स्मृति शेष: अमीन सयानी की आवाज़ दशकों तक उनके श्रोताओं पर जादू करती रही. भारतीयों की जाने कितनी पीढ़ियां हर बुधवार रात 8 बजे प्रसारित होने वाले बिनाका गीतमाला पर उनकी आवाज़ के साथ बड़ी हुईं.
अमीन सयानी की गरमाहट भरी आवाज कई पीढ़ियों तक श्रोताओं पर जादू करती रही. एक प्रसारक और बिनाका गीतमाला के प्रस्तोता के तौर पर अमीन सयानी को जो शोहरत मिली उसमें बीवी केसकर के झक्की रवैये और हिंदी फिल्म संगीत के प्रति उनके नजरिये का बड़ा योगदान रहा. अगर भारत के पहले सूचना प्रसारण मंत्री केसकर ने, जो एक बेहद शुद्धतावादी और ऊंचे ख्याल वाले व्यक्ति थे, ने ऑल इंडिया रेडियो पर फिल्मी संगीत को प्रतिबंधित नहीं किया होता, तो अमीन सयानी का सबसे मशहूर कार्यक्रम बिनाका गीतमाला शायद शुरू नहीं हुआ होता.
केसकर के इस फैसले ने फिल्म निर्माताओं और रिकॉर्ड कंपनियों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी, क्योंकि अपने गानों का प्रचार करना उनकी जरूरत थी. फिल्मों की कामयाबी का काफी दारोमदार इस प्रचार पर निर्भर करता था.
रेडियो सिलोन ने इस खाली जगह को भरने का काम किया. अमेरिकी लोग सिलोन से वापस जाते वक्त वहां एक शक्तिशाली शॉर्ट वेब ट्रांसमिटर छोड़ गए थे. इस ट्रांसमिटर का इस्तेमाल करते हुए सिलोन रेडियो स्टेशन ने भारत और अन्य पड़ोसी देशों में अपने कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू कर दिया.
भारतीयों की कई पीढ़ियां हर बुधवार रात 8 बजे प्रसारित होनेवाले बिनाका गीतमाला पर उनकी आवाज सुनते हुए बड़ी हुईं. यह नाम एक टूथपेस्ट के ब्रांड के नाम पर रखा गया था.
इस कार्यक्रम में सयानी 16 गानों को उनकी लोकप्रियता के क्रम में (कम से सर्वाधिक) में दर्शकों को सुनाते थे जिनमें आखिरी गाने को उनके शब्दों में कहें, एक बिगुल के साथ सुनाया जाता था. उनकी मीठी आवाज और उनके नरम-दोस्ताना लहजे ने उन्हें लाखों श्रोताओं का दुलारा बना दिया. और उनका तकियाकलाम ‘बहनों और भाइयों’ और ‘अब अगले पायदान पर’ काफी ज्यादा लोकप्रिय बन गया. जिसे आज की भाषा में वायरल होना कहा जा सकता है.
गानों की यह फेहरिस्त श्रोताओं से मिले पोस्टकार्ड के आधार पर तैयार की जाती थी- कई बार खुद फिल्म निर्माताओं द्वारा ही बड़ी संख्या में पोस्टकार्ड भेजे जाने की खबरें आती थीं, जिन्हें सयानी को अस्वीकार करना पड़ता था.
इस कार्यक्रम पर देश के कोने-कोने से प्रतिक्रियाएं आती थीं- वे अक्सर कोई भी पोस्टकार्ड चुनकर उन्हें पढ़कर सुनाया करते थे और श्रोतागण पहले कभी नहीं सुने गए जगहों के नामों से एक परिचय गांठ लेते थे- मसलन झुमरी तलैया और राजानांदगांव. जो आजकल मीम्स बन गए हैं.
सयानी अपने बड़े भाई हामिद की वजह से व्यावसायिक प्रसारण की दुनिया में आए. हामिद बिनाका हिट परेड नाम का एक शो चलाया करते थे, जिसमें पश्चिमी गाने बजते थे.
हामिद का कार्यक्रम फ्रैंक सिनात्रा और डीन मार्टिन जैसों के गानों के लिए तरसने वाले भारतीयों के बीच काफी लोकप्रिय था. हामिद ने बिनाका को युवा अमीन को इस कार्यक्रम के हिंदी संस्करण का प्रस्तोता बनने के लिए राजी किया. यह एक बेहद अच्छा फैसला साबित हुआ.
