झारखंडः आदिवासियों और झामुमो कैडरों की गोलबंदी के संकेत क्या हैं

हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को ऐसे समय में विपरीत परिस्थतियों का सामना करना पड़ा है, जब कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनाव हैं और इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. हालांकि, ऐसी स्थिति में निकाली जा रही झामुमो की 'न्याय यात्रा' को आदिवासी समुदाय का खासा समर्थन मिल रहा है.

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झारखंड में झामुमो की संकल्प सभा. (फोटो साभार: ट्विटर/@JmmJharkhand)

हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को ऐसे समय में विपरीत परिस्थतियों का सामना करना पड़ा है, जब कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनाव हैं और इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. हालांकि, ऐसी स्थिति में निकाली जा रही झामुमो की ‘न्याय यात्रा’ को आदिवासी समुदाय का खासा समर्थन मिल रहा है.

झारखंड में झामुमो की संकल्प सभा. (फोटो साभार: ट्विटर/@JmmJharkhand)

झारखंड में हेमंत सोरेन जब मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए ईडी के एक के बाद एक समन का सामना कर रहे थे, तो सबकी निगाहें इस बात पर टिकी होती कि अब इसके आगे क्या. फिर एक वक्त आया, जब 31 जनवरी की रात हेमंत सोरेन को ईडी ने गिरफ्तार किया और उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके तत्काल बाद यह सवाल तेजी से उभरा कि अब हेमंत सोरेन की राजनीतिक हैसियत और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा पर क्या असर होगा.

दरअसल हेमंत और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को इन विपरीत परिस्थतियों का उस वक्त सामना करना पड़ा है, जब कुछ ही दिनों में लोकसभा का चुनाव होना है. और इसी साल के अंत में झारखंड में विधानसभा का भी चुनाव है.

बेशक, झारखंड में हेमंत सोरेन अपने दल समेत इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े चेहरे में से एक हैं. और 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने के बाद से भाजपा के लिए बड़ी चुनौती भी.

गौरतलब है कि रांची में कथित तौर पर 8.5 एकड़ जमीन और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेन को 31 जनवरी की रात गिरफ्तार किया था. अभी वे जेल मे बंद हैं.

एकजुट होते कैडर और आदिवासी इलाके में गोलबंदी

वैसे हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद 15 फरवरी से झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा शुरू किए आंदोलन – ‘न्याय यात्रा’ ने दल के कैडरों में एक नई चेतना का संचार किया है. झंडे-बैनर के साथ और डुगडुगी बजाकर यह यात्रा शहरों से लेकर गांवों- कस्बों, जंगलों- पठारों में निकाली जा रही है. मुट्ठियां भीचीं महिलाएं भी इनमें शामिल हैं. आदिवासी समाज के अगुवा और ग्राम प्रधान भी जत्थों में निकल रहे हैं. सोरेन की रिहाई के लिए आदिवासियों के पारंपरिक धार्मिक स्थलों पर पूजा अर्चना की जा रही है.

झारखंड के आदिवासी बहुल खूंटी, पश्चिम सिंहभूम और गुमला के कई इलाकों के दौरे के क्रम में इन्हीं बातों को जानने- समझने की कोशिशों के बीच यह मालूम हुआ कि इस यात्रा के जरिये समर्थकों और खासकर आदिवासियों की गोलबंदी तथा संघर्ष की मुनादी की जा रही है. उनके चेहरे पर गुस्सा के भाव साफ तौर पर देखे जा रहे थे.

इन सबके बीच हेमंत सोरेन का विधानसभा में एक भाषण ने राजनीतिक गलियारे में बहस छेड़ दी है. साथ ही आदिवासी इलाके में भी यह सुर्खियों में है.

पिछले पांच फरवरी को झारखंड विधानसभा में चंपई सोरेन सरकार के विश्वासमत हासिल करने के दौरान हेमंत सोरेन ने अपने भाषण में कहा था, ‘मैं आंसू नहीं बहाऊंगा, वक्त आने पर इनको जवाब दूंगा.. हम जंगल से बाहर आ गए, तो इनके कपड़े मैले होने लगे.’

कोल्हान में आदिवासी हो समाज महासभा के मुकेश बिरूआ भी इसकी तस्दीक करते हुए कहते हैं कि जिन परिस्थितियों और वक्त में सोरेन को गिरफ्तार किया गया है, उस पर सभी आदिवासी समुदाय की सीधी नजर बनी है. चर्चाएं, बैठकों का दौर शुरू हैं. लोगों ने इसे ‘दिल’ पर लिया है.

बिरूआ बताते हैं कि हो महासभा भी यह मानती है कि हेमंत सोरेन को गैर-जरूरी सवाल पर गिरफ्तार किया गया है.

मोहनपुर में हुई मार्च में झामुमो कार्यकर्ता. (फोटो साभार: ट्विटर/@JmmJharkhand)

क्या सोरेन को अंदेशा था 

20 जनवरी को ईडी की टीम हेमंत सोरेन के रांची स्थित सरकारी बंगले पर पूछताछ करने पहुंची थी. इधर, उनके बंगले के बाहर सड़कों पर झामुमो कार्यकर्ताओं का हुजूम जुटा था.

