द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
सीबीआई ने 2019 में हमीरपुर जिले में हुए कथित अवैध खनन की जांच में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को समन जारी किया है. हिंदुस्तान टाइम्स ने मामले से वाकिफ़ लोगों के हवाले से बताया है कि एजेंसी ने यादव को गुरुवार (29 फरवरी) को बतौर ‘गवाह’ पेश होने को कहा है. एजेंसी ने हमीरपुर जिले में लघु खनिजों के कथित अवैध खनन की जांच के लिए जनवरी 2019 में यूपी कैडर की आईएएस अधिकारी बी. चंद्रकला, तत्कालीन सपा नेता रमेश कुमार मिश्रा और संजय दीक्षित (जिन्होंने बसपा के टिकट पर 2017 का राज्य चुनाव लड़ा था) सहित 11 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था. सीबीआई इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर 2017 में दर्ज की गई अपनी सात प्रारंभिक जांच (पीई) के तहत यूपी के शामली, हमीरपुर, सहारनपुर, देवरिया, फतेहपुर, सिद्धार्थ नगर और कौशांबी जिलों में अवैध खनन की जांच कर रही थी, जिन्हें लेकर जनवरी 2019 में तीन एफआईआर दर्ज की गई थीं. सीबीआई की एफआईआर में कहा गया है कि मामले की जांच के दौरान संबंधित अवधि के दौरान संबंधित तत्कालीन खनन मंत्रियों की भूमिका पर गौर किया जा सकता है.
मिजोरम विधानसभा ने भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के केंद्र के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, विधानसभा ने केंद्र से भारत और म्यांमार सीमा पर बाड़ेबंदी और पड़ोसी देश म्यांमार से मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफएमआर) को खत्म करने के निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा है. राज्य के गृह मंत्री के. सपदांगा द्वारा पेश प्रस्ताव में केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया कि ‘विभिन्न देशों में विभाजित ज़ो जातीय लोग एक प्रशासनिक इकाई के तहत एकीकृत हों.’ सपदांगा ने कहा कि ज़ो लोग सदियों से मिजोरम और म्यांमार की चिन पहाड़ियों में बसे हुए हैं और कभी अपने प्रशासन के तहत एक साथ रहते थे. अंग्रेजों ने भारत-म्यांमार सीमा बनाई और उनकी जमीन को दो देशों में बांट दिया. उन्होंने जोड़ा कि भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाना या एफएमआर को खत्म करना ज़ो जातीय लोगों को अस्वीकार है.
हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में हारने के एक दिन बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार इस पर आए अस्तित्व का संकट को टालने में कामयाब रही है. रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार सुबह भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर राज्यपाल से मिले थे. राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के नौ विधायकों द्वारा क्रॉस-वोटिंग करने की पृष्ठभूमि में उन्होंने यह भी कहा था कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई वाली सरकार जनादेश खो चुकी है. उन्होंने मत विभाजन की बात भी कही थी, हालांकि इसी दिन सदन की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ी और स्पीकर ने ठाकुर समेत भाजपा के 15 विधायकों को निलंबित कर दिया. हालांकि, सुक्खू सरकार के लिए स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है, क्योंकि छह दलबदलू कांग्रेस विधायकों के साथ-साथ तीन निर्दलीय विधायक भी पार्टी से दूरी बनाए हुए हैं. कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेता स्थिति संभालने के लिए शिमला पहुंचे हैं, लेकिन मौजूदा संकट से जाहिर है कि पार्टी में नेतृत्व का सवाल पूरी तरह से शांत नहीं हुआ है. पार्टी आलाकमान द्वारा नियुक्त सुक्खू लगभग 15 महीने से सरकार चला रहे हैं. कांग्रेस के अधिकतर बागियों का आरोप है कि वे सुक्खू की कार्यशैली से नाखुश हैं. इस बीच कांग्रेस के दिवंगत दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह के सुक्खू कैबिनेट से इस्तीफा दिया, जिसे स्वीकार नहीं किया गया.
