एक देश, एक चुनाव के विरोध में बसपा, कोविंद की अध्यक्षता वाले पैनल से नहीं की मुलाकात

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने बीते अक्टूबर में सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों को पत्र लिखकर एक साथ चुनाव कराने पर अपने विचार भेजने को कहा था. पार्टियों के लिए अपना लिखित जवाब भेजने की आखिरी तारीख 18 जनवरी थी, जिसके बाद कई पार्टियों के नेताओं ने कोविंद से मुलाकात की थी.

मायावती. (फोटो साभार: एक्स)

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने बीते अक्टूबर में सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों को पत्र लिखकर एक साथ चुनाव कराने पर अपने विचार भेजने को कहा था. पार्टियों के लिए अपना लिखित जवाब भेजने की आखिरी तारीख 18 जनवरी थी, जिसके बाद कई पार्टियों के नेताओं ने कोविंद से मुलाकात की थी.

मायावती. (फोटो साभार: एक्स)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले एक खुलासा सामने आया है कि 2019 में एक राष्ट्र, एक चुनाव के प्रस्ताव का बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने विरोध किया था.

इस बीच, पार्टी प्रमुख मायावती की आपत्तियों के अनुरूप बसपा ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति को दिए प्रस्ताव में एक साथ चुनाव के विचार का विरोध किया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ चुनाव की जरूरत की बात की और 2019 के चुनावों के तुरंत बाद नेताओं को सर्वदलीय बैठक के लिए आमंत्रित किया, तो बसपा उन दलों में से थी जो इसमें शामिल नहीं हुए थे. बैठक के दिन- 19 जून, 2019 को, मायावती ने ट्वीट्स की एक श्रृंखला में कहा था कि चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए समस्या नहीं हो सकते हैं और इसे खर्चों के नजरिये से नहीं देखा जा सकता है.

उन्होंने कहा था, ‘देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव की बात असल में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी और बढ़ती हिंसा जैसे ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है.’

23 जून, 2019 को उन्होंने कहा था कि अगर बैठक में ईवीएम के मुद्दे पर चर्चा करनी होती तो वह इसमें शामिल होतीं, क्योंकि उनके अनुसार ईवीएम जनता का विश्वास खो रही है.

उन्होंने कहा था कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का भाजपा का विचार एक बार में ईवीएम में हेरफेर करके दोनों चुनाव जीतने की एक चाल है.

मामले से वाकिफ सूत्रों के मुताबिक, अब बसपा ने कोविंद कमेटी से कहा है कि वह एक साथ चुनाव कराने के विचार के खिलाफ है. हालांकि, उन्होंने कहा कि पार्टी ने परामर्श प्रक्रिया के दौरान अपना प्रतिनिधित्व देने के लिए कोविंद समिति से मुलाकात नहीं की.

पूछे जाने पर बसपा नेताओं ने कहा कि वे इस मुद्दे पर पार्टी के रुख से अनजान हैं.

बसपा के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि पार्टी ने (कोविंद) पैनल को क्या सौंपा है. पार्टी ने औपचारिक रूप से अपने नेताओं को यह नहीं बताया है कि उसने कोई प्रस्ताव किया है या नहीं. जैसा कि पुरानी खबरों में कहा गया है कि बहनजी (मायावती) ने 2019 में एक साथ चुनाव के विचार का विरोध किया था, उनका रुख वर्तमान में भी वैसा ही रहने की उम्मीद है, क्योंकि उन्होंने हाल के दिनों में सार्वजनिक रूप से अपनी राय साझा नहीं की है.’

बसपा के उत्तर प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव राष्ट्रीय स्तर का मामला है. उन्होंने कहा, ‘हम पार्टी नेता तभी टिप्पणी करते हैं जब बहनजी कुछ कहती हैं. इस मामले पर हाल के दिनों में कोई ट्वीट नहीं आया है और हमने उनसे इस बारे में बात नहीं की है. मैं फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता.’

रिपोर्ट के अनुसार, कोविंद समिति ने पिछले साल अक्टूबर में सभी राष्ट्रीय और राज्य दलों को पत्र लिखकर एक साथ चुनाव कराने पर अपने विचार भेजने को कहा था. पार्टियों के लिए अपना लिखित जवाब भेजने की आखिरी तारीख 18 जनवरी थी, जिसके बाद कई पार्टियों के नेताओं ने कोविंद से मुलाकात भी की.

कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और सीपीआई (मार्क्सवादी) सहित विपक्षी दलों ने कोविंद समिति से कहा है कि वे एक साथ चुनाव के विचार का विरोध करते हैं. वहीं, भाजपा ने सिफारिश की है कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं और बाद में स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराए जाएं.

2 सितंबर, 2023 को केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा गठित उक्त समिति में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी. कश्यप, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे सदस्य के रूप में शामिल हैं.

समिति को लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर निगमों और पंचायतों के एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 में संशोधन करने सहित तरीके सुझाने का काम सौंपा गया है. समिति के संदर्भ की शर्तों में त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव को अपनाना या विधायकों के दलबदल की स्थिति में समाधान देना भी शामिल है.

सूत्रों के मुताबिक, जल्द ही कमेटी की रिपोर्ट को अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है.

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