दिन के दो बजे से रात आठ बजे तक हुई पूछताछ के बाद हेमंत सोरेन पैदल ही अपने बंगले से बाहर निकले और झामुमो कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘आप लोग घबराएं नहीं, हम न डरेंगे और और न ही झुकेंगे.’

इससे पहले 14 दिसंबर को भी हेमंत सोरेन ने सीएम आवास में झामुमो के नेताओं और कैडरों के साथ संवाद करते हुए कहा था, ‘आपको डरने की जरूरत नहीं, हर परिस्थिति के लिए तैयार रहें और लोकसभा चुनाव में सभी 14 सीटों पर इंडिया गठबंधन को जीत मिले, इस पर फोकस करें.’

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार रजत कुमार गुप्ता इससे इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, ‘बेशक, झामुमो के कैडरों और आदिवासियों के बीच हेमंत सोरेन यह मैसेज देने में सफल होते दिख रहे हैं कि उन्होंने ‘झुकना’ स्वीकार नहीं किया. आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग इस पूरे प्रकरण को सिर्फ एक लाइन में देख-समझ रहा है कि ‘सोरेन को जेल भेज दिया गया.’ जाहिर तौर पर चुनावों को लेकर जो समीकरण उभर रहे हैं उनमें आदिवासियों के प्रभाव वाले इलाके में भाजपा के सामने पहले से बड़ी चुनौती है. आगे कांग्रेस को समझना है कि चुनावी मैदान में वह झामुमो को कैसे फ्रंट में जाकर खेलने का मौका देती है. लोकसभा चुनाव में झामुमो इन विपरीत परिस्थितियों में भी अगर भाजपा को पीछे धकेलने मे सफल होता है, तो इसके दूरगामी परिणाम से इनकार नहीं किया जा सकता.’

सीटों को लेकर झामुमो के दावे

बदली परिस्थितियों में अब झामुमो की सीधी नजर आदिवासियों, अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीटों के अलावा उसके प्रभाव वाले इलाकों पर है. सीट बंटवारे को लेकर हाल ही में दिल्ली में झामुमो और कांग्रेस नेताओं के बीच एक बैठक हुई थी. दोनों दलों के नेताओं ने दावा किया है कि समय पर सीट बंटवारे का मामला सुलझ जाएगा.

खबरों के मुताबिक, झामुमो ने झारखंड में कम से कम सात सीटों पर दावेदारी की है, जिसमें दुमका की उसकी परंपरागत सीट भी शामिल है.

फिलहाल जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य उभरे हैं, उसमें अगर कांग्रेस झामुमो के दावे और शर्तों को स्वीकार करे और नेतृत्व करने के मौके दे, तो नतीजे प्रभावी हो सकते हैं.

हालांकि, लोकसभा चुनाव को लेकर पहले से तैयारियों में जुटी भाजपा को इसका बड़ा भरोसा है कि नरेंद्र मोदी के प्रभाव का उसे सीधा लाभ मिलेगा और वोट शेयर के हिसाब से वह पहले से मजबूत स्थिति में रही है.

2019 में झारखंड में भाजपा को अकेले लगभग 51 प्रतिशत वोट मिले थे. इस बिना पर भाजपा सभी 14 सीटें जीतने के दावे भी करने लगी है. भाजपा लगातार इन बातों पर भी जोर देती रही है कि हेमंत सोरेन गलत कार्यों में संलिप्तता की वजह से गिरफ्तार किए गए.

चुनावी तानाबाना

2019 के लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा गठबंधन ने 14 में से 12 और झामुमो गठबंधन ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी. झारखंड में आदिवासियों के लिए लोकसभा की पांच और अनुसूचित जाति की एक सीट सुरक्षित है.

इनमें आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीट राजमहल से झामुमो और पश्चिम सिंहभूम से कांग्रेस को जीत मिली थी.

जबकि आदिवासियों के लिए सुरक्षित अन्य तीन सीटें- खूंटी में महज 1445, लोहरदगा में 10,263 और दुमका में 47, 590 वोटों के अंतर से भाजपा जीत सकी थी.

हालांकि, इसके बाद 2019 में ही हुए विधानसभा चुनाव में लोकसभा परिणाम के उलट नतीजे आए.

हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो ने 30 सीटों पर जीत हासिल की और कांग्रेस, राजद के सहयोग से सत्ता पर वे काबिज हुए. तब झामुमो गठबंधन ने आदिवासियों के लिए सुरक्षित 28 में से 26 सीटें जीत ली थी.

जबकि लोकसभा चुनाव में विधानसभा की 57 सीटों पर बढ़त लेने वाली भाजपा को 25 सीटें मिली.

भाजपा के लिए आदिवासी इलाकों में बड़ी हार भी सत्ता से बेदखल होने का सबब बनी.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)