों का हवाला दिया, जिनमें राज्यों और उच्च न्यायालयों से कहा गया था कि सार्वजनिक सड़कों या स्थानों पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे के नाम पर किसी भी अनधिकृत निर्माण की अनुमति न दी जाए.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (26 फरवरी) को टिप्पणी की कि अनधिकृत धार्मिक संरचनाएं कभी भी धर्म की उपासना का स्थान नहीं हो सकती हैं, और साथ ही भारत भर के अधिकारियों को ऐसे अतिक्रमणों को तुरंत हटाने के उनके दायित्व की याद दिलाई.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, तमिलनाडु के चेन्नई में सार्वजनिक भूमि पर अवैध रूप से बनाई गई एक मस्जिद को हटाने का आदेश देते हुए जस्टिस सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने शीर्ष अदालत के अतीत में दिए कई आदेशों को याद किया, जिनमें राज्यों और उच्च न्यायालयों से कहा था कि सार्वजनिक सड़कों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे के नाम पर किसी भी अनधिकृत निर्माण की अनुमति न देना सुनिश्चित किया जाए.

पीठ ने कहा, ‘हमने सभी अनधिकृत धार्मिक संरचनाओं को ध्वस्त करने का आदेश दिया है… चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद. इस न्यायालय द्वारा एक निर्णय दिया गया था और सभी उच्च न्यायालय इसे मान रहे थे. राज्य सरकारों को भी उचित निर्देश जारी किए गए हैं.’

पीठ मद्रास हाईकोर्ट के नवंबर 2023 के फैसले के खिलाफ एक मुस्लिम धार्मिक संस्था द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. हाईकोर्ट ने संस्था को चेन्नई में सार्वजनिक भूमि से मस्जिद हटाने का निर्देश दिया था.

हिदाया मुस्लिम वेलफेयर ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील एस. नागामुथु ने तर्क दिया कि मस्जिद के कारण जनता को कोई बाधा नहीं हो रही है और ट्रस्ट ने जमीन का उक्त टुकड़ा खरीदा था.

हालांकि, पीठ ने कहा कि भूमि चेन्नई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीएमडीए) द्वारा अधिग्रहित की गई है और ट्रस्ट ने बिना किसी योजना की अनुमति के धार्मिक संरचना का निर्माण किया. नागामुथु ने तर्क दिया कि भूमि बहुत लंबे समय तक खाली रही, जिसका अर्थ हुआ कि सरकार को किसी भी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए भूमि की जरूरत नहीं थी.

हालांकि, पीठ ने कहा, ‘क्या इसका मतलब यह है कि आप भूमि पर अतिक्रमण करेंगे? ज़मीन सरकार की थी, और वे इसका उपयोग कर भी सकते हैं और नहीं भी. आपको इस पर कब्ज़ा करने का कोई अधिकार नहीं था.’

अदालत ने कहा कि यहां तक कि स्थानीय अधिकरणों ने साल 2020 में ट्रस्ट को काम रोकने का नोटिस जारी किया था, लेकिन उसने निर्माण जारी रखा. पीठ ने आगे कहा, ‘हो सकता है कि स्थानीय अधिकारियों के साथ आपकी सांठगांठ के कारण यह जारी रहा हो.’

अदालत ने आगे कहा, ‘हम बहुत स्पष्ट हैं… चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद, अनधिकृत निर्माण नहीं हो सकता है.’

अंत में अपने आदेश में अदालत ने दर्ज किया, ‘याचिकाकर्ता स्पष्ट रूप से उक्त भूमि का मालिक नहीं है. यह चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण की जमीन है. याचिकाकर्ता एक अनधिकृत कब्जाधारी है और उसने कभी भी किसी योजना अनुमति के लिए आवेदन नहीं किया है. निर्माण अवैध तरीके से किया गया था. हम संतुष्ट हैं कि हाईकोर्ट के आदेश में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.’

गौरतलब है कि साल 2006 के गुजरात के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2009 और 2018 के बीच यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे कि धार्मिक संरचनाओं के रूप में सार्वजनिक भूमि पर कोई अनधिकृत निर्माण न हो. अदालत के आदेशों में कहा गया था कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश बिना स्वीकृति के बन चुके किसी भी धार्मिक निर्माण का मामले-दर-मामले के आधार पर आकलन करेंगे और तुरंत कार्रवाई करेंगे.

आखिरकार, मामला जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाया गया था और फिर इसे शीर्ष अदालत द्वारा पारित आदेशों की निगरानी के लिए उच्च न्यायालयों को भेज दिया गया था.