केरल हाईकोर्ट ने सबरीमला मंदिर के मुख्य पुजारी पद के लिए केवल मलयाला ब्राह्मणों को पात्र मानने वाले जाति मानदंड को बरकरार रखा है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने उन याचिकाओं पर फैसला सुनाया, जिनमें दलील दी गई थी कि त्रावणकोर देवास्म बोर्ड (टीडीबी) द्वारा मुख्य पुजारी पद के चयन के लिए ऐसे मानदंड देना अस्पृश्यता है और भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन है. टीडीबी की उक्त अधिसूचना में जाति मानदंड के साथ सबरीमला में सन्निधानम (मुख्य देवता, भगवान अयप्पा का मंदिर) और मलिकप्पुरम (पास के एक छोटे मंदिर में स्थापित देवी) के लिए मुख्य पुजारी के पद के लिए आवेदन मांगे गए थे. अदालत ने रिट याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनमें उचित दलीलों का अभाव है. इसने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 (2)(बी) के तहत संरक्षित अधिकार मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने का अधिकार है. यह अधिकार पूर्ण एवं असीमित नहीं है. हिंदू समुदाय का कोई भी सदस्य अनुच्छेद 25(2)(बी) के तहत संरक्षित अधिकारों के हिस्से के रूप में यह दावा नहीं कर सकता है कि मंदिर को दिन-रात के सभी घंटों में पूजा के लिए खुला रखा जाना चाहिए या वे उन सेवाओं को अंजाम दे सकते हैं जो केवल अर्चक ही कर सकते हैं.
केंद्र सरकार ने मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने का आदेश दिया है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा फाउंडेशन बंद करने का आदेश केंद्रीय वक्फ परिषद द्वारा रखे गए एक प्रस्ताव के बाद आया, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के तहत देश में अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षिक पहल को नियंत्रित करती है. अल्पसंख्यक मंत्रालय के अवर सचिव धीरज कुमार द्वारा 7 फरवरी को जारी आदेश में बिना कोई ठोस कारण बताए फाउंडेशन को अचानक बंद करने की बात कही गई है. मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इसे ‘आंतरिक मामला’ करार दिया है. फाउंडेशन के एक सदस्य के मुताबिक, आंतरिक चर्चा चल रही है और आदेश अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. एक अन्य सदस्य ने बताया कि 4 मार्च को एक बैठक निर्धारित की गई है, लेकिन उसका एजेंडा अज्ञात है.
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि हाल ही में जारी घरेलू व्यय रिपोर्ट ‘चुनाव से प्रेरित’ है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी सरकार पर आर्थिक आंकड़ों की ‘विश्वसनीयता को नष्ट करने’ का आरोप लगाते हुए जारी घरेलू व्यय सर्वेक्षण रिपोर्ट पर सवाल उठाए. उन्होंने ट्विटर (अब एक्स) पर लिखा कि ’10 साल की गहन निद्रा में खर्राटे लेने के बादआख़िरकार मोदी सरकार, जनता के ख़र्च और आमदनी पर एक ‘चुनाव से प्रेरित सर्वे’ लाई है. सर्वे में मोदी सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने की नाकाम कोशिश की है. उन्होंने सवाल किया- अगर देश में सब कुछ इतना चमकदार है, जैसा इस सर्वे में दर्शाया जा रहा है तो- ग्रामीण भारत के सबसे ग़रीब 5% अर्थात क़रीब 7 करोड़ लोग रोज़ाना केवल 46 रुपये ही ख़र्च क्यों करते हैं? क्यों सबसे गरीब 5% परिवारों को सबसे कम – केवल 68 रुपये /माह का ही लाभ सरकारी योजनाओं से मिला? बाक़ी का लाभ क्या पूंजीपति मित्रों को ही मिला? किसानों की मासिक आमदनी ग्रामीण भारत की औसत आमदनी से कम क्यों है?