महाराष्ट्र: अजित पवार के ख़िलाफ़ केस में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल, पुलिस बोली- तथ्यों में ग़लती थी

2019 में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर एनसीपी नेता अजित पवार के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें आरोप था कि महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले के चलते 1 जनवरी 2007 से 31 दिसंबर 2017 के बीच सरकारी खज़ाने को 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

अजीत पवार (फोटो साभार: ट्विटर/@AjitPawarSpeaks)

2019 में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर एनसीपी नेता अजित पवार के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें आरोप था कि महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले के चलते 1 जनवरी 2007 से 31 दिसंबर 2017 के बीच सरकारी खज़ाने को 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

अजीत पवार (फोटो साभार: ट्विटर/@AjitPawarSpeaks)

मुंबई: महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (एमएससीबी) में कथित 25,000 करोड़ रुपये के घोटाले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता और उपमुख्यमंत्री अजित पवार पर धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात का आरोप लगाने के बाद, मुंबई की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) पुलिस ने अब दावा किया है कि ‘तथ्यों की गलती के कारण’ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था.

शुक्रवार (1 मार्च) को ईओडब्ल्यू ने मुंबई की विशेष अदालत के समक्ष ‘सी समरी’ रिपोर्ट दायर की. ‘सी समरी’ रिपोर्ट तब दायर की जाती है जब जांच एजेंसी को यह लगता है कि तथ्यों की गलती के कारण किसी व्यक्ति को गलत तरीके से फंसाया गया है.

रिपोर्ट को फिर व्यक्ति के खिलाफ मामला बंद होने से पहले अदालत द्वारा स्वीकारा जाना होता है. रिपोर्ट विशेष लोक अभियोजक राजा ठाकरे के माध्यम से दायर की गई थी. मुंबई सत्र न्यायालय के विशेष न्यायाधीश आरएन रोकड़े ने मामले को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया है.

अदालत इस पर अंतिम फैसला लेगी कि क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार किया जाए या पुलिस को आगे की जांच करने और बाद में मामले में आरोप पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया जाए.

पुलिस का  कदम चौंकाने वाला नहीं है. विशेष रूप से विपक्ष के नेताओं से जुड़े मामलों में राज्य और केंद्रीय एजेंसियों दोनों के आचरण में एक पैटर्न रहा है, इन नेताओं के भाजपा में शामिल होते ही या भाजपा से गठबंधन करते ही इनके खिलाफ चल रही जांचें थम जाती हैं.

यह पहली बार नहीं है कि ईओडब्ल्यू ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर की है. 2020 में, जब महाविकास अघाड़ी (एमवीए) – शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की त्रि-दलीय सरकार – गठबंधन सत्ता में था, ईओडब्ल्यू ने सबसे पहले एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी. तब भी पवार उपमुख्यमंत्री थे. क्लोजर रिपोर्ट इस मामले में नामजद पवार और 70 अन्य लोगों के खिलाफ थी.

हालांकि, जब राज्य में एमवीए सरकार गिर गई और भाजपा तथा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने सत्ता संभाली, तो ईओडब्ल्यू ने अचानक मामले की ‘फिर से जांच करने में’ रुचि दिखाई. अक्टूबर 2022 में ईओडब्ल्यू ने कहा था कि वह इस मामले की आगे जांच करना चाहेगा.

कुछ ही महीनों के भीतर पवार राज्य की शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल हो गए थे. वह जुलाई 2023 में दूसरे उपमुख्यमंत्री बने, जबकि देवेंद्र फडणवीस पहले से ही इस पद पर थे. इसके लिए पवार ने अपने चाचा और एनसीपी पार्टी के संस्थापक शरद पवार से नाता तोड़ लिया था.

अजित पवार के साथ कई अन्य विधायक भी चले गए. हाल ही में, चुनाव आयोग ने उन्हें पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी दे दिया, जिससे शरद पवार को अपनी पार्टी का नाम बदलकर एनसीपी-शरदचंद्र पवार रखने के लिए मजबूर होना पड़ा.

द वायर ने उन विपक्षी नेताओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी जो भाजपा में शामिल हो गए और अचानक से उनके खिलाफ लगे सभी आरोप या तो हटा दिए गए, या सरकारी तंत्र ने मामले की आगे जांच करने में रुचि नहीं दिखाई.

अकेले महाराष्ट्र में कुछ आठ नेताओं ने अपने खिलाफ प्रतिकूल कार्रवाई के डर से या तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, या शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी या कांग्रेस को छोड़कर भाजपा से हाथ मिला लिया है. सभी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या सीबीआई जांच का सामना कर रहे थे.

अजित पवार की केस हिस्ट्री

ईओडब्ल्यू का मामला 2019 का है जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका के बाद मामले की जांच का आदेश दिया था. ईओडब्ल्यू ने मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की और सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी), समेत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था.

एफआईआर के मुताबिक, महाराष्ट्र में चीनी सहकारी समितियों, कताई मिलों और अन्य संस्थाओं द्वारा जिला और सहकारी बैंकों से हजारों करोड़ रुपये का ऋण लिया गया था. अजित पवार का कथित तौर पर सीधा संबंध था क्योंकि वह उस समय एमएससी बैंक के निदेशकों में से एक थे. ऋण कथित तौर पर अवैध तरीकों से हासिल किए गए थे और ईओडब्ल्यू ने खरीद प्रक्रिया में कई अनियमितताएं पाए जाने का दावा किया था.

ईओडब्ल्यू की एफआईआर के मुताबिक, 1 जनवरी 2007 से 31 दिसंबर 2017 के बीच सरकारी खजाने को 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा था.

ईडी ने ईओडब्ल्यू के मामले के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाते हुए एक अलग अपराध दर्ज किया था. इसने अब तक दो आरोपपत्र दायर किए हैं, जिनमें शरद पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट के विधायक प्राजक्त तनपुरे का भी नाम शामिल है. बुनियादी अपराध के अभाव में, जैसे कि ईओडब्ल्यू का केस, ईडी अपनी जांच जारी नहीं रख सकती है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)