हरियाणा: विधानसभा में प्रश्नकाल में जवाब देने के लिए अधिकतम 50 शब्दों की सीमा तय, विरोध में विपक्ष

हरियाणा सरकार का कहना है कि इस क़दम का उद्देश्य प्रश्नकाल के दौरान सभी प्रश्नों के उत्तर देना संभव बनाना है. वहीं विपक्षी कांग्रेस ने कहा है कि सरकार जवाबदेही से बचने का प्रयास कर रही है.

हरियाणा विधानसभा में मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर. (फोटो साभार: फेसबुक/@HaryanaCMO)

हरियाणा सरकार का कहना है कि इस क़दम का उद्देश्य प्रश्नकाल के दौरान सभी प्रश्नों के उत्तर देना संभव बनाना है. वहीं विपक्षी कांग्रेस ने कहा है कि सरकार जवाबदेही से बचने का प्रयास कर रही है.

हरियाणा विधानसभा में मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर. (फोटो साभार: फेसबुक/@HaryanaCMO)

नई दिल्ली: हरियाणा सरकार ने राज्य विधानसभा में पूछे गए सवालों पर अपने मंत्रियों के लिखित जवाब को 50 शब्दों तक सीमित करने का फैसला किया है. विपक्ष ने इसे जवाबदेही से बचने का प्रयास बताते हुए निंदा की है.

द प्रिंट के मुताबिक, हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने विधानसभा में अपने-अपने मंत्रियों द्वारा दिए जाने वाले उत्तर तैयार करने के लिए राज्य सरकार के सभी प्रशासनिक सचिवों को मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है, जिसमें अन्य बातों के अलावा इन लिखित जवाबों को 50 शब्दों तक सीमित रखने के निर्देश शामिल हैं.

कौशल के आदेश में आगे कहा गया है कि यदि उत्तर 50 शब्दों से अधिक होना है, तो इसे ‘सदन के पटल पर रखे जाने वाले एक बयान के रूप में’ दिया जाए.

विपक्षी विधायकों ने इस कदम को अनुचित और सरकार द्वारा लोगों के प्रति जवाबदेही से भागने का प्रयास करार दिया है.

रोहतक से कांग्रेस विधायक और पार्टी के मुख्य सचेतक भारत भूषण बत्रा ने कहा कि यह अनुचित होने के साथ-साथ अव्यवहारिक भी है.

बत्रा ने द प्रिंट से कहा, ‘विधायकों के तौर पर हमें प्रश्नकाल के दौरान विधानसभा में पूछे जाने वाले प्रश्नों को 150 शब्दों तक सीमित रखने के लिए कहा गया है. अब इन एसओपी के बाद मंत्री हमारे प्रश्नों का उत्तर हमारे सवालों की शब्द संख्या से एक तिहाई कम शब्दों में देंगे.’

कांग्रेस विधायक ने कहा कि प्रश्नकाल विधानसभा सत्र के दौरान बजट के बाद सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है, जहां विपक्ष के सदस्यों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर सत्ता पक्ष से जवाब मांगने का अवसर मिलता है.

उन्होंने कहा कि अक्सर विपक्षी विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों की समस्याओं को विधानसभा में उनके बारे में प्रश्न पूछकर संबोधित किया जाता है, लेकिन अब सरकार सदन में मंत्रियों द्वारा पढ़े जाने वाले उत्तरों को सिर्फ 50 शब्द तक सीमित करके प्रश्नकाल को ‘महज औपचारिकता’ बनाना चाहती है.

एक अन्य कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने एसओपी को गलत बताते हुए सरकार द्वारा जवाबदेही से बचने का एक प्रयास करार दिया. उन्होंने द प्रिंट से कहा, ‘इसका आशय केवल यह है कि भाजपा-जजपा सरकार विपक्ष द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने से भागना चाहती है.’

उन्होंने कहा कि अध्यक्ष सदन के संरक्षक हैं और उन्हें हस्तक्षेप करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि ऐसा नहीं होने दिया जाए.

इस बीच, हरियाणा के ऊर्जा मंत्री रणजीत सिंह ने कहा कि एसओपी यह सुनिश्चित करेगी कि प्रश्नकाल सुचारू रूप से चले.

उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी, सदस्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर मंत्रियों के लिए पढ़ने के लिए बहुत लंबे होते हैं. इनमें से कई मामलों में सदस्य पूरक प्रश्न भी पूछते हैं. इसलिए, इसमें बहुत समय लगता है.’

मंत्री ने आगे कहा कि यह सदस्यों के सर्वोत्तम हित में भी है, क्योंकि जब तक मौखिक उत्तर छोटे नहीं होंगे, प्रश्नकाल के दौरान सभी प्रश्नों का उत्तर देना संभव नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि विस्तृत बयान वैसे भी सदस्यों के पढ़ने के लिए सदन में रखा जाता है.

हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता ने द प्रिंट से कहा है कि एसओपी में कुछ भी गलत नहीं है और उपलब्ध कम समय में सभी सवालों के जवाब देने के लिए यह आवश्यक था.

उन्होंने जोड़ा, ‘हमारे पास प्रश्नकाल के लिए 60 मिनट होते हैं, जिसके दौरान मंत्रियों को 20 सवालों के जवाब देने होते हैं. इस तरह, प्रत्येक प्रश्न को केवल 3 मिनट मिलते हैं. यदि उत्तर लंबी अवधि के हैं, तो इसमें बहुत अधिक समय लगता है.