उनका साफ अंदाजे बयां और आमफहम हिंदुस्तानी का इस्तेमाल करने की क्षमता उन्हें अपनी मां कुलसुम सयानी से विरासत में मिली, जिन्हें 1940 में महात्मा गांधी ने नव-साक्षर लोगों के लिए हिंदी, उर्दू और गुजराती में एक पत्रिका निकालने के लिए कहा था.
वे लोग शुरुआत में मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज, जहां से सयानी ने पढ़ाई की थी, के एक कमरे में कार्यक्रम रिकॉर्ड किया करते थे.
रेडियो सिलोन पर कई दूसरे कार्यक्रम भी आते थे, जिनमें से एक का संचालन गोपाल शर्मा और दूसरे का एक उत्साही युवक बलराज करते थे, जो फिल्म सितारों का इंटरव्यू किया करते थे. दत्त को जल्दी ही सिनेमा में भूमिका मिल गई और उन्होंने अपना नाम बदलकर सुनील दत्त रख लिया.
बिनाका द्वारा प्रायोजित ये दोनों कार्यक्रम एक साथ चलते थे. 1975 में हामिद सयानी का निधन हो गया और उनके कार्यक्रम की कमान भी उनके भाई ने संभाल ली. हालांकि, तीन सालों में इस कार्यक्रम को बंद कर दिया गया. लेकिन सयानी की आवाज की तरह ही बिनाका गीतमाला भी थकने वाला नहीं था- यह 1994 तक प्रसारित हुआ और इसने 42 वर्षों तक प्रसारित होने का एक कीर्तिमान कायम किया!
इस दरमियान इस टूथपेस्ट का नाम पहले बदलकर सिबाका हो गया और फिर जब कोलगेट ने खरीद लिया, तब इस कार्यक्रम का नाम कोलगेट सिबाका गीतमाला हो गया. इन सभी बदलावों के दौरान कार्यक्रम की बागडोर अमीन सयानी के हाथों में ही रही.
1970 में ऑल इंडिया रेडियो ने हिंदी फिल्मी गीतों का प्रसारण न करने की निषेधकारी नीति को छोड़ दिया जिसके बाद सिबाका गीतमाला ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित होने लगा. उनकी आवाज की लोकप्रियता पहले की ही तरह कायम रही. वे अक्सर स्टेज शो आदि का संचालन भी करते थे और तो और उन्होंने कम से कम 10 फिल्मों में भी काम किया. इन सभी फिल्मों में वे उन्होंने या तो उद्घोषक (अनाउंसर) या साक्षात्कारकर्ता की भूमिका निभाई.
वे अपने ऑफिस में ही एक स्टूडियो चलाया करते थे, जहां वे कार्यक्रमों की रिकॉर्डिंग करते थे, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जाया करता था. उनके पास एक बहुत बड़ी ऑडियो लाइब्रेरी थी, जिसमें विभिन्न पीढ़ियों के फिल्मी सितारों के इंटरव्यू के दुर्लभ रिकॉर्ड्स शामिल थे.
उनकी आवाज की लोकप्रियता कुछ ऐसी थी कि अगर लोग उन्हें तुरंत नहीं भी पहचान पाते थे, तो भी जब वे बोलना शुरू करते थे, लोगों की इकट्ठा जमा हो जाती थी. लोग अक्सर उनसे उनका पसंदीदा तकियाकलाम ‘बहनों और भाइयों’ सुनाने की गुजारिश किया करते थे.
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के अनुसार सयानी ने 54,000 रेडियो कार्यक्रमों के लिए अपनी आवाज रिकॉर्ड की थी. निश्चित तौर पर वे देश की प्रसारण यात्रा का, कई पीढ़ियों की जवान होते सालों का हिस्सा रहे हैं, जो उनकी बदौलत वे गाने सुनते थे, जिसके बारे में वे अन्यथा अनजान रहते.
अपने जीवन के आखिरी सालों में उनकी सेहत काफी खराब रहने लगी थी और उन्होंने लोगों से मिलना बंद कर दिया था. वे अपना संस्मरण लिख रहे थे. लेकिन वे तब भी कभी-कभार अपनी आवाज रिकॉर्ड किया करते थे, उस आवाज को जिसने दशकों तक लोगों को अपना दीवाना बनाए रखा